0

व्यक्तित्व – सरदार वल्लभ भाई पटेल

Share

सरदार वल्लभभाई पटेल. लौह पुरुष, भारत के बिस्मार्क और स्वतंत्र भारत के पहले उपप्रधान मंत्री और ग्रहमंत्री.  पटेल को भारत के एकीकरण का जनक भी कहा जाता हैं. उन्होंने बिखरे हुए भारत की अनेक  रियासतों को एकजुट किया था.
रियासतों का एकीकरण 

  • जोधपुर 

इनमे सबसे पहले बीकानेर को शामिल किया. दूसरा दिलचस्प मामला जोधपुर रियासत का था.  भोपाल के नवाब की पहल पर जोधपुर के महाराजा और जिन्ना के बीच एक बैठक हुई. जिसमे जिन्ना ने जोधपुर के महाराजा को करांची में पूर्ण बन्दरगाह और हथियारों की निर्बाध आपूर्ति और उसके अकाल पीडितो के लिए अनाज की आपूर्ति का भरोसा दिया और एक खली पन्ना और कलम दे दी. और  कहा कि इस पन्ने पर अपनी शर्ते लिख सकते हैं. इस बात की भनक सरदार पटेल को लग गयी, पटेल ने तुरंत जोधपुर से संपर्क साधा और भारत की तरफ से उसे हथियारों की आपूर्ति और अनाज देने का आश्वासन दिया. पटेल के हस्तक्षेप से जोधपुर के महाराजा को भारत के पक्ष में आने के लिए मना लिया.

  • जूनागढ़ 

जिन राज्यों ने 15 अगस्त तक विलय पत्र पर हस्ताक्षर नही किये उनमे से एक जूनागढ़ भी था जो पश्चिम भारत में कठियावाड़ प्रायद्वीप में स्तिथ था. वहाँ का नवाब मोहबत खान पाकिस्तान के साथ मिलना चाहता था और प्रजा हिंदुस्तान के साथ मिलना चाहता है. जुनागढ़ की सीमा के अन्दर हिदुओ का पवित्र स्थल सोमनाथ पड़ता था. इसी रियासत में गिरनार भी था. 1947 में जूनागढ़ का नवाब गर्मियों की छुट्टियां यूरोप में मना रहा था.

Image result for junagarh

जूनागढ़ फोर्ट


जब वह बाहर ही था तो उसी समय के दीवान को हटाकर सर शाहनवाज भुट्टो को जूनागढ़ का दीवान बना दिया गया जो मुस्लिम लीग के नेता और उसके प्रमुख जिन्ना के करीबी थे. जब नवाब यूरोप से लौटा तो तो उसके दीवान ने भारत संघ में न मिलने का दवाब डाला. जब 14 अगस्त को हस्ताक्षर करने की बात आई तो नवाब ने कहा की वह पाकिस्तान में मिल जायेगा. कानूनी रूप से गलत नही था पर भौगोलिक रूप से इसका कोई मतलब नही था क्योकि यहाँ की 82 फीसदी जनता हिन्दू थी. जो जिन्ना के द्विराष्ट्रवाद सिद्धांत से मेल नही खाता था. इस घटना ने खासकर पटेल की ‘कमजोर नस’ दबा दी थी. सितम्बर के मध्य में वीपी मेनन समझोता करने जूनागढ़ के नवाब से मिलने गये परन्तु नवाब ने बीमारी का बहाना बनाकर मिलने से मना कर दिया. आख़िरकार भारत सरकार ने 20 फरवरी 1948 को जनमत संग्रह में जूनागढ़ के 91 फीसदी लोगों ने हिंदुस्तान में शामिल होने का फैसला कर लिया.
  • हैदराबाद

हैदराबाद रियासत में कुछ ऐसा ही था वह का शासक न ही पाकिस्तान के साथ मिलना चाहता था और ना ही हिंदुस्तान के साथ. पटेल के विश्वास पात्र सहयोगी के. एम. मुन्सी को हैदराबाद के निजाम से समझोता करने भेजा गया लेकिन बात नही बनने पर 13 सितम्बर 1948 को भारतीय सेना की एक टुकड़ी हैदराबाद भेजी गयी. चार दिनों में ही सेना ने हैदराबाद रियासत पर नियंत्रण कर लिया. 17 सितम्बर रात को निजाम ने रेडियो पर भारत के साथ विलय की घोषणा कर दी.
पटेल-नेहरू सम्बन्ध 
आजादी मिलने के कुछेक सालों बाद ही सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी को अन्दर और बहार से कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा. ब्रिटिश काल में जन्मी विद्रोही भावना, आजादी मिलने के बाद वे सत्ता का सुख भोगने लगे. कांग्रेस पार्टी तब भीमकाय और आलसी हो गयी थी. नेहरू के सामने जैसे एकसाथ ही चुनौतियों का अम्बार सा लग गया था. अपने चरित्र और व्यक्तित्व के हिसाब से नेहरू और पटेल 2 ध्रुवों पर खड़े थे. हालांकि पटेल नेहरू सरकार में नंबर 2 का ओहदा रखते थे. नेहरू एक रईस परिवार से सम्बन्ध रखते थे वहीं पटेल एक कृषक परिवार से सम्बन्ध रखते थे. नेहरू एक नरम स्वभाव के और पटेल एक ‘सख्त मिजाज इन्सान थे’.

Image result for nehru and patel

साभार : दी हिन्दू


इतनी असमानताओं के बावजूद दोनों में कुछ समानताएं थी. दोनों घोर देशभक्त थे, उनके कार्यों और विचारों के प्रति उनकी निष्ठा में कोई कमी नहीं थी. पर सन् 1949 के आते आते दोनों में गंभीर मतभेद पनप गये थे.  आर्थिक नीतियों और सांप्रदायिकता के मुद्दे पर उनके विचारों में बुनियादी फर्क था.  जब भारत ब्रिटिश सम्राट की प्रमुखता वाले एक ‘डोमिनियन स्टेट’ से पूर्ण संप्रभु गणराज्य (रिपब्लिक स्टेट) में तब्दील होने वाला था तब नेहरू चाहते थे कि सी. राजगोपालचारी को ही गवर्नर जनरल से सीधे राष्ट्रपति बना दिया जाए. कांग्रेस पार्टी के अन्दर ‘राजाजी’ की व्यापक स्वीकार्यता भी थी. लेकिन नेहरु की तब निराशा हाथ लगी जब पटेल ने ‘राजाजी’ के बदले कांग्रेस संगठन की तरफ से राजेंद्र प्रसाद का नाम आगे करवा दिया. भारतीय स्वंत्रता की प्रथम घोषणा वाले पुराने मूल दिवस 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में चुना गया. नये राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने इस समारोह की सलामी ली. इस राजनीतिक लड़ाई की बाजी पटेल के हाथ रही.
Image result for purushottamdas tandan
इसके कुछ महीनों बाद ही इस राजनीतिक  शीतयुद्ध का दूसरा चेप्टर शुरू हुआ कांग्रेस के अध्यक्ष के चुनाव होना था, पटेल ने पुरुषोत्तम दास टंडन का नाम आगे किया. टंडन और और नेहरू दोनों मित्र थे, पर वैचारिक रूप से दोनों दो ध्रुवों पर खड़े थे. टंडन दक्षिणपंथी विचारधारा के बुजुर्ग हिदू थे. नेहरू की नजरों में टंडन यदि कांग्रेस अध्यक्ष चुने जाते तो बहुत ही गलत सन्देश जाता. लेकिन जब अगस्त में चुनाव हुए तो टंडन आसानी से चुनाव जीत गये. इसके बाद नेहरू ने राजगोपालचारी को पत्र लिखा कि ‘टंडन का कांग्रेस अध्यक्ष पर चुनाव मेरे सरकार  में रहने से ज्यादा महत्वपूर्ण समझा जा रहा है. मेरा अंतर्मन कह रहा कि मैं कांग्रेस और सरकार के लिए अपनी उपयोगिता खो चूका हूँ’. इसके बाद राजाजी ने दोनों धड़ो के बीच समझौता कराने की कोशिश की. और पटेल नरम रुख अख्तियार करने को राजी हो गये, लेकिन उन्होंने कहा कि दोनों नेताओं के नाम से एक साझा स्टेटमेंट जारी किया जाना चाहिए कि वे(पटेल) और नेहरू कांग्रेस पार्टी के खास मौलिक नीतियों पर एकमत है. पर प्रधानमंत्री नेहरू ने अकेले ही बयान दिया. इसके 2 सप्ताह बाद नेहरू ने इस्तीफा देने की धमकी दे दी. सितम्बर 1950 को नेहरू ने एक प्रेस रिलीज कर इस बात पर खेद जताया कि ‘कुछ साम्प्रदायिक और प्रतिक्रियावादी तत्वों ने टंडन की जीत पर खुलकर ख़ुशी का इजहार किया था’.  उस समय भारत पाकिस्तान के विपरीत एक सेक्युलर देश था.
Image result for patel nehru

सरदार पटेल


नेहरू की राय में यह भारत सरकार की जिम्मेदारी थी कि कांग्रेस पार्टी और वह ( सरकार ) अल्पसंख्यकों को हिंदुस्तान में सुरक्षित महसूस कराये. जबकि पटेल चाहते थे कि वे अपनी जिम्मेदारी स्वयं उठाये. अल्पसख्य्कों के मुद्दे पर नेहरू और पटेल कभी भी एक-दुसरे के कायल नहीं हो सके. पर पटेल ने इस मुद्दे को तूल देना कभी उचित नहीं समझा. क्योंकि उस समय पटेल जानते थे कि कांग्रेस पार्टी का विखंडन मतलब देश का विखंडन हो जायेगा. इसके बाद पटेल ने उनसे मिलने वाले कांग्रेसी नेताओं को कह दिया ‘वे वही करे जो जवाहरलाल  कहे’. 2 अक्टूबर 1950 को इंदौर में दिए एक भाषण में उन्होंने कहा कि ‘वे महात्मा गाँधी के बहुत सारे अहिंसक शिष्यों में से एक है, चूँकि बापू अब हमारे बीच नहीं है तो नेहरू ही हमारे नेता है’.
अंतिम दिनों में पटेल  
बापू ने उनको अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था. पटेल को महत्मा गाँधी को दिया वह वादा याद था जिसमें उन्होंने नेहरू के साथ मिलकर काम करने की बात कही थी. उस समय उनका स्वास्थ्य भी उनका ठीक नहीं था. बिस्तर पर लेटे-लेटे ही उन्होंने नेहरू के जन्मदिन पर उन्हें बधाई पत्र लिखा था’. एक सप्ताह बाद प्रधानमंत्री नेहरू उनसे मिलने घर आये तब उन्होंने कहा कि ‘जब मेरा स्वास्थ्य थोडा ठीक हो जायेगा तो मै आपसे अकेले में बात करना चाहता हूँ’.
Image result for patel in his last time

सरदार पटेल


इसके तीन सप्ताह बाद(15 दिसम्बर) ही पटेल मृत्यु हो गयी थी.  खुद प्रधानमंत्री को ही मंत्रिमंडल के शोकसंदेश लिखने की जिम्मेदारी उठानी पड़ी. नेहरू ने ‘एक एकीकृत और मजबूत भारत के निर्माण में पटेल की प्रतिबद्धता को रेखांकित किया साथ ही रजवाड़ों की जटिल समस्या सुलझाने में भी उनकी प्रतिभा की सराहना की’. पटेल और नेहरु सहयोगी भी थे और प्रतिद्वंदी भी. इस तरह पटेल और नेहरू दोनों ही महान देशभक्त, आजादी की लड़ाई के बेजोड़ योद्धा, महान जनसेवक, महान प्रतिभा और विराट उपलब्धियों वाले राजनेता थे.
(With inputs from Ram chandra guha’s book ‘India after gandhi’)
Exit mobile version