राजस्थान सरकार राज्य की व्यवस्था परिवर्तन के मुद्दे पर सता में आई थी. पर अब राज्य की व्यवस्था परिवर्तन तो हो चूका है. तो अब सरकार ने ठान लिया है कि क्यों न बचे हुए एक साल में इतिहास बदला जाए. महाराणा प्रताप और अकबर के बीच हल्दीघाटी का युद्ध हुआ था. इतिहासकार मानते है कि उसमें अकबर की जीत हुई थी. पर अब राजस्थान ने शिक्षा विभाग ने इसे ठीक विपरीत कर दिया है. मतलब कि उस युद्ध में महाराणा प्रताप की जीत हुई थी.
मैं बचपन से ही महाराणा प्रताप की युद्ध गाथा का खास प्रसंसक रहा हूं. कैसे उन्होंने विपरीत प्रस्थितियों में भी अपने समकालीन शासकों का डटकर सामना किया. उनकी जमीन पर रहने वाली प्रतिज्ञा तो मुझे विशेष रूप से रोमांचित करती है. अकबर उस समय का तगड़ा राष्ट्रीय शासक था. वो उस समय आधुनिक हाथियारों और सेना से लैस था. जबकि महाराणा उस समय एक प्रान्त के शासक थे. उनके पास अकबर के मुकाबले बेहद कम सेना और संसाधन थे. फिर भी उन्होंने अकबर का युद्ध के मैदान में डटकर और सीना तानकर सामना किया इसी में उनकी जीत थी. पर अंततः युद्ध अकबर का ही जीता हुआ मानते है.
कभी भी किसी भी तरह के परिणाम भावनाओं पर निर्भर नहीं करते चाहे वो परीक्षा परिणाम हो या युद्ध के परिणाम. परिणाम परम सत्य होते है. इसे स्वीकार करना ही पड़ता है. ना ही इससे महाराणा प्रताप की वीरता कम होगी. वीरता हार जीत पर निर्भर नहीं करती, ये इस बात पर निर्भर करती है कि महारणा प्रताप कैसे वीरता से अकबर का सामना किया.
सरकार ये इतिहास बदलकर किसी जाति-विशेष को खुश तो कर सकती है. पर सरकारें तो आती-जाती रहती है. इससे आने वाली सरकारों के लिए क्या नजीर पेश कर रही है ये बेहद चिंताजनक है. फिर आने वाले समय कोई मांग उठाएगा कि सूरजमल की इतिहास में एक पूरी किताब ही पढाई जाये. और ये प्रक्रिया कहां तक जाएगी इसी हम केवल कल्पना भर ही कर सकते है(औरंगजेब का इतिहास सोचकर देखिएगा, क्या पता कल को उनके इतिहास में परिवर्तन हो जाए.)
भारत जैसे लोकतान्त्रिक देश को एसे औछे परिवर्तन शोभा नहीं देते. एसी घटिया हरक़ते तो पाकिस्तान जैसे टुच्चे देश(लोकतंत्र के मामले में) करते है क्या पता वो अपने इतिहास में भारत से हारे हुए युद्धों में अपनी जीत बता रहा हो.