बांद्रा स्टेशन के पास 14 अप्रैल को जमा हुई भीड़ को हटाने में मस्जिद का माईक बना मददगार

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बांद्रा में जुटी भीड़ को लेकर कुछ मीडिया वाले मस्जिद को बार-बार टारगेट कर रहे हैं। वह अपना मुस्लिम विरोधी एजेंडा चलाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन मैं आपको बताता हूं कैसे मस्जिद की सहायता से लोगों को वापस भेजा गया और बांद्रा में क्या हुआ।

मंगलवार ( 14 अप्रैल ) को दोपहर 2 बजे के आस-पास बांद्रा रेलवे स्टेशन के नजदीक स्थित बस स्टैंड के पास लोगों की भीड़ जमा होनी शुरू हो गई। लोगों को यह लग रहा था लॉक डाउन खत्म हो गया है, इसलिए ट्रेन चलाई जाएगी। कुछ लोगों को ऐसी भी जानकारी मिली थी कि जनसाधारण एक्सप्रेस की स्पेशल ट्रेन भी चलाई जाएगी। जिसके बाद लोगों की भारी भीड़ जुटने लगी।

भीड़ जुटने की खबर जैसे ही ब्रांदा पुलिस स्टेशन के अधिकारियों को मिली वे घटनास्थल तक पहुंच गए। पुलिस अधिकारी अपनी ओर से मजदूरों को समझाने की कोशिश करने लगे। एक घंटा गुजरते-गुजरते 3 बजे के आस-पास घटनास्थल पर भीड़ काफी बढ़ गई। बांद्रा में जहां लोगों की भीड़ थी वहीं पास में एक मस्जिद है।

भीड़ को समझाने के लिए पुलिस मस्जिद के अंदर गई। मस्जिद की माइक और हॉर्न के जरिए अनाउंस कर पुलिस ने मजदूरों को समझाने की कोशिश की। पुलिसवाले बार-बार कहते रहे कि लोग वापस घर चले। जब मजदूर नहीं माने तो स्थानीय नेताओं को बुलाया गया। एक नेता ने अपने भाषण में ये लाइनें कहीं- “कोरोना वायरस से मक्का-मदीना बंद हैं। दुनिया की सभी मस्जिदें बंद हैं। भारत में लॉकडाउन किया गया है ताकी लोगों की जान बचाई जा सके। इसलिए आपलोग भी अपने घर वापस चलें जाएं।”

पुलिस और स्थानीय नेताओं के बार-बार समझाने के बाद मजदूरों ने कहा कि उन्होंने खाना नहीं खाया है। जिसके बाद एक टैंम्पो में खाना मंगाकर सभी मजदूरों को खाना खिलाया गया साथ ही आश्वासन दिया गया कि सभी को खाना मुहैया कराया जाएगा। लेकिन तभी मजदूरों का एक गुट घर जाने की जिद करते हुए हंगामा करने लगा। जिसके बाद पुलिस ने उन्हें हल्का लाठीचार्ज करते हुए खदेड़ दिया।

मुझे हैरानी है कि भारतीय दंगाई मीडिया में मस्जिद शब्द पर जोर-जोर देकर मामले को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की जा रही थी। लेकिन शुक्रिया महाराष्ट्र पुलिस और वहां की सरकार का जिसनें इन दंगाई पत्रकारों की हर मंशा पर पानी फेर दिया।

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