चुनाव सिर पर हैं. भागा दौड़ी और दौरों का दौर है. कांग्रेस पार्टी में सब व्यस्त हैं सिवाए मणिशंकर अय्यर के. और राजनीती में आजकल ‘नीच’ शब्द जोर खाए हुए है. नीच एक हिंदी शब्द है ‘जिसका अर्थ इंग्लिश में कहें तो लो लेवल वाला. अब मणि अंकल तो कह ही रहे है, उन्हें हिंदी ना आती, पर हम तो इसका अर्थ बता दिए रहे है. तो क्या मणि अंकल हिंदी में चाहे तुका ही मारते हो, है तो ये बड़े बयान बहादूर. वैसे पहली बार ऐसा नहीं है कि मणि अंकल अपनी मधुर वाणी के चलते चर्चा में आये हो. इससे कुछ दिन पहले ही ये राहुल गांधी को ‘औरंगजेब’ जैसे ओहदों से नवाज चुके है. और राहुल गांधी बिना किसी लाग लपेट के फैसला ले लिया मणिशंकर को बहार करने का. बात कांग्रेस पार्टी की हो तो वहां मणि शंकर अय्यर, कपिल सिब्बल, दिग्विजय सिंह, मनीष तिवारी ऐसे बहादूरी का काम कर रहे है तो भाजपा में ये एसे बयानबहादूरों की भूमिका मनोहर लाल खट्टर, साक्षी महाराज, गिरिराज सिंह,योगी आदित्यनाथ, सुब्रह्मण्यम स्वामी जैसे लोग निभा रहे हैं.
कांग्रेस की इस मामलों में जमकर फजीहत हुई. लोकसभा चुनाव से पहले भी उन्होंने मोदी के बारे में अपनी एक टिप्पणी से अपनी पार्टी की किरकिरी कराई थी. कार्रवाई से अय्यर कोई सबक लें या नहीं, कांग्रेस ने विरोधी नेताओं के प्रति भी सम्मान के तकाजे पर जोर देकर सही रुख अपनाया है.
अंतर ये है कि ‘कांग्रेस’ मणि जैसे बहादूरों के चलते काफी नुकसान झेलती है, तो वहीँ दूसरी और भाजपा साक्षी जैसों से धर्म विभाजन कर, साम्प्रदायिक माहौल पैदा कर परिणाम अपनी झोली में ले जाते है.
तो अंत में यही सवाल कांग्रेस तो एक्शन ले चुकी है, अब दूसरे दल भी क्या ऐसी ही बहादूरी दिखायेंगे?