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पिता उन्हें वकील बनाना चाहते थे, पर "मन्ना डे" का रुझान तो संगीत की ओर था

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संगीत का सागर कहे जाने वाले मन्ना डे जिन्हें प्यार से मन्ना दा भी कहते हैं, का आज जन्मदिन है. प्रबोध चन्द्र डे उर्फ मन्ना डे का जन्म 1 मई 1920 को कोलकाता में हुआ. मन्ना डे के पिता उन्हें वकील बनाना चाहते थे, लेकिन मन्ना डे का रुझान संगीत की ओर था. वह इसी क्षेत्र में अपना कैरियर बनाना चाहते थे. ‘उस्ताद अब्दुल रहमान ख़ान’ और ‘उस्ताद अमन अली ख़ान’ से उन्होंने शास्त्रीय संगीत सीखा. मन्ना डे ने संगीत की प्रारंभिक शिक्षा अपने चाचा ‘के सी डे’ से हासिल की.
बतौर प्लेबैक सिंगर के तौर पर उन्होंने अपने करियर की शुरुआत 1943 में आई फ़िल्म ‘तमन्ना’ से की थी. इसमें संगीत दिया था कृष्ण चंद्र डे ने. सुरैया के साथ गाया गया मन्ना डे का गीत ज़बर्दस्त हिट रहा.सन 1950 में आई फ़िल्म ‘मशाल’ में पहली बार मन्ना डे को एकल गीत गाने का मौका मिला.‘ऊपर गगन विशाल’ नाम के इस गीत में सचिन देव वर्मन ने संगीत दिया था.
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साल 1952 में मन्ना डे ने ‘अमर भूपाली’ नाम से मराठी और बांग्ला में आई फ़िल्म में गाना गाया और खुद को एक बंगाली गायक के रूप में स्थापित किया. 4000 से ज्यादा गाना गाने वाले मन्ना डे सिर्फ हिंदी ही नहीं बल्कि 12 भाषाओं में गाने गाते थे.उन्होंने 1500 से ज्यादा हिंदी गानों के साथ 1200 से ज्यादा बंगाली गाने गाए. उनके द्वारा गाए गानों में 85 गुजराती, 70 मराठी, 35 भोजपुरी, 18 पंजाबी, 8 उड़िया, 6 असमी गाने, 2-2 कन्नड़ और मलयालम, 1-1 कन्नड़, मलयालम और मगही भाषा के गाने शामिल हैं.मन्ना दा ने हरिवंश राय बच्चन की ‘मधुशाला’ को भी अपनी आवाज़ दी है जो काफ़ी लोकप्रिय है.मन्ना डे के गाये कुछ प्रसिद्ध गीत हैं-
ये रात भीगी-भीगी (श्री 420)
कस्मे वादे प्यार वफा सब (उपकार)
लागा चुनरी में दाग़ (दिल ही तो है)
ज़िंदगी कैसी है पहली हाय (आनंद)
प्यार हुआ इकरार हुआ (श्री 420)
ऐ मेरी जोहरां जबी (वक़्त)
ऐ मेरे प्यारे वतन (काबुलीवाला)
पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई (मेरी सूरत तेरी आँखें)
यारी है ईमान मेरा यार मेरी ज़िंदगी (ज़ंजीर)
इक चतुर नार करके सिंगार (पड़ोसन)
तू प्यार का सागर है (सीमा)
कुछ लोगों को प्रतिभाशाली होने के बावजूद वो मान-सम्मान या श्रेय नहीं मिलता, जिसके कि वे हकदार होते हैं.हिंदी फ़िल्म संगीत में इस दृष्टि से देखा जाए तो मन्ना डे का नाम सबसे पहले आता है.मन्ना ने जिस दौर में गीत गाए, उस दौर में हर संगीतकार का कोई न कोई प्रिय गायक था, जो फ़िल्म के अधिकांश गीत उससे गवाता था.मन्ना डे की प्रतिभा के सभी कायल थे, लेकिन सहायक हीरो, कॉमेडियन, भिखारी, साधु पर कोई गीत फ़िल्माना हो तो मन्ना डे को याद किया जाता था. मन्ना डे ठहरे सीधे-सरल आदमी, जो गाना मिलता उसे गा देते.ये उनकी प्रतिभा का ही कमाल था कि उन गीतों को भी लोकप्रियता मिली.
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हालांकि ऐसा भी नहीं था कि मन्ना डे की आवाज़ सिर्फ़ गंभीर गानों पर ही सजती थी. उन्होंने ‘दिल का हाल सुने दिल वाला’, ‘ना मांगू सोना चांदी’ और ‘एक चतुर नार’ जैसे हल्के-फुल्के गीत और लोकसंगीत पर आधारित ‘चलत मुसाफिर’ जैसे गीत भी गाये हैं,जो आज भी काफी लोकप्रिय हैं. उनकी आवाज का असर कुछ ऐसा था कि लोग कहते थे मोहम्मद रफी और किशोर कुमार के किसी भी गाने को मन्ना डे बड़े ही आराम से गा सकते थे, लेकिन मन्ना डे के गाए गाने को आवाज दे पाना रफी और किशोर कुमार के लिए भी मुमकिन नहीं था.
भारत सरकार ने मन्ना डे को संगीत के क्षेत्र में बेहतरीन योगदान के लिए पद्म भूषण और पद्मश्री सम्मान से नवाजा. इसके अलावा 1969 में ‘मेरे हज़ूर’ और 1971 में बांग्ला फ़िल्म ‘निशि पद्मा’ के लिए ‘सर्वश्रेष्ठ गायक’ का राष्ट्रीय पुरस्कार भी उन्हें दिया गया. उन्हें मध्यप्रदेश, केरल, महाराष्ट्र, उड़ीसा और बांग्लादेश की सरकारों ने भी विभिन्न पुरस्कारों से नवाजा है.मन्ना डे के संगीत के सुरीले सफर में एक नया अध्याय तब जुड़ गया जब फ़िल्मों में उनके उल्लेखनीय योगदान को देखते हुए उन्हें फ़िल्मों के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया.24 अक्टूबर 2013 को मन्ना दा का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया.