देश के मशहूर पत्रकार, लेखक, उपन्यासकार और इतिहासकार खुशवंत सिंह का आज 103वां जन्मदिन है. खुशवंत भारत सरकार के विदेश मंत्रालय में कुछ साल काम कर चुके हैं और राज्यसभा के मनोनीत सदस्य भी रह चुके हैं. उनकी किताब ‘ट्रेन टू पाकिस्तान’ काफी मशहूर हुई. यहां तक कि इस पर फ़िल्म भी बनाई जा चुकी है. भारत सरकार की तरफ से उन्हें पद्म भूषण और पद्म विभूषण से सम्मानित किया जा चुका है. चलिए आज अपनी बेबाकी के लिए पहचाने जाने वाले इस मशहूर शख्शियत से आपको रूबरू कराते हैं.
जन्म और शिक्षा
खुशवंत सिंह का जन्म 2 फ़रवरी, 1915 ई. में पंजाब के ‘हदाली’ नामक स्थान (अब पाकिस्तान में) पर हुआ था. खुशवंत सिंह के पिता का नाम सर सोभा सिंह था, जो अपने समय के प्रसिद्ध ठेकेदार थे. उस समय सोभा सिंह को आधी दिल्ली का मालिक कहा जाता था. खुशवंत सिंह जी ने ‘गवर्नमेंट कॉलेज’, लाहौर और ‘कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी’ में शिक्षा पाई थी. इसके बाद लंदन से ही क़ानून की डिग्री ली. उसके बाद तक वे लाहौर में वकालत करते रहे.
विवाह
खुशवंत सिंह जी का विवाह कवल मलिक के साथ हुआ.इनके पुत्र का नाम राहुल सिंह और पुत्री का नाम माला है.
पत्रकार
एक पत्रकार के रूप में भी खुशवंत सिंह जी ने अच्छा नाम अर्जित किया और पत्रकारिता में बहुत ख्याति अर्जित की. 1951 में वे आकाशवाणी से संबद्ध थे और 1951 से 1953 तक भारत सरकार के पत्र ‘योजना’ का संपादन किया. मुंबई से प्रकाशित प्रसिद्ध अंग्रेज़ी साप्ताहिक ‘इल्लस्ट्रेटेड वीकली ऑफ़ इंडिया’ के और ‘न्यू डेल्ही’ के संपादक वे 1980 तक थे. 1983 तक दिल्ली के प्रमुख अंग्रेज़ी दैनिक ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ के संपादक भी वही थे. तभी से वे प्रति सप्ताह एक लोकप्रिय ‘कॉलम’ लिखते हैं, जो अनेक भाषाओं के दैनिक पत्रों में प्रकाशित होता है.
राजनीति
खुशवंत सिंह का बचपन से ही राजनीति से नाता था.उनके चाचा सरदार उज्जवल सिंह पंजाब और तमिलनाडु के राज्यपाल रहे थे.राजनीतिक पृष्ठभूमि की वजह से खुशवंत सिंह भी राजनीति के मैदान में उतरे. खुशवंत सिंह 1980 से 1986 तक राज्य सभा के सदस्य रहे. इस दौरान उन्होंने अपनी बात को हमेशा संसद में रखा.
प्रसिद्ध उपन्यास
खुशवंत सिंह उपन्यासकार, इतिहासकार और राजनीतिक विश्लेषक के रूप में विख्यात हैं. उनके अनेक उपन्यासों में प्रसिद्ध हैं-
‘डेल्ही’
‘ट्रेन टु पाकिस्तान’
‘दि कंपनी ऑफ़ वूमन’
वर्तमान संदर्भों तथा प्राकृतिक वातावरण पर भी उनकी कई रचनाएँ हैं. दो खंडों में प्रकाशित ‘सिक्खों का इतिहास’ उनकी प्रसिद्ध ऐतिहासिक कृति है. साहित्य के क्षेत्र में पिछले सत्तर वर्ष में खुशवंत सिंह का विविध आयामी योगदान अत्यंत महत्त्वपूर्ण है.
सम्मान तथा पुरस्कार
खुशवंत सिंह को अनेक पुरस्कार मिले हैं-
वर्ष 2000 में उनको ‘वर्ष का ईमानदार व्यक्ति’ सम्मान मिला था.
वर्ष 1974 में राष्ट्रपति ने उन्हें ‘पद्म भूषण’ के अलंकरण से सम्मानित किया, जो अमृतसर के ‘स्वर्ण मंदिर’ में केन्द्र सरकार की कार्रवाई के विरोध में उन्होंने 1984 में लौटा दिया था.
वर्ष 2007 में इन्हें ‘पद्म विभूषण’ से भी सम्मानित किया गया.
निधन
20 मार्च 2014 को 99 वर्ष की आयु में इस मशहूर लेखक एवं पत्रकार खुशवंत सिंह का निधन हो गया.
पूरी दुनिया ख़ुशवंत के दो रूपों को जानती है, एक वो ख़ुशवंत सिंह जो शराब और सेक्स के शौक़ीन हैं. हमेशा हसीन लड़कियों से घिरे रहते हैं. ग़ज़ब के हंसोड़ हैं. बात-बात पर चुटकुले सुनाते और ठहाके लगाते हैं. और दूसरा वो ख़ुशवंत जो गंभीर लेखक है, निहायत विनम्र और ख़ुशदिल है, चीज़ों की गहराइयों में जाता है.
उनके बारे में एक क़िस्सा मशहूर है. जब वो ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ के संपादक हुआ करते थे तो वो हमेशा मुड़े-तुड़े, पान की पीक से सने पठान सूट में दफ़्तर आया करते थे. उनके पास एक फटीचर एंबेसडर कार होती थी जिसे वो ख़ुद चलाते थे.
एक बार जब वो ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ बिल्डिंग से अपनी कार में बाहर निकल रहे थे तो दो हसीन अमरीकी युवतियों ने आवाज़ लगाई, ‘ टैक्सी! टैक्सी! ताज होटल.’ इससे पहले कि ख़ुशवंत कुछ कह पाते, उन्होंने कार का पिछला दरवाज़ा खोला और उसमें बैठ गईं. ख़ुशवंत ने बिना किसी हील-हुज्जत के उन्हें ताज होटल पहुंचाया. उनसे सात रुपए वसूल किए. दो रुपए की टिप भी ली और फिर अपने घर रवाना हो गए.
खुशवंतनामा: द लेसंस ऑफ माई लाइफ में उन्होंने दुख जताया कि उन्होंने अपने शुरुआती जीवन में कई बुरे काम किए जैसे गोरैया, बत्तख और पहाड़ी कबूतरों को मारना.इस किताब में उन्होंने लिखा है, ‘मुझे इस बात का भी दुख है कि मैं हमेशा अय्याश व्यक्ति रहा.चार साल की उम्र से अब तक मैंने 97 वर्ष पूरे कर लिए हैं, अय्याशी हमेशा मेरे दिमाग में रही.’
उन्होंने लिखा, ‘मैंने कभी भी इन भारतीय सिद्धांतों में विश्वास नहीं किया कि मैं महिलाओं को अपनी मां, बहन या बेटी के रूप में सम्मान दूं. उनकी जो भी उम्र हो, मेरे लिए वे वासना की वस्तु थीं और हैं.’
खुशवंत सिंह को लगता था कि उन्होंने बेकार के रिवाजों और सामाजिक बनने में अपना बहुमूल्य समय बर्बाद किया और वकील एवं फिर राजनयिक के रूप में काम करने के बाद लेखन को अपनाया. उन्होंने लिखा है, ‘मैंने कई वर्ष अध्ययन और वकालत करने में बिता दिए जिसे मैं नापसंद करता था.मुझे विदेशों और देश में सरकार की सेवा करने और पैरिस स्थित यूनेस्को में काम करने का भी दुख है.’ उन्होंने लिखा है कि वह काफी पहले लेखन कार्य शुरू कर सकते थे.
वो तीन चीजों से प्यार करते थे जिसमें पहला दिल्ली से लगाव, दूसरा ‘लेखन’ और तीसरा खूबसूरत महिलाएं थीं.वो खुद को दिल्ली का सबसे यारबाज और दिलफेंक बूढ़ा मानते थे. अपनी जिंदगी की आखिरी सांस तक उन्होंने लिखना नहीं छोड़ा. वह 99 साल की उम्र तक भी सुबह चार बजे उठ कर लिखना पंसद करते थे.
अपने जीवन के अंतिम क्षण तक वो जवाँदिल बने रहे. जब वो 90 साल के हुए तब बीबीसी ने उनसे पूछा था कि क्या अब भी कुछ करने की तमन्ना है, तो उनका जवाब था, “तमन्ना तो बहुत रहती है दिल में. कहाँ ख़त्म होती है. जिस्म से बूढ़ा ज़रूर हो गया हूँ लेकिन आँख अब भी बदमाश है. दिल अब भी जवान है. दिल में ख़्वाहिशें तो रहती हैं..आख़िरी दम तक रहेंगी..पूरी नहीं कर पाऊँगा, ये भी मुझे मालूम है.”
खुशवंत सिंह भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनकी रचनाएं जिंदा हैं.ट्रेन टू पाकिस्तान और कंपनी ऑफ वूमन जैसी बेस्टसेलर किताब देने वाले सिंह ने 80 किताबें लिखीं. अपने कॉलम और किताबों में संता-बंता के चरित्र से लोगों को गुदगुदाया भी. उन्हें आज भी ऐसे शख्स के तौर पर पहचाना जाता है, जो लोगों को चेहरे पर मुस्कान ला दें.