आखिर है कौन ये संदिग्ध नागरिक? देश भर में NPR की यानी राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर लागू किया जा रहा है। इस एनपीआर में एक टर्म है ‘संदिग्ध नागरिक’ लेकिन इस टर्म की कोई परिभाषा उपलब्ध नहीं है।
2003 रूल्स में ‘संदिग्ध नागरिकता’ को परिभाषित नहीं किया गया है। यहां तक कि मुख्य कानून यानी 1955 के सिटीजनशिप एक्ट में भी इसके बारे में कुछ नहीं कहा गया है। नागरिकता संशोधन कानून 2003 रूल्स के उपनियम (4) के नियम 4 में कहा गया है कि, ‘जनसंख्या रजिस्टर (NPR) के वेरिफिकेशन प्रक्रिया के दौरान किसी व्यक्ति या परिवार को ‘संदिग्ध नागरिक’ या ‘संदिग्ध नागरिकता’ माना जा सकता है। लेकिन सवाल उठता है कि ‘संदिग्ध नागरिकता’ आखिर है क्या? किस आधार पर कोई व्यक्ति या परिवार को ‘संदिग्ध नागरिक’ माना जा सकता है?
यह बेहद आश्चर्य की बात है, कि इन नियमों में कहीं यह स्पष्ट नहीं है कि संदिग्ध नागरिक घोषित करने का आधार क्या होगा? इसलिए यह पूरी तरह सरकारी कर्मचारी के विवेक पर निर्भर होगा कि एनपीआर के सत्यापन के दौरान वह किसी को भी संदिग्ध नागरिक घोषित कर सकता है।
इस 2003 रूल्स के नियम 4 के उपनियम (4) वेरिफिकेशन और जांच प्रक्रिया की बात करता है। ‘वेरिफिकेशन प्रक्रिया के तहत जिन लोगों की नागरिकता संदिग्ध होगी, उनके विवरण को स्थानीय रजिस्ट्रार आगे की जांच के लिए जनसंख्या रजिस्टर में उपयुक्त टिप्पणी के साथ देंगे। ऐसे लोगों और उनके परिवार को वेरिफिकेशन की प्रक्रिया खत्म होने के तत्काल बाद एक निर्धारित प्रो-फॉर्मा में दिया जाएगा।
एक बार जब कोई व्यक्ति या परिवार ‘संदिग्ध’ नागरिक मान लिया जाएगा, तो (a) उससे कहा जाएगा कि वह ‘निर्धारित प्रोफार्मा’ में कुछ जानकारियां दे और (b) उसे NRIC में शामिल किया जाए या नहीं इस बारे में अंतिम निर्णय से पहले उसे ‘सब-डिस्ट्रिक्ट (तहसील या तालुका) रजिस्ट्रार’ के सामने अपना पक्ष रखने का मौका दिया जाएगा। यह पूरी कवायद स्थानीय अधिकारियों की मनमर्जी पर आधारित होगी और इसलिए इसमें इस बात की जबरदस्त गुंजाइश है, कि इसमें मनमानापन हो या इसका दुरुपयोग हो। इस पूरी प्रक्रिया में जो भयानक भ्रष्टाचार मचेगा उसकी कल्पना भी नही की जा सकती।
लेकिन यहाँ अब एक महत्वपूर्ण प्रश्न खड़ा होता है, कि संदिग्ध नागरिक घोषित होने ओर उस स्टेटस को हटाने की उचित न्यायिक प्रक्रिया के बीच जो समय है, क्या उसके अंदर उस व्यक्ति के वोटिंग राइट्स निलंबित किये जा सकते हैं। यह सवाल असम में भी खड़ा हुआ था, जब NRC से छूटे हुए लोगो को डी वोटर कहा गया यह माना गया कि असम में जिन लोगों को एनआरसी से बाहर रखा गया है, उन्हें ‘डी’ (संदिग्ध) मतदाताओं के रूप में चिह्नित किया जाना चाहिए। फिलहाल ‘डी’ मतदाता असम के मतदाता सूची में बने हुए हैं, वे तब तक चुनाव में मतदान नहीं कर सकते, जब तक कि उनका मामला किसी विदेशी ट्रिब्यूनल द्वारा तय नहीं किया जाता।
यानी NPR से अभी जो सबसे बड़ा खतरा दिखाई दे रहा है, वह यह है कि एनपीआर का सहारा लेकर करोड़ों लोगों को डी-वोटर घोषित कर उनके वोटिंग राइट्स निलंबित किये जा सकते है.