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आजमगढ़ में राष्ट्रीय ओलमा काउन्सिल ने रखी बसपा की लाज

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उत्तर प्रदेश के 75 जिलों में से सिर्फ एक जिला आजमगढ़ है जहाँ राष्ट्रीय ओलमा कौंसिल के समर्थन से बसपा 4 सीट जीतने में कामयाब हुई है यानि कि BSP की लगभग 25% सीट आज़मगढ़ से आई है, क्योंकि बसपा को 19 में से 4 सीटे आज़मगढ़ से मिली है। इस जीत का श्रेय अवश्य RUC व उसके अध्यक्ष मौलाना आमिर रशादी की ही देन माना जा रहा है क्योंकि 2012 में बसपा आज़मगढ़ की 10 में से सिर्फ 1 सीट जीतने में कामयाब हो सकी थी और 2014 में सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के आज़मगढ़ से सांसद बन जाने के बाद समाजवादी पार्टी के इस किले आज़मगढ़ को भेद पाना बसपा के लिए और मुश्किल था परंतु राष्ट्रीय ओलमा काउंसिल के समर्थन ने बसपा के लिए संजीवनी का काम किया है और वो आज़मगढ़ में 4 सीट जीतने में कामयाब रही और 4 सीट पे दुसरे नम्बर पर रही। बसपा की आज़मगढ़ में ये जीत और काउन्सिल का समर्थन तब और महत्वपूर्ण और बाअसर हो जाता है जब ये सामने आता है कि पूर्वांचल के वो ज़िले जहां बसपा को बहुत उम्मीदें थी जैसे कि ग़ाज़ीपुर, बलिया, मऊ, गोरखपुर, देवरिया आदि जिलों में उसे सिर्फ मऊ से 1 सीट मिल सकी। जिन सीटो पर बसपा जीती है अगर उन सीटों की बात करे तो राष्ट्रीय ओलमा कौंसिल की अच्छी ज़मीनी पकड़ है इन सीटो पर क्योंकि पिछले विधनसभा चुनाव में ओलमा कौंसिल ने इन सीटो पर अकेले चुनाव लड़ कर काफी अच्छा प्रदर्शन किया था खासकर दीदारगंज विधानसभा सीट पर तक़रीबन 38000 वोट पाकर तीसरे स्थान पर थी कौंसिल तो वहीँ अन्य सीटों पर भी 5 हज़ार से 10 हज़ार के बीच वोट पाई थी। अगर ज़िले की 8 सीट जिसपर बसपा पहले या दुसरे नम्बर पर रही है का विश्लेषण किया जाये तो ज्ञात होगा कि तकरीबन 6 सीटों पर बसपा की जीत और हार का अंतर मात्र 5000 के आसपास रहा जिससे काउन्सिल के समर्थन का असर महसूस किया जा सकता है। क्योंकि काउन्सिल के अकेले लड़ने की स्तिथि में यही अंतर बसपा की हार का कारण हो सकता था। ऐसे में राष्ट्रीय ओलमा काउन्सिल का असर बसपा की जीत पर साफ़ नज़र आता है।

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