गोसेवा आयोग के घोटाले ओर राष्ट्रीय कामधेनु आयोग

Share
Avatar

इस हफ्ते की शुरुआत में उत्तराखंड हाईकोर्ट ने उत्तराखंड सरकार को तगड़ा झटका देते हुए मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ सीबीआई को एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया। ओर जिस पत्रकार ने उनकी रिश्वतखोरी का मामला उजागर किया उसके खिलाफ दर्ज आपराधिक मुकदमों को निरस्त करने का आदेश दिया।

दरअसल मूल रूप से यह मामला राज्य गौसेवा आयोग से जुड़ा हुआ था, पत्रकार ने यह खुलासा किया था कि सीएम त्रिवेंद्र रावत ने झारखंड प्रभारी रहते हुए एक भाजपा नेता से पच्चीस लाख रुपए रिश्वत दलाली लेकर गौ सेवा आयोग का अध्यक्ष बनाने का सौदा तय किया था, जिसकी सारी रकम त्रिवेंद्र ने अपने कुटुंब के लोगों के खाते में ट्रांसफर करवाई।

यह सारे आरोप पत्रकार ने एक खुली प्रेस कांफ्रेन्स में लगाए थे इसी आधार पर पहले उसे प्रताड़ित किया गया और उस पर मुकदमे कायम किये गए इसका संज्ञान लेते हुए हाई कोर्ट ने सीबीआई को एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा, मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ लगे आरोपों को देखते हुए यह सही होगा कि सच सामने आए। यह राज्य हित में होगा कि संदेहों का निवारण हो।

कल मुख्यमंत्री पर FIR दर्ज किए जाने के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी, लेकिन सवाल तो वही खड़ा हैं कि आखिरकार गौसेवा आयोग का अध्यक्ष बनने के लिए इतनी बड़ी रकम कैसे दी जा सकती है, इसके पीछे एक बहुत बड़ा कारण है जितने भी राज्यो में बीजेपी सरकारे है वहाँ गो संवर्द्धन के नाम बहुत बड़ा फंड अलॉट किया जा रहा है।

प्रधानमंत्री मोदी ने भी पिछले राष्ट्रीय कामधेनु आयोग की स्थापना की है जिसके अध्यक्ष गुजरात भाजपा के वरिष्ठ नेता तथा राजकोट-गुजरात से चार बार सांसद रहे डॉ. वल्लभ कथीरिया हैं। केंद्र सरकार ने इस साल के आम बजट में इस योजना के लिए 750 करोड़ रुपये की रकम देने की बात की है।

राष्ट्रीय कामधेनु आयोग केंद्र सरकार के संरक्षण के लिए एक उच्च शक्ति वाली स्थायी सर्वोच्च संस्था है इसकी स्थापना के जो उद्देश्य दिए गए हैं उसमें कहा गया है कि राष्ट्रीय कामधेनु आयोग के गठन से देश में गोवंश के संरक्षण, सुरक्षा और संवर्द्धन के साथ उनकी संख्या बढ़ाने पर ध्यान दिया जाएगा। इसमें स्वदेशी गायों का संरक्षण भी शामिल है।’

राष्ट्रीय कामधेनु आयोग के अध्यक्ष चर्चा में बने रहने के लिए उल्टे सीधे बयानों का सहारा लेते आ रहे हैं कुछ दिन पहले ही उन्होंने गोबर से बनी एक चिप लॉन्च की। उन्होंने कहा कि ये चिप मोबाइल से निकलने वाले रेडिएशन को रोकती है और इसके साथ-साथ बीमारियों की रोकथाम करती है। इसके पहले वह पंच गव्य के उपयोग से इंटलिजेंट बच्चों के पैदा होने की बात कर चुके हैं। अभी गोबर के दिये बनाने की बात की जा रही है, यहाँ तक कि गोबर और गोमूत्र से जुड़ा STARTUP लगाने वाले को वह 60 प्रतिशत फंडिंग देने की बात भी कथूरिया जी पिछले दिनों कर रहे थे। दरअसल यह सारे बयान बस इसलिए दिए जाते हैं ताकि इन बयानों पर चर्चा हो और कामधेनु आयोग की असली गतिविधियों पर किसी का ध्यान नही जाए और 500 करोड़ के बजट का मनमाना इस्तेमाल ये लोग कर पाए।

ये तो रही केंद्र की बात राज्य भी गोसेवा आयोग को बड़ी रकम देने में पीछे नही है उत्तर प्रदेश सरकार ने साल 2019-2020 के बजट में गो कल्याण के लिए करीब 500 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं। उन्होंने शराब की बिक्री पर विशेष फीस अधिरोपित की गई है, जिससे प्राप्त होने वाले अनुमानित राजस्व 165 करोड़ रुपये का उपयोग प्रदेश के निराश्रित एवं बेसहारा गौवंश के भरण-पोषण पर किया जाएगा।

जो लोग इन गायों की देखभाल करेंगे, उन्हें प्रति गाय प्रतिदिन 30 रुपये के हिसाब से हर महीने सीधे बैंक खाते के माध्यम से मिलेंगे। इस हिसाब से एक गाय के लिए प्रतिमाह 900 रुपये मिलेंगे। यानी राज्य गोसेवा आयोग के अध्यक्ष आप बन जाते हैं तो एक बहुत बड़ी रकम के आवंटन पर आप कुंडली मारकर बैठ सकते हैं साथ ही हर गाँव मे अपने पार्टी के कार्यकर्ताओं को लोगो को 900 रु प्रति गाय प्रति महीने के रूप में दे सकते है, आने वाले समय में ये बहुत बड़ा घोटाला साबित होगा।