मशहूर साहित्यकार (Great Novalist) और सामाजिक कार्यकर्ता (Social Worker) महाश्वेता देवी (Mahashweta Devi) 24 जुलाई 2016 को निधन हो गया था। फेफड़ों में इनफेक्शन से लंबी बीमारी से जूझने के बाद दिल का दौरा पड़ने के बाद उनके कई अंगों ने काम करना बंद कर दिया था। जिसके चलते उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया। आज उनकी पुण्यतिथि पर हम आपको उनके जीवन के सफरनामें से रूबरू कराने जा रहे हैं।
महाश्वेता का प्रारंभिक जीवन
महाश्वेता देवी न सिर्फ हिंदी साहित्य में अपनी कहानियों और आलेखों के जरिए समृद्ध बनाया, बल्कि बांग्ला सहित्य में भी ऐसी रचनाएं कालजयी रचनाएं दी हैं, जिनसे बांग्ला साहित्य एक अलग मुकाम पर पहुंच गया है। महाश्वेता देवी का जन्म जन्म 14 जनवरी, 1926 को ढाका (अविभाजित भारत) में हुआ था।
उनके पिता मनीष घटक कवि और उपन्यासकार थे, साथ ही महाश्वेता देवी की मां धारित्री देवी साहित्यकार होने के साथ-साथ समाजसेविका भी थी।
अपने घर में साहित्यक माहौल मिलने के कारण उनकी साहित्य में शुरू से काफी रूचि थी। उनमें अपने पिता और माता दोनों के गुण थे। उन्होंने न सिर्फ अपने लेखन से समाज को आईना दिखाया, बल्कि लोगों की सेवा भी की।
भारत विभाजन कारण छोड़ना पड़ा जन्म स्थान
हिंदी और बांग्ला के अलावा संस्कृत में भी इनका खासा लगाव था। भारत विभाजन के समय गंभीर हालातों को देखते हुए महाश्वेता देवी का परिवार ढाका से पश्चिम बंगाल में आकर बस गया।
यहां बसने के बाद महाश्वेताजी ने विश्वभारती विश्वविद्यालय, शांतिनिकेतन में करीब 3 साल तक पढ़ाई की, यहीं उन्हें रवींद्रनाथ टैगोर के सानिध्य में ज्ञान प्राप्त करने का भी अवसर मिला। इसके बाद में कलकत्ता यूनिवर्सिटी से अपने आगे की पढ़ाई पूरी की।
और यहीं पर अंग्रेजी के लेक्चरर के रूप में उनकी पहली नियुक्ति हुई। इसके बाद उन्होंने लगातार अपने लेखन को वक्त दिया। 1984 में अपने लेखन को पूरा समय देने के लिए अध्यपन के काम से रिटायरमेंट ले ली।
वैवाहिक जीवन नहीं रहा सफल
महाश्वेता देवी की दो शादियां हुईं, दोनों ही ज्यादा समय तक नहीं चल सकी। या यूं कहें कि उनकी कोई भी शादी सफल नहीं हो सकी। उनकी पहली शादी विजन भट्टाचार्य से हुई थी। विजन भट्टाचार्य के साथ उनका रिश्ता 1962 में खत्म हो गया।
इसके बाद उन्होंने दूसरी शादी असीत गुप्त से की, महाश्वेता और असीत गुप्त की शादी 1975 में खत्म हो गई। इसके बाद उन्होंने अपना पूरा जीवन लेखन और समाजसेवा को समर्पित कर दिया।
लेखन की शुरूआत और प्रमुख रचनाएं
कम उम्र में महाश्वेता देवी ने लेखन करना शुरू कर दिया था। उनकी पहली किताब 1956 में प्रकाशित हुई थी। उन्होंने झांसी की यात्रा करने के बाद यहां के गौरवशाली इतिहास का अध्ययन किया। जिसके बाद महाश्वेता देवी ने ‘झांसीर रानी’ (झांसी की रानी) लिखी।
इसके एक साल बाद ही उनकी दूसरी किताब ‘नटी’ 1957 में प्रकाशित हुई। इन दोनों किताबों के साथ उनकी तीसरी किताब ‘जली थी अग्निशिखा’ में 1857 के विद्रोह की इतिहासक पृष्ठभूमि को किस्से-कहानियों के जरिए लोगों के सामने पेश किया गया था।
इसके अलावा ‘अग्निगर्भ’ में महाश्वेता देवी ने किसान खेतिहर मजदूर और इनका संघर्ष दिखाया गया है.शोषण करने वाले वर्गों के बीच संघर्ष को दिखाया गया है। ‘जंगल के दावेदार’, और ‘हजार चौरासी की मां’ आदि उनकी अन्य प्रमुख रचनाएं हैं।
महाश्वेता देवी की रचनाओं में जमीनी सच्चाई से इस कदर जुड़ी हुईं थी कि वह सीधे-सीधे पाठकों के दिलों-दिमाग पर असर करती थीं।
इनकी रचनाओं में इतनी धार थी कि फिल्मकार भी इनकी ओर आकर्षित हुए । 1968 में ‘संघर्ष’, 1993 में ‘रुदाली’, 1998 में ‘हजार चौरासी की मां’, 2006 में आई ‘माटी माई’ कुछ ऐसी फिल्में हैं, जिनका ‘प्लॉट’ महाश्वेता देवी की रचनाओं पर ही तैयार किया गया था।
कलम से नहीं तन-मन से की बदलाव की कोशिश
महाश्वेता देवी कलम की सिपाही तो थी हीं, साथ ही तन-मन से उन्होंने इस बदलाव की बयार को बहाने की पूरी कोशिश की। उन्होंने महिलाओं और निचले तबके के लोगों के लिए काम किया। उन्होंने पश्चिम बंगाल, बिहार, उड़ीसा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र आदि में उन्होंने सक्रियता के साथ समाजसेवा के दायित्व का निवर्हन किया।
सामाजिक कामों और लगातार लेखन के लिए उन्हें 1997 मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। ‘रामन मैग्सेसे पुरस्कार’ के साथ उन्हें 1979 में ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’, 1996 में ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’, ‘पद्मश्री’ और 2006 में ‘पद्मविभूषण’ से नवाजा गया था।
बेटे की मौत से टूट चुकी थीं महाश्वेता देवी
अपने अंतिम वक्त में वह अपने बेटे की मौत से काफी परेशान रहने लगी थी। उनकी देखभाल और इलाज करने वाले डॉक्टर ने बताया था कि ‘वह अपने बेटे की अचानक मौत हो जाने से काफी टूट गईं थी । धीरे-धीरे उनकी जीवन की इच्छा कम होने लगी थी। इसके बाद उनकी सेहत में लगातार गिरावट आती रही और 26 जुलाई 2016 को अपराह्न् 3.16 बजे उनका निधन हो गया।