आम खाताधारकों पर मिनिमम बैलेंस के लिए पेनाल्टी और ज्यादा ट्रांजेक्शन करने पर तुरंत चार्ज लगाने वाले एसबीआई ने पिछले पांच साल मे कुल 1 लाख 63 हजार 934 करोड़ रुपये का लोन राइट-ऑफ किया है। साफ है कि आम आदमी को लूटने ओर कारपोरेट को बांटने की नीति मोदी सरकार में खूब परवान चढ़ रही है।
सबसे बड़ी बात तो यह है कि इस 1 लाख 63 हजार 934 करोड़ रुपये का बड़ा हिस्सा पिछले दो साल में राइट-ऑफ किया गया है। देश के सबसे बड़े बैंक भारतीय स्टेट बैंक ने 2016-17 में 20 हजार,339 करोड़ रुपये के फंसे कर्ज को बट्टा खाते डाल दिया था, उस वक्त भी यह सरकारी बैंकों में सबसे अधिक राशि थी जो बट्टा खाते डाली गई।
कुछ दिन पहले खबर आई कि 2018-19 में भारतीय स्टेट बैंक ने 220 बड़े कारपोरेट डिफॉल्टर्स के 76,000 करोड़ रुपये के बैड लोन को बट्टे खाते में डाल दिया है। यानी मात्र 2 साल में यह रकम तिगुनी हो गयी हैं 2017-18 के आंकड़े तो उपलब्ध ही नही कराए जा रहे हैं, एक रिपोर्ट में यह सामने आया था कि सरकारी क्षेत्र के बैंकों ने साल 2017-18 में 1.20 लाख करोड़ रुपये मूल्य के फंसे कर्ज (NPA) को बट्टे खाते में डाला है।
यह राशि वित्त वर्ष 2017-18 में इन बैंकों को हुए कुल घाटे की तुलना में 140 फीसदी अधिक थी, सरकारी क्षेत्र के कुल 21 बैंकों ने साल 2016-17 तक मुनाफा कमा रहे थे। लेकिन साल 2017-18 में उन्हें 85,370 करोड़ रुपये का घाटा हुआ। आखिरकार ये किसका पैसा है जो इस तरह से राइट ऑफ के बहाने माफ कर दिया जाता है ?
यह हमारे आपके खून पसीने की कमाई है जिसे पेट्रोल डीजल पर टैक्स बढ़ा बढ़ा कर वसूला जाता है और एक दिन सरकार सदन में कहती है, कि वो पैसे तो आप भूल जाइए वह तो राइट ऑफ कर दिया गया है।
कितनी बड़ी विडम्बना है, कि किसानों और छोटे कामगारों पर तो बकाया बैंकों के छोटे कर्ज की वसूली के लिए तहसीलदार और लेखपाल जैसे राजस्व कर्मचारी दबाव बनाया जाता है। और उनके उत्पीड़न के कारण किसान आत्महत्या कर लेता है। लेकिन जब बड़े कारपोरेट की बात आती है, तो बैंक उस कर्ज़ को वसूलने में न केवल ढिलाई बरतता है, बल्कि एनपीए होने पर बकाया कर्ज को माफ माफ कर बट्टे खाते में डाल देता है। यह दोहरा रवैय्या देश की अर्थव्यवस्था के लिए घातक सिद्ध हो रहा हैं।
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