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किसानों के मन की बात भी तो सुनिये, सरकार ?
यूं ही हमेशा उलझती रही है, ज़ुल्म से खल्क, न उनकी रस्म नयी है, न अपनी रीत नयी, यू ही हमेशा, खिलाये हैं हमने आग में...