भोपाल: मध्यप्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के 12 जिलों में देश के औसत से 10 गुना ज्यादा टीबी के मरीज आदिवासी इलाकों में मिले हैं। आईसीएमआर- राष्ट्रीय जनजाति स्वास्थ्य अनुसंधान संस्थान जबलपुर के आदिवासियों पर हुई एक रिसर्च में ये खुलासा हुआ है। 2012 से 2021 के बीच हुई रिसर्च के मुताबिक आदिवासियों तक सरकारी स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंच ही नहीं पा रही हैं। वे इलाज के लिए आज भी लोकल ओझा-तांत्रिक और गुनिया के भरोसे हैं। उन्हें ही वे डॉक्टर मान बैठे हैं। मलेरिया के मरीज भी आदिवासी क्षेत्रों में ज्यादा हैं। यह रिसर्च साइंस जर्नल लैंसेट में भी हुई है। आईसीएमआर जबलपुर के निदेशक डॉ. अपरूप दास, साइंटिस्ट निशांत सक्सेना और डॉ. कल्याण बी साहा ने ये रिसर्च की है।
इन 12 जिलों में एक लाख पर 1700 मरीज रिसर्च के मुताबिक टीबी का देश का औसत एक लाख लोगों में लगभग 170 मरीज का है, लेकिन मप्र के अशोकनगर, श्योपुर, शिवपुरी, भिंड, गुना, विदिशा, दतिया, ग्वालियर, मुरैना, बारां (राजस्थान), ललितपुर (उप्र) के 58 ब्लॉक में एक लाख की आबादी में टीबी के 1700 मरीज हैं। इस स्थिति को बदलने के लिए आईसीएमआर जबलपुर के 16 साइंटिस्ट मध्य प्रदेश सरकार के साथ मिलकर आदिवासी क्षेत्र में माइक्रो लेवल पर काम कर रहे हैं। इन किसी भी जिले में बेहतर इलाज के लिए आदिवासियों को कम से कम 70 किमी की दूरी तय करनी पड़ती है। कई जगह 8 लाख की आबादी पर 40 डॉक्टर भी नहीं हैं।
मध्य प्रदेश के सहरिया जनजाति का हाल सबसे बुरा
मध्य प्रदेश की सबसे पिछड़ी सहरिया जनजाति में बुरी तरह से टीबी रोग फैला हुआ है। इस जनजाति में सर्वाधिक लोग टीबी रोग से ग्रसित पाए गए हैं। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) की एक रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है।
राज्य के 7 जिलों में सहरिया जनजाति के लोग टीबी रोग से अधिक पीड़ित हो रहे हैं। इनमें श्योपुर, शिवपुरी, अशोकनगर, गुना, ग्वालियर, भिंड और मुरैना शामिल है। टीबी को खत्म करने के लिए श्योपुर जिले में इस साल की शुरुआत से ही पायलट प्रोजेक्ट चलाया जा रहा है। लेकिन इस प्रोजेक्ट की हकीकत चौंकाने वाली है।
5 हजार लोगों की जांच में 507 लोग टीबी के रोगी मिले
आईसीएमआर की ओर से जब श्योपुर जिले में 5 हजार लोगों की जांच की गई तो उनमें से 507 लोग टीबी के रोगी मिले।
रिपोर्ट सामने आने के बाद विपक्षी दल कांग्रेस राज्य सरकार पर हमलावर है। कांग्रेस ने एक ट्वीट में लिखा कि, ‘मध्यप्रदेश में आदिवासियों पर संकट, प्रदेश की सहरिया जनजाति के लोग टीबी रोग की चपेट में, सरकार इवेंटबाजी में मस्त; शिवराज जी, मदमस्त नींद से कब जागोगे?’
सहरिया जनजाति में टीबी होने के तीन मुख्य कारण बताए जा रहे हैं। इनमें से पहला है पर्याप्त पोषण आहार नहीं मिलना। दरअसल, सहरिया जनजाति बेहद पिछड़ी जनजाति है। आर्थिक रुप से कमजोर होने के कारण इन्हें पर्याप्त पोषण आहार नहीं मिल पाता है। नतीजतन उनका इम्यूनिटी भी काफी कमजोर हो जाता है।
इस जनजाति में टीबी होने का दूसरा कारण ये है कि ये लोग बीड़ी और शराब का अत्यधिक सेवन करते हैं। इसके अलावा ज्यादातर परिवार एक कमरे के घर में रहते हैं, क्योंकि उनके पास घर बनाने के लिए पैसे नहीं होते। इसलिए यदि परिवार में किसी एक को यह बीमारी होती है तो वो जल्द ही बाकी में भी फैल जाती है। जबकि टीबी मरीज को हमेशा सबसे दूर रखना चाहिए।
मामला सामने आने पर राज्य सरकार ने टीबी को जल्द खत्म करने की बात कही है। चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग ने मीडिया के सवाल पर कहा कि टीबी उन्मूलन के लिए केंद्र और राज्य सरकार यह अभियान चला रहा है। हम यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि टीबी बीमारी को जड़ से खत्म किया जाए। इसके लिए आईसीएमआर की रिपोर्ट का भी हम अध्ययन करेंगे