भारत की जगह अमेरिका की खोज करने वाला समुद्री यात्री

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अमेरिका की खोज करने वाले क्रिस्टोफर कोलंबस को भला कौन नहीं जानता है। दुनिया के महान खोजकर्ता क्रिस्टोफर कोलंबस इटली के जीनेओ में एक जुलाहे परिवार में जन्मे थे। उनके पिता का नाम डोमोनिको कोलंबो था और माता का नाम सुसाना फोंटानारोसा था‌। वह अपने पिता के व्यवसाय में हाथ बटाते थे।

समुद्री यात्राओं में उन्हें बेहद दिलचस्पी थी। यही कारण था कि उन्होंने नौकायन का बेहतर ज्ञान भी हासिल किया था और इसी ज्ञान के चलते उन्हें उत्तर की तरफ जाने वाले नावों के साथ व्यापार करने का भी अवसर प्राप्त हुआ। इसके बाद उन्होंने समुद्री यात्राओं का अपना पेशा ही बना लिया था। अमेरिकी द्वीपों की खोज के बाद विश्व में खुद को सबसे सर्वश्रेष्ठ खोजकर्ता मानने लगे थे।

कोलंबस निकले भारत की खोज में थे लेकिन गलती से अमेरिकी द्वीप  खोज गए थे। 3 अगस्त 1492 में भारत की खोज के लिए कोलंबस ने अपनी यात्रा शुरू कर दी थी। 60 दिन की यात्रा के बाद कोलंबस का जहाज एक किनारे पर पहुंचा, तो कोलंबस को लगा कि वह भारत पहुंच गया है लेकिन वह अमेरिकी द्वीप था। अमेरिकी द्वीप की खोज ने यूरोपियन लोगों के लिए व्यापार के रास्ते खोल दिए थे।

व्यापार के रास्ते बंद होना-

कोलंबस के वक्त यूरोप के व्यापारी जमीन के रास्तों के माध्यम से ही भारत समेत अन्य एशियाई देशों में अपना माल बेचते थे। 1453 में इन सभी इलाकों में मुस्लिम तुर्कानी साम्राज्य ने अपने अधिकार कर लिया था। जिससे यूरोपिय देशों का व्यापार भी ठप हो गया था और आर्थिक तंगी आने के साथ अर्थव्यवस्था भी चरमरा गई थी।

अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए कोलंबस के दिमाग में एक विचार आया कि अगर हम जमीनी रास्तों द्वारा नहीं जा सकते तो समुद्री जहाजों के द्वारा तो जा सकते हैं। क्योंकि भारत और एशियाई देशों के बीच व्यापार होने से अर्थव्यवस्था को मजबूत करना था। कोलंबस को यकीन था अगर हम पश्चिम के रास्ते जाएंगे तो भारत तक पहुंचा जा सकता है। लेकिन यह गलत था उन्होंने अमेरिकी द्वीपों को ही भारत समझ लिया था।

तीन जहाजों और 90 नाविकों के साथ सफर की शुरुआत-

कोलंबस को इस सफर के लिए बहुत सारे पैसे और बहुत सारे नाविक चाहिए थे। अपनी बात उन्होंने पुर्तगाल के राजा के सामने रखी। लेकिन राजा ने उसके खर्च के लिए साफ इनकार कर दिया। स्पेन के शासकों ने उसकी बात गौर से सुनी और यात्रा का खर्च उठाने को तैयार हो गए। 90 नाविकों को बड़ी मुश्किल से अपनी यात्रा में शामिल किया। 3 अगस्त 1492 को कोलंबस ने तीन जहाजों-सांता मारिया ,पिंटा और नीना के साथ पेन से अपने सफर की शुरुआत की थी।

12 अक्टूबर 1492 को कोलंबस के जहाजों ने जिस धरती को छुआ, जिसे वह उसे भारत समझ रहे थे। लेकिन वह आईलैंड सैन सल्वाडोर था। वहां के निवासी उसे गोआनाहानि कहते थे। इसी आईलैंड पर 5 महीने रुक कर कैरेबियाई द्वीपों की खोज की जिसमें जुआना (क्यूबा) और हिस्पैनियोला (सेंटडोमिनगो )शामिल थे। 15 मार्च 1493 कोलंबस स्पेन वापस पहुंचा। वहां उसका भव्य स्वागत हुआ। स्पेन के राजा ने उसे ढूंढे हुए देशों का गवर्नर बना दिया‌।

चंद्रग्रहण ने बचाई थी जान-

कोलंबस की और उनकी टीम की बेहद रोचक कहानी भी है। अक्सर लोगों में चंद्रग्रहण और सूर्यग्रहण को लेकर बहुत अंधविश्वास रखते  हैं। ये खगोलीय है। कोलंबस को आईलैंड पर रहते हुए 6 महीने हो गए थे। लेकिन भूख के मारे उनकी और उनकी टीम की हालत बिगड़ने लगी थी। इसे देखते हुए कोलंबस ने एक प्लान बनाया।

कोलंबस के पास 1475 से 1506 तक का खगोलीय टेबल था। इस कारण उन्हें पता था कि 29 फरवरी 1504 को चंद्रग्रहण होने वाला है। इस नॉलेज के आधार पर उन्होंने ग्रहण से 3 दिन पहले अरावाक ट्राइब के मुखिया को बातचीत के लिए आमंत्रित किया।

मुलाकात के दिन कोलंबस ने मुखिया को बताया कि उनके भगवान इस बात से नाराज है कि अरावाक उनकी मदद नहीं कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि भगवान अपनी नाराजगी का प्रमाण भी देंगे।

मुखिया ग्रहण देख कर डर गया-

शाम होते होते ग्रहण लगना शुरू हो गया और आसमान के साथ ही चांद भी लाल होने लगा। कोलंबस ने मुखिया की ओर इशारा किया यह भगवान की नाराजगी है। यह सब कुछ देख कर इंडियंस का मुखिया डर गया और भगवान को किस तरीके से शांत किया जाए कोलंबस से इसका उपाय पूछा।

कोलंबस भगवान से बातचीत के लिए प्रेयर करने की बात कहकर अपने जहाज में आए और वहां रेत घड़ी से ग्रहण के खत्म होने का सटीक अंदाजा लगाने लगे। ग्रहण खत्म होने से कुछ मिनट पहले ही कोलंबस मुखिया के पास आए और उन्होंने भगवान से उन्हें माफ करने की बात कही है। इसके तुरंत बाद ही आसमान साफ और चांद सफेद होने लगा।

इस घटना के बाद कोलंबस और उसके साथियों की जान बच गई। इस कहानी को सुनाने के बाद अरावाक ने उनकी मदद की और उन्हें खाने-पीने की चीज का भी अभाव नहीं हुआ। 1504 को आखिरकार उनकी सहायता के लिए उस आइलैंड पर जहाज पहुंचा, जिसके बाद सभी को बचाते हुए 7 नवंबर तक इस पर ले आया गया।

पहली यात्रा 1492 से 1493 तक इस यात्रा का उद्देश्य पश्चिम की यात्रा के लिए छोटा रास्ता खोजना था। दूसरी यात्रा 1493 से 1496 तक यात्रा का उद्देश्य स्वदेशी अमेरिकियों को ईसाई धर्म में परिवर्तित करना था। तीसरी यात्रा 1498 से 1500 इस यात्रा का उद्देश्य एक महाद्वीप के अस्तित्व को सत्यापित करना था जब पुर्तगाल के राजा जान द्वितीय ने केप वर्डे द्वीप के दक्षिण पश्चिम में स्थित होने का सुझाव दिया था।

चौथी और अंतिम यात्रा 1502-1504 वे  नए महाद्वीप के तट के एक बड़े हिस्से के साथ पहुंचे। इस स्थान को मध्य अमेरिका कहा जाता था। चार जहाजों ने एक लंबी दूरी तय की और नये द्वीपों को पाया, जिसमें होंडुरास, कोस्टा रिका और पनामा थे। इसे कोलंबस की अंतिम और पांचवी यात्रा के नाम से भी जाना जाता है। लेकिन जून 1503 के अंत में जहाज जमैका में तूफान में गिर गए और बर्बाद हो गए।

कोलंबस की मृत्यु-

कोलंबस अपनी जिंदगी की आखिरी वक्त में एक भयंकर बीमारी से ग्रसित हो गए थे। 20 मई 1506 में उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली। कोलंबस आखरी सांस तक ही सोचते रहे कि उन्होंने भारत को खोज लिया है लेकिन वह गलत थे। भारत की खोज नहीं कर सके लेकिन अपने संकल्प पथ पर आगे बढ़ते हुए उन्होंने कई अमेरिकी ‌द्विपो की खोज की और यूरोप के लिए व्यापार के नए रास्ते खोलें।

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