तालिबान(Talibani) का अफगानिस्तान (Afghanistan) पर कब्ज़ा हो चुका है। अब आम जनता को 90 के दशक का वो भयानक मंजर याद आने लगा है, जिससे बीस साल पहले अफगानिस्तानी निकल कर आधुनिकता की राह पर चले थे।
तालिबानी सरकार की स्थापना होने से पहले ही उसे विरोध का सामना करना पड़ रहा है। जिसके बाद तालिबान की परेशानियां बढ़ती ही जा रही है। राजधानी काबुल समेत कई अन्य प्रांतों में यह आंदोलन आग की तरह फैल गया है।
इसके साथ ही अफगानिस्तान के पंजशीर इलाकों में तालिबान के खिलाफ लड़ने के लिए पूर्व सैनिकों ने मोर्चा संभालने की शुरुआत कर दी है। पूर्व सैनिकों में अफगानिस्तान की सत्ता तालिबान के हाथों से छीनने के लिए युद्ध की तैयारियां शुरू कर दी हैं। तालिबान के खिलाफ पूरे सैन्य अभियान की अगुवाई अहमद मसूद कर रहे हैं। आपको बता दें कि अहमद मसूद, अहमद शाह मसूद के बीते हैं।
तालिबानियों को मात दे चुके हैं अहमद के पिता
अहमद मसूद के पिता “अहमद शाह मसूद” भी कभी तालिबानियों के आगे नहीं झुके। पंजशीर प्रांत में तालिबान कभी हुकूमत नहीं कर पाया, क्योंकि उनके सामने हमेशा अहमद शाह मसूद खड़ा रहा।
90 के दशक में भी जब पूरे अफ़गानिस्तान पर तालिबान का कब्ज़ा था, तब भी तालिबान पंचशीर की एक इंच जमीन भी अपने कब्ज़़े मेें नहीं कर पाया था। आज भी पंचशीर तालिबान के विरोध का केंद्र बना हुआ है।
पंजशीर में मौजूद हैं उपराष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह
तालिबान के खिलाफ अगर दूसरे नेताओं की बात करें, तो अमरूल्ला सालेह ने भी तालिबान के खिलाफ लड़ने की घोषणा कर दी है। उन्होंने खुद को अफगानिस्तान का राष्ट्रपति भी घोषित कर दिया है, साथ ही कहा है कि वह तालिबान के सामने नहीं झुकेंगे। वह लगातार तालिबान के खिलाफ रणनीति बना रहे हैं।
सालेह पूर्व सैनिकों, पुलिस और अन्य लोगों के साथ मिलकर तालिबान को हराने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं। सबसे खास बात यह है कि अमरुल्ला भी इस वक्त पंजशीर में ही मौजूद हैं। ऐसे में तालिबान को इस प्रांत से बड़ी चुनौती मिलने की पूरी संभावना है।
‘अमेरिका हथियार दे, हम लड़ाई करेंगे’ : अहमद मसूद
अहमद मसूद (Ahmad Massoud) ने वाशिंगटन पोस्ट में एक लेख लिखा है। इस लेख में उन्होंने तालिबान के खिलाफ लड़ाई को जोर देन की बात कही है। अहमद मसूद का कहना है कि पंजशीर इलाके में उनके साथ हजारों मुजाहिद्दीन के लड़ाके हैं।
यह लड़ाके तालिबान के खिलाफ हर जंग लड़ने को तैयार हैं। अहमद मसूद ने आगे बताया कि अमेरिका भले ही अफगानिस्तान से चला गया हो, लेकिन वो हमें हथियार और अन्य मदद दे सकता है। ताकि हम तालिबान को हरा पाएं। अन्य विदेशी रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि अफगानिस्तानी सेना के कई मौजूदा और पूर्व सैनिक भी पंजशीर में अहमद मसूद के साथ हैं।
दरअसल, ऐसा माना जा रहा है कि अफगानिस्तान की सेना के कई सैनिकों ने तालिबान के सामने सरेंडर कर दिया था, और तालिबान में शामिल हो गए थे। ऐसे में जो सैनिक तालिबान को मात देना चाहते थे, वो काफी नाराज़ हैं। इस तरह सरेंडर करने से आहत सैनिकों ने पंजशीर में मुजाहिद्दीन अहमद मसूद के साथ हाथ मिला लिया है।
सड़कों पर है जनता
एक तरफ तालिबान अफगानिस्तान में सरकार बनाने की तैयारियों जुट गया है। वहीं अफगानिस्तान की जनता अलग-अलग इलाकों में उसके खिलाफ सड़कों पर उतर गई है। शुरूआती दिनों में काबुल से ऐसी कोई खबरें नहीं थी। सब कुछ शांत था, लेकिन अब यहां पर भी जनता तालिबान के खिलाफ सड़कों पर प्रदर्शन कर रही है।
महिलाएं कर रही हैं अगुवाई
इन प्रदर्शनों की खास बात यह है कि ऐसे प्रदर्शनों की अगुवाई महिलाएं कर रही हैं। इतना ही नहीं, बीते अफगानिस्तान के स्वतंत्रता दिवस के मौके पर देश में कई हिस्सों में झंडा यात्रा निकाली गई। झंडा यात्रा में लोगों ने तालिबानी झंडे को पूरी तरह नकार दिया और अपना राष्ट्र ध्वज फहराया।
गौरतलब है कि तालिबान कई बार दावा कर चुका है कि उसके शासन में किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा, फिर भी देश के विभिन्न इलाकों में तालिबान के लड़ाके लोगों को निशाना बना रहें हैं।
तालिबान अधिकतर उन लोगों को अपना निशाना बना रहा है, जो तालिबान के खिलाफ काम किया करते थे। साथ ही नाटो फोर्स के साथ काम किया करते थे। तालिबान के कब्ज़़े के बाद तालिबान द्वारा कई पत्रकारों, पत्रकारों के परिजनों को निशाना बनाया जा चुुका है।