बीती 19 तारीख़ को मास्टर साजिद सहारनपुर से दिल्ली के लिए ट्रेन में बैठे, बढोत बागपत पहोचते हुए कुछ लोगो ने मास्टर जी के साथ मार पीट की जिसके मार पीट इतनी बड़ गई कि मास्टर जी को जान बचाने के लिए चलती ट्रेन से कूदना पड़ा.यह हेट क्राइम था जो बताने की ज़रूरत नहीं कि मास्टर जी के सर पर टोपी और मुंह पर दाढ़ी देखकर किया गया था, 19 की शाम को मास्टर जी अगर चलती ट्रेन से नहीं कूदते तो मोब लिंचिंग का एक और नया मामला सामने आ जाता.फ़िर उस फ़ेहरिस्त में मोहसिन,अख़लाक़,पहलू,छोटू, के साथ मास्टर साहब का भी नाम जुड़ जाता.
कभी आपने सोचा है कि हम किस समाज में जी रहें हैं? यह ज़हरीला समाज एक समुदाय विशेष के मन मे यह भर्म और डर बैठाना चाहता है, कि तुम इस देश के नागरिक नहीं और तुम्हें इस मुल्क़ में रहने का कोई हक़ नहीं. यह भीड़तंत्र जो आज देश में क़ाबिज़ है जो कभी गाय के नाम पर कभी ज़ात के नाम पर तो कभी धर्म के नाम पर सड़कों पर,ट्रेनों में, मार काट करते हुए अपना फ़ैसला सुना देते हैं. मोब लिंचिंग के सभी मामलों पर अगर गौर करें तो आपको सभी केस में एक चीज़ कॉमन मिलेगी और वह है कि लिंचिंग पूर्ण रूप से प्रायोजित घटनाएं हैं, जो कि पूरी प्लानिंग के साथ कि जाती हैं,जिसके लिए कुछ शाखाओं में विशेष ट्रेनिंग तक दी जा रहीं हैं.
इन लिंचिंग को देखते हुए अगर आप भारतीय तालिबान कहेंगे तो इसमें भी कोई हर्ज नहीं, क्योंकि तालिबान ने भी उस वक़्त अफ़ग़ानिस्तान में भी ऐसा ही कुछ किया था. इन मामलों की कार्य प्रणाली को अगर आप आईएस से जोड़ कर देख रहें हैं, तो भी आप सही हैं क्योंकि मक़सद आईएस का भी मार काट नफ़रत फ़ैलाना और डर बैठाना ही है. इन घटनाओ को आतंकवाद का नाम देना भी ग़लत नहीं होगा. कमाल यह है कि न्याय प्रणाली किस तरह सत्ता के आगे बेबस है, कि इस तरह के अनेकों मामलों में पीड़ितों को तो इंसाफ़ के लिए दर दर की ठोकरें खानी पड़ती हैं. वही मुल्जिमों को बेहद आसानी से ज़मानत पर रिहा कर दिया जाता है.
क्या इसके बाद भी आप यह सोच रहें हैं कि मोब लीनचिंग के पीछे सरकार का हाथ नहीं है तो आप यहां ग़लत साबित हो सकते हैं. दादरी के अख़लाक़ का बेटा वायु सेना में कार्यरत है, इस देश के कुछ गद्दारों ने उससे उसका बाप छीन लिया. वह फ़िर भी कहता रहा “सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तान हमारा”. ठीक उस ही तरह से मास्टर साजिद का एक भाई वायु सेना के बाद गृहमंत्रालय में देश की सेवा कर रहा है, और दूसरा भाई वायु सेना से देश के कामों में हाथ बंटा रहा है. वहीं मास्टर जी खुद बच्चों को पढ़ा लिखकर देश का मुस्तक़बिल बना रहे हैं. अब सोच लीजिये की देश की फिक्र इन बदमाशों को है या पीड़ित परिवारों को है?
फिलहाल मास्टर साहब थोड़े घबराए हुए हैं,उनकी दाढ़ी के बाल उन भेड़ियों द्वारा नुच चुकें हैं. लेकिन मास्टर जी हिम्मत नहीं हार रहे। शायद उनकी रगों में वही खून है जो खून इस देश के नाम पर शहीद होने वालों का था, और उन भेड़ियों की रगों में फिरंगियों का खून दौड़ रहा है जो हर बार देश को तोड़ने में लगे हुए हैं.
यह लेख लेख़क की फ़ेसबुक वाल से लिया गया है, लेख़क माईनोरिटी एजूकेशन एंड इमपॉवरमेंट मिशन (मीम) संस्था के प्रमुख हैं. तथा एक सक्रीय समाजसेवक हैं