मीडिया में भी एक नया ट्रेंड चला है और वह है "गुंडा" कल्चर

Share

AMU में जिस तरह से रिपब्लिक टीवी की पत्रकार गुंडागर्दी कर रही थी, वह मीडिया के घमंड,आक्रामक और अभद्र होने का एक उदाहरण है। दरअसल मीडिया में भी एक नया ट्रेंड चला है और वह है “गुंडा” कल्चर। स्टूडियो में भौंपू की तरह जो जितना तेज चिल्लाएगा वह उतना बड़ा पत्रकार कहलाएगा। चैनल डिबेट में ये एंकर और पत्रकार पार्टियों के प्रवक्ताओं से ऐसे गुंडई से बतियाते हैं, जैसे हिटलर के नाती-पोता यही हैं। याद रखिए ये टीवी चैनल का स्टूडियो वह जगह है, जहां अपने अतिथियों को बुलाकर बेइज्जत किया जाता है, जो भारतीय संस्कृति के बिल्कुल विरूद्ध है।
ये तो रही स्टूडियो वाले गुंडे की बात। अब आते हैं ग्राउंड वाले गुंडों पर। चैनल का माइक हाथ में लिए घूम रहा रिपोर्टर खुद को गामा पहलवान का भी बाप समझता है। नेताओं से और अधिकारियों से इतनी बेइज्जती से ऐसे बात करते है कि जैसे कहीं के लार्ड गवर्नर आ गए हैं। ये पत्रकार ऐसे गुंडागर्दी करते हैं जैसे वह गुंडागर्दी करने का लाइसेंस मुन्ना भाई के बाड़े से ले आया है। छात्रों से भिड़ने पर जब ये “गुंडा पत्रकार” थूरे जाते हैं तब इनको लोकतंत्र याद आता है।
पत्रकार साथियों…आप पत्रकार हैं। पत्रकारिता की ABCD में बताएं तो आप सूचना और श्रोता के बीच माध्यम यानी मीडिएटर यानी मीडिया यानी पत्रकार हैं। सिर्फ सूचनाएं पहुंचाना आपका काम है और वही काम भी कीजिये। नाही त ई हिन्दुस्तान की जनता है, गुंडई दिखाने पर बलभर कूट देती है। इसलिए गुंडई करने वाले पत्रकार भाईयों आंधी-पानी दोष…
एक सवाल के साथ सबको छोड़े जा रहा हूँ कि… नेताओं से, अधिकारी से, वकील से, डॉक्टर से, छात्र से, महिला से, जनता से हर किसी से ये पत्रकार सीधे सवाल पूछते हैं। ये उनका लोकतांत्रिक अधिकार है… तो पत्रकारों से, टीवी वालों से, अखबार वालों से सीधे सवाल क्यों नहीं पूछा जाना चाहिए? नेताओं के, अधिकारी के, वकील के, डॉक्टर के, छात्र के, महिला के और जनता के सवाल पूछने के लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन क्यों?

Exit mobile version