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रोजगार की कमी से युवा परेशान, सरकार बेफिक्र

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मोदी सरकार द्वारा किए गए दांवों की पोल एक एक करके खुलती जा रही है, कहीं अर्थव्यवस्था न सुधार पाना, कहीं राजनीतिक और चुनावी रूप से हार का सामना करना,ऊपर से कर्जा लेकर भागने वालो को ढूंढ कर लाना जैसे कठिन काम ,मोदी सरकार चारो तरफ कई कठिन प्रश्नों पर घेरी आ रही है लेकिन असली समस्या अभी आनी बाकी है जिस नोजवान जनता के सहारे मोदी सरकार बनाने में सफल हो पाए वही 65 प्रतिशत जनता के सपनो को चूर चूर कर देने वाली एक रिपोर्ट सामने आई है जिसके बाद एक और बड़े वर्ग का सरकार के वादों पर से विश्वास उठ जाएगा.
हाल ही में एक रिपोर्ट सामने आई है जिसमे देश के युवाओं को रोजगार न दे पाने की मोदी सरकार की विफलता उजागर हो गई.

वादा खिलाफ़ी का नया उदाहरण

मोदी सरकार ने 2015 में 100 करोड़ की महत्वकांक्षी नेशनल करियर सेंटर की स्थापना की थी। इस सेंटर को एम्प्लॉयमेंट एक्सचेंज के आधुनिक ड्राफ्ट के रूप में पेश लिया गया था। दावा था कि इस सेंटर से ही देश में सरकारी -प्राइवेट हर तरह की नोकरियाँ मिलेंगी.
युवाओं को यहाँ वन विंडो सिस्टम की सुविधा मिलेगी उम्मीद लगाई जा रही थी कि इस सेंटर से हर साल लगभग 50 लाख जॉब्स की संभावना निकलेंगी।परंतु सच्चाई कुछ ओर है.

घटते रोजगार के मौके

सरकारी आंकड़ो के अनुसार जुलाई 2015 से लेकर जनवरी 2018 तक इस सेंटर पर 8 करोड़ 50 लाख युवाओं ने नोकरी की उम्मीद में अपना नाम रजिस्टर कराया। लेकिन मात्र 8 लाख 9 हजार नोकरियाँ ही लोगो को मिल पाई। अधिकतर नोकरियाँ 12 वीं पास के लिए व निजी कंपनियों की ओर से आई थी.
2015-2016 में अधिक नोकरियाँ निकली और अगले साल इसकी संख्या आधी से भी कम हो गई। यह नोटबन्दी के बाद का समय था इसके बाद सेंटर पर रजिस्टर कराने वाले युवाओं की संख्या में भी लगातार कमी आ रही है.

गिरता ग्राफ

युवाओं को रोजगार के सपने दिखाने वाली सरकार ने जितनी जोर शोर से रोजगार का ढिंढोरा पीटकर नेशनल करियर सेंटर की शुरुआत की उतनी ही तेज़ी वह आगे बरकरार नहीं रख पाए। इस और ध्यान न देने के परिणामस्वरूप युवाओं को रोजगार की संख्या में लगातार गिरावट आई है.

  • 2015-2016 के बीच 5 लाख 17 हजार नोकरियाँ मिली
  • 2016-2017 के बीच यह आंकड़ा 2 लाख 45 हजार हो गया
  • 2017-2018 के बीच भी आंकड़े 2 लाख के करीब है
  • कर्नाटक और महाराष्ट्र की निजी कंपनियों में सबसे अधिक नोकरियाँ मिली, सेंटर पर रजिस्टर करने वाले युवाओं में 50 प्रतिशत से अधिक बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु के थे। इसमें 30 प्रतिशत लड़कियाँ व 70 प्रतिशत लड़को ने रजिस्टर कराया।

Pic Credit – HT

वादा और हकीकत

सरकार ने तीन साल पहले बड़े दांवों के साथ नेशनल करियर सेंटर की शुरुआत की थी इसे स्थापित करने के लिए सरकार ने बड़ी निजी कंपनियों से भी मदद का आग्रह किया था, तीन दर्जन से अधिक शहरों में सेंटर को खोलने की योजना बनाई गई व सभी प्रकार की नोकरियों के बारे में जानकारी देना अनिवार्य किया गया इसके अलावा सभी सरकारी व निजी कंपनियों भी रजिस्टर कराएगी और इसके माध्यम से भी नोकरियाँ दी जाएंगी.
इसमें हर कैंडिडेट की सूचना को आधार कार्ड से जोड़ना अनिवार्य किया गया जिससे ऐसा डाटाबेस तैयार हो जो एक ही जगह कैंडिडेट की सारी सूचना दे सके व  सूचना वेरीफाई भी की जा सके।
अन्य योजनाओं की ही तरह यह योजना भी धराशाही हो गई ,सरकारी उदासीनता का परिणाम यह है कि युवा बेरोज़गारी के भार तले दबे रहे है, लेकिन इन सब से दूर सत्ता शायद 2019 के लिए नए वादे तैयार करने में व्यस्त दिख रही है.
तीन साल बीत जाने के बाद सरकार के सारे दावे बस दावे ही नज़र आ रहे है और जल्द ही इसमें सुधार का कोई लक्षण भी नहीं दिख रहे.