इंदिरा गांधी (indira gandhi) । भारत की तीसरी और पहली महिला प्रधानमंत्री (first women prime minister) थी। इंदिरा को सबसे अधिक उनके कठोर फैसलों के लिए जाना जाता है। कहते हैं, उनके अंदर राजनीति में निर्भयता के साथ अपने पैर जमाने का हुनर तो था ही लेकिन राजनीति में अच्छे दाव पेच खेलने की भी अच्छी कला थी।
इंदिरा को कई नामो से संबोधित किया जाता था। जैसे रविन्द्र नाथ टैगोर (tegor) ने उन्हें प्रियदर्शिनी नाम दिया था। 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध, बांग्लादेश के उदय और 1974 में परमाणु परीक्षण के बाद उन्हें आयरन लेडी के नाम से जाना गया। वहीं अपने पहले कार्यालय में इंदिरा संसद या अन्य स्थान पर ज़्यादा बोलने से बचती थी, जिसके बाद विपक्षी नेताओं ने उन्हें गूंगी गुड़िया की उपाधि भी दी थी।
आज Tribune hindi इंदिरा गांधी के जीवन को आसान भाषा मे बता रहा है :
विरासत में मिली थी राजनीति :
इंदिरा का जन्म 1917 में एक ऐसे परिवार में हुआ था जहां का हर एक व्यक्ति राजनीति से जुड़ा था। दादा, मोती लाल नेहरू एक फ्रीडम फाइटर थे। पिता जवाहरलाल नेहरू इंडियन नेशनल कोंग्रेस के बड़े नेता और देश के पहले प्रधानमंत्री भी रहे। नेहरू ने 1951, 1956 और फिर 1961 में प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी। उनकी माता कमला नेहरू भी कोंग्रेस में नेता थी, पार्टी की अध्यक्ष भी रही थी। उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में भी भूमिका निभाई थी।
टैगोर ने दिया था प्रियदर्शिनी नाम :
इंदिरा का जन्म 19 नवम्बर 1917 को इलाहाबाद में हुआ था। अपनी पढ़ाई उन्होंने अलग आलग शहरों में की थी, जैसे शुरुआती पढ़ाई दिल्ली में फिर इलाहाबाद में, पढ़ाई के लिए वो बम्बई में भी गयी थी। इंटरनेशनल स्कूल ऑफ जिनेवा के अलावा उन्होंने इंग्लैंड की ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में भी एडमिशन लिया था। हालांकि, वहां से पढ़ाई पूरी किये बिना वापस आ गयी थी। इंदिरा ने शांतिनिकेतन में भी पढ़ाई की थी और वहीं रवींद्रनाथ टैगोर ने उन्हें प्रियदर्शिनी नाम दिया था। इसके बाद उन्हें इंदिरा प्रियदर्शिनी टैगोर के नाम से भी जाना जाने लगा।
इंदिरा को गूंगी गुड़िया कहा जाता था :
लाल बहादुर शास्त्री की सरकार में इंदिरा ने सूचना एंव प्रसारण मंत्री का कार्यभाल संभाला था। लेकिन शास्त्री की मृत्यु के बाद जब 1966 में इंदिरा प्रधानमंत्री बनी तो उन्होंने सही मायने में राजनीति में कदम रखा।
उनके प्रधानमंत्री बनने पर पार्टी के कई बड़े नेता नाखुश थे लेकिन इस बात पर राजी भी हो गए कि इंदिरा को अभी इतनी समझ नहीं है कि वो सरकार चला सकें। और ऐसे में उन्हें पार्टी के शिर्ष नेताओं के पास ही आना पड़ेगा, और इंदिरा कठपुतली बन जाएंगी।
शुरू में इंदिरा संसद और अन्य जगहों पर बोलने में नर्वस हो जाय करती थी, जिसके बाद विपक्षी दल के नेताओं ने उन्हें गूंगी गुड़िया कहना शुरू कर दिया। लेकिन दूसरी ओर पार्टी में इंदिरा ने कठपुतली बनना स्वीकार नहीं किया और कोंग्रेस के दो फाड़ हो गए।
इंदिरा का व्यक्तित्व करिश्माई था :
इंदिरा ने अपनी चतुराई से अपने प्रतिद्वन्दियों को अलग कर दिया, नतीजतन कोंग्रेस दो भागों में बट गयी। एक कोंग्रेस R और दूसरी कोंग्रेस O। कोंग्रेस आर पुराने नेताओं की पार्टी थी, इसमें कोंग्रेस के नेता शामिल थे जो इंदिरा के नेतृत्व स्वीकारना नहीं चाहते थे। इसके विपरीत कोंग्रेस ओ इंदिरा समर्थित पार्टी थी, इस पार्टी को कोंग्रेस कमेटी और संसद के एक बड़े भाग ने अपना समर्थन दिया था।
ये कोंग्रेस आर के मुकाबले ज़्यादा ताकतवर थी। वही कोंग्रेस आर के नेताओ को भी बहुत जल्द समझ आ गया था उनकी प्रगति एक ही तरीके से हो सकती है।जब वो इंदिरा गांधी और गांधी परिवार के लिए अपनी वफादारी दिखाए। इंदिरा अब एक करिश्माई व्यक्तित्व थी जो कोंग्रेस के विधायको को नहीं बल्कि राज्यों के मुख्यमंत्री चुनती थी।
71 के युद्ध ने बना दिया आयरन लेडी :
इंदिरा ने अपने पहले शासनकाल में महत्वपूर्ण कामो पर ध्यान दिया। 1969 में 5 बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया, 1970 में राज भत्ते यानी प्रिवी पर्स की शुरुआत की गई। अब इंदिरा गरीबो की मसीह हो चली थी, उन्हें “गरीब समर्थक , धर्म के मामलों में, अर्थशास्त्र और धर्मनिरपेक्षता व समाजवाद के साथ पूरे देश के विकास के लिए खड़ी एक छवि के रूप में देखा गया।”
71 के चुनाव में “गरीबो हटाओ” के नारे ने भी काफी काम किया। लोग इससे इतना प्रभावित हुए की इस बार लोकसभा में 351 सीटे जीतकर कोंग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनी। इसके बाद पाकिस्तान के साथ युद्ध और पूर्वी पाकिस्तान को बांग्लादेश बनाने में इंदिरा की छवि और मजबूत होती गयी। इसके बाद 1974के पोखरण में परमाणु परीक्षण कर वैश्विक स्तर पर भारत को एक महत्वपूर्ण स्थान दिलवाया।
अब जो इंदिरा को गूंगी गुड़िया कहते थे, इंदिरा को आयरन लेडी का खिताब उनके मुंह पर तमाचा था।
रातों रात लगाया था आपातकाल :
1974 में चुनावो के 4 साल बाद 71 के चुनावो में इंदिरा के प्रतिद्वंद्वी रहे राज नारायण ने इलाहाबाद हाइकोर्ट में इंदिरा पर चुनावो के दौरान धांधली का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि इंदिरा ने चुनावो में सरकारी मिशनरी का गलत उपयोग किया वही लोगो को भ्रम में रखा। हाइकोर्ट ने आरोपो को सही ठहराया और 6 महीने तक किसी भी पद को संभालने पर प्रतिबंध लगा दिया था। इंदिरा ने कुछ समय तक इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसलों को चुनोती दी।
लेकिन आखिरकार 25 जून की आधी रात राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद से आपातकाल की घोषणा करवाई गई। अगले दिन सुबह अकाशवाणी पर इंदिरा की आवाज़ पूरे देश ने सुनी। उन्होंने अकाशवाणी पर अपने संदेश में कहा, “जब से मैंने आम आदमी और देश की महिलाओं के फायदे के लिए कुछ प्रगतिशील क़दम उठाए हैं, तभी से मेरे ख़िलाफ़ गहरी साजिश रची जा रही थी।” आपातकाल में मीसा कानून के तहत विपक्षी दलों के नेताओ को जेल में डाल दिया गया। वहीं आबादी को नियंत्रित करने का कारण देते हुए संजय गांधी के नेतृत्व में देश भर में पुरुषों की जबरन नसबंदी की गई।
Opration blue star बना मौत का कारण :
21 महीने चले इस आपातकाल का असर 1977 के चुनावो में देखने को मिला। ये पहली बार था जब जनता दाल सबसे ज़्यादा बहुमत के साथ जीतकर आई थी और एक गठबंधन सरकार बनी थी। इस सरकार में प्रधनमंत्री मोरारजी देसाई बने थे हालांकि, ये सरकार कुछ महीने में ही गिर गयी। इसके बाद चौधरी चरण सिंह प्रधानमंत्री बने। इसके बाद 1980 में फिर एक बार इंदिरा सत्ता में आई।
1984 का वक्त था, अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में जरनैल सिंह भिंडरावाले के नेतृत्व में कुछ चरमपंथियों ने मंदिर पर कब्ज़ा कर लिया, जिन्होंने सिखों के लिए एक स्वतंत्र राज्य की मांग की थी।
स्थिति को नियंत्रित करने के लिए गांधी ने opration blue star चलाया जिसके तहत मंदिर में सेना भेजी गयी। इसके परिणामस्वरूप मंदिर में रक्तपात हुआ, और सिख समुदाय को ठेस पहुंची।
31 अक्टूबर 1984 को, गांधी को उनके घर के बाहर उनके ही दो अंगरक्षकों ने गोली मार कर हत्या कर दी। उनके मुताबिक उन्होंने स्वर्ण मंदिर में हुई घटना का बदला लिया था।