पंजाब के इस महाराजा की बनाई गई है पाकिस्तान में मूर्ति

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1469 में सिख धर्म के पहले गुरु नानक देव ने अपना  राज्य स्थापित किया। इस क्षेत्र का नाम पंजाब रखा गया। इसके बाद कई सिख गुरुओं का शासन चला। 1716 में सिख समुदाय का मुगलों के साथ युद्ध हुआ जिसके बाद सिख गुरुओं का काल खत्म हो गया। अहमद शाह दुर्रानी ने 1748 में इस क्षेत्र और भारत को पाने का प्रयास किया। 1764 से 1799 तक सिख महाराजा रणजीत सिंह ने अफगानियों से लड़ाई की और 12 अप्रैल 1801 में पंजाब में दोबारा से सिख राजा का राज बसाया।

लगभग 100 साल के लंबे अंतराल के बाद रणजीत सिंह ही पहले ऐसे राजा हुए जो एक सिख समुदाय से आते थे। उनके राज में कभी किसी को मृत्युदंड नहीं दिया गया था और साथ ही उन्होंने जजिया पर भी रोक लगाई थी।

रणजीत सिंह ने 12 जुलाई 1799 को लाहौर (वर्तमान पाकिस्तान का इलाका) और पंजाब में अफगानियों पर विजय प्राप्त किया और यहां पर पहला सिख साम्राज्य स्थापित किया। उन्होंने लाहौर को ही अपनी राजधानी बनाई थी।

कौन थे महाराजा रणजीत सिंह?

रणजीत सिंह एक सिख परिवार से आते थे। उनका जन्म 13 नवंबर 1780 में हुआ था। शुरू से ही उनके अंदर राजा – महाराजा वाले गुण थे। अपने पूरे जीवन काल में उन्होंने 20 बार शादी की थी जिनमें उनकी पत्नियां हर जाति धर्म समुदाय से वास्ता रखती थी। उन्होंने लगभग 23 साल की छोटी सी उम्र में ही युद्ध करके पंजाब पर अपना शासन कायम किया था। उस वक्त की भारत की सबसे अत्याधुनिक सेना, सिख खालसा सेना का रणजीत सिंह ने ही गठन किया था।

उनके जीवन का सबसे बड़ा दिन 12 जुलाई ही माना जाता है क्योंकि इसी दिन सन 1799 में उन्होंने पंजाब और लाहौर के पूरे इलाके पर अपना शासन स्थापित किया था। 1801 से लेकर 1739 तक करीब 40 साल के राज के कारण ही उन्हें महाराजा की उपाधि दी गई थी।

रणजीत सिंह को कई सारे उपनाम भी दिए गए थे। जैसे महाराजा ऑफ पंजाब, महाराजा ऑफ़ लाहौर, शेर – ए – पंजाब, शेर – ए – हिंद, लॉर्ड ऑफ फाइव रिवर्स, आदि।

लाहौर के किले में लगाई गई महाराजा रणजीत सिंह की मूर्ति

कई दफा इन्होंने अंग्रेजों के साथ भी युद्ध किए और हर बार अपने क्षेत्र से उन्हें पीछे हटने को मजबूर किया। जितने दिन महाराजा शासन में रहे, किसी ने भी पंजाब की तरफ आंख उठाकर भी नहीं देखा।

बेशकीमती कोहिनूर के मालिक थे रंजीत सिंह

दुनिया का सबसे बेशकीमती हीरा कोहिनूर महाराजा रंजीत के ही खजाने की रौनक था। मगर 1839 में उनकी मौत के बाद अंग्रेजों ने धीरे-धीरे पंजाब के इलाके में अपना राज स्थापित करना शुरू कर दिया। 30 मार्च 1849 में अंग्रेजों और सिख लोगों के बीच हुई लड़ाई के बाद पंजाब को ब्रिटिश अंपायर का अंग बना दिया गया। जिसके बाद कोहिनूर हीरे को क्वीन विक्टोरिया को सौंप दिया गया। उसी वक्त से आज तक कोहिनूर ब्रिटिशर्स के पास है।

कुछ प्रसिद्ध मंदिरों पर सोना चांदी चढ़वाया था शेर ए हिंद ने

महाराजा रणजीत सिंह को आभूषणों का बहुत शौख था। इसी प्रेम और दिलचस्पी के कारण उन्होंने कुछ मंदिरों और गुरुद्वारों पर सोने और चांदी की नक्काशी करवाई थी।

अमृतसर में स्थित हरी मंदिर साहिब गुरुद्वारे में उन्होंने संगमरमर के पत्थर का काम करवाया था। साथ ही मंदिर के ऊपरी भाग पर सोना जड़वा दिया था। इसी कारण से आज वह स्वर्ण मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है।

काशी विश्वनाथ मंदिर के ऊपर आज जो स्वर्णपत्र देखने को मिलते हैं, उसे भी महाराजा ने ही अपनी काशी यात्रा के वक्त लगवाया था।

रणजीत सिंह जगन्नाथ मंदिर पर कोहिनूर लगवाना चाहते थे। मगर उससे पहले ही उनकी मौत हो गई और कोहिनूर भारत से चला गया।

लाहौर में बनाई गई है रणजीत सिंह की मूर्ति

महाराजा रणजीत सिंह ने पंजाब और लाहौर के लिए काफी लड़ाइयां लड़ी थी और यहां के सिख समाज के लिए किसी मसीहा से कम नहीं थे। इसलिए हाल ही में, 27 जून 2019 को उनकी एक प्रतिमा का उद्घाटन लाहौर, पाकिस्तान में किया गया। उनकी यह प्रतिमा 8 फीट ऊंची है और इसे बनाने में 8 महीने का वक्त लगा है।

जिस भारत-पाकिस्तान के हिस्से के कारण 1947 में दोनों देशों का बटवारा किया गया था, उसी हिस्से को एक डोर से बांध कर रणजीत सिंह ने 40 साल अपनी हुकूमत चलाई थी। उस वक्त में लाहौर और पंजाब में किसी भी तरह की दूरी नहीं थी।

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