जानिये क्यों कहा जाता है यशराज चोपड़ा को किंग ऑफ रोमांस

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भारतीय सिनेमा के जाने माने निर्देशक-निर्माता यशराज चौपड़ा (Yashraj Chopra) का जन्म ब्रिटिश भारत के लाहौर में 27 सितंबर 1932 को हुआ था। इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले यश को फिल्मों में शुरू से दिलचस्पी थी और दिलचस्पी उन्हें बम्बई ले आई।

शुरुआत में उन्होंने अपने भाई बी-आर चोपड़ा के साथ बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर काम किया और 1970 में खुद की फ़िल्म कंपनी बना ली। इसके बाद हर दूसरी बड़ी फिल्म यश राज चोपड़ा की हुआ करती थी। यही नहीं भारतीय निर्माता और निर्देशक के रूप में उन्हें कई पुरस्कार और सम्मान हासिल किये। यश की ज़्यादातर फिल्में रोमांस और लव स्टोरी पर आधारित होने के चलते उन्हें ” किंग ऑफ रोमांस” (King of romance) भी कहा जाता है।

लाहौर में जन्म

यश राज फ़िल्म प्रोडक्शन के संस्थापक और अध्यक्ष यश राज चोपड़ा का जन्म 27 सितंबर 1932 को ब्रिटिश भारत के लाहौर में हुआ था। पिता ब्रिटिश पंजाब प्रशासन में पीडब्ल्यूडी में अकाउंटेंट थे। घर में आठ बच्चों में सबसे छोटे यश थे। उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा जालंधर के दोआबा कॉलेज से की और विभाजन के बाद लुधियाना जाकर इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल कर ली। 

यश को फ़िल्म निर्माण का जुनून था, जो उन्हें सीधे बम्बई ले आया। बम्बई में पहला काम सहायक निर्देशक के रूप में आईएस जौहर के साथ किया। इसके बाद अपने भाई बी.आर चोपड़ा (B.R Chopra) के साथ निर्देशन करने लगे। बी.आर चोपड़ा भी भारतीय सिनेमा के जाने-माने निर्माता और निर्देशक रहे हैं।

1970 में यश ने अपना फ़िल्म प्रोडक्शन बना लिया और अपने प्रोडक्शन में फिल्में बनाना शुरू किया। 80 के दशक में पामेला नाम की महिला से शादी की और दो बेटों के पिता बने। यश के दोनों बेटे आदित्य चोपड़ा और उदय चपोड़ा आज भी यशराज प्रोडक्शन संभालते हैं।

निर्देशन की शुरुआत

चोपड़ा ने अपना पहला निर्देशन अपने भाई बीआर चोपड़ा की फ़िल्म धूल का फूल (1959) में किया था। ये सामाजिक नाटक पर आधारित एक फ़िल्म थी जिसमे माला सिन्हा, राजेन्द्र कुमार और लीला चिटनीस मुख्य भूमिका में थे। इसके बाद 1961 उन्होंने धर्मपुत्र का निर्देशन किया, ये फ़िल्म भी बी.आर चोपड़ा की फ़िल्म थी।

इसकी कहानी विभाजन कि त्रासदी पर आधारित थी। यह विभाजन को दर्शाने वाली पहली फ़िल्म थी। इसमें शशि कपूर मुख्य भूमिका में थे और फ़िल्म को हिंदी में सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म के लिए राष्ट्रीय फ़िल्म पुरुस्कार भी मिला था।

1965 में वक्त के निर्देशन के लिए चोपड़ा को सर्वश्रेष्ठ निर्दशक का पहला फिल्मफेयर अवार्ड मिला। भारतीय सिनेमा में ‘वक्त’ पहली ऐसी फिल्म थी जो मल्टी स्टारर थी, इसके बाद 70 के दशक में मल्टी स्टारर फ़िल्म बनाने का रिवाज से बन गया था।

1969 में चोपड़ा ने दो फिल्मों का निर्देशन किया था। जिसमे एक धर्मेंद्र (Dharmendra) और सायरा बानो (Saira banu) को कास्ट किया गया था। इस फिल्म का नाम “आदमी और इंसान” था, और दूसरी राजेश खन्ना (Rajesh khanna) की लीड रोल वाली गुजराती नाटक पर आधारित “इत्तेफाक” थी। हालांकि ये फ़िल्म उतना कमला नहीं दिखा पाई जितनी बाकी फिल्मों ने किया।

यश राज फ़िल्म प्रोडक्शन की शुरुआत

70 के दशक में यशराज ने भाई के साथ काम करने के स्थान पर खुद का प्रोडक्शन बनाना ज़्यादा सही समझा। और 1970 में ही “यशराज फिल्म्स” की स्थापना की, साथ प्रोडक्शन की पहली फ़िल्म “दाग : ए पोयम ऑफ लव (1973) का निर्माण किया। इसके बाद अमिताभ बच्चन (Amitabh bachan) के साथ 1975 मे “दीवार” और “त्रिशूल” जैसी फिल्में बनाई। इन ही फिल्मों से अमिताभ को अपनी एंग्री यंग मैन की उपाधि भी मिली थी।

2007 में अपने भाई बी आर चपोड़ा के साथ यश राज (तस्वीर : विकिपीडिया)


इसके बाद यश चोपड़ा ने अमिताभ के साथ ही लगातार दो फिल्मों बनाई, लेकिन ये दोनों एक्शन से हटके संगीत और रोमांटिक फिल्मों के श्रेणी में थी। ये फिल्में थी शशि कपूर, रखी और वहीदा रहमान अभिनीत “कभी-कभी” , और दूसरी थी अमिताभ, रेखा और जया बच्चन अभिनीत “सिलसिला”, इसी फिल्म से जावेद अख़्तर ने गीतकार के रूप में काम किया था। इसी कड़ी में दिलीप कुमार के साथ “मशाल” , सुनील दत्त के साथ “फासले”, विजय, चांदनी और लम्हें जैसी फिल्मों का निर्माण किया।

प्रसिद्ध एक्टर को करते थे कास्ट

यशराज चपोड़ा अधिकतर उन ही एक्टर्स को अपनी फिल्मों में कास्ट किया करते थे जो प्रसिद्ध हो, या जिनके साथ उन्होंने पहले काम किया हो। यश की फिल्मों में अमिताभ बच्चन, शाहरुख खान, शशि कपूर, रखी और वहीदा रहमान जैसे कलाकार अक्सर देखने को मिल जाया करते थे।

2009 में पा के प्रीमियर पर अमिताभ बच्चन के साथ यशराज चोपड़ा (तस्वीर :विकिपीडिया)

अमिताभ के साथ दीवार, सिलसिला, कभी कभी, मोहोब्बतें जैसी फिल्में की थी। वहीं शाहरुख के साथ उनकी फिल्मों की एक लंबी फेहरिस्त है। इसमें दिल तो पागल है, वीर ज़ारा, चक दे इंडिया, डर, जब तक है जान, दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे, शामिल हैं।

पुरुस्कार

यशराज को 6 राष्ट्रीय फ़िल्म अवॉर्ड और 8 फिल्मफेयर अवार्ड मिले हैं। इसके अलावा उन्हें 2001 में दादा साहेब फाल्के पुरस्कार और 2005 में भारत तीसरा नागरिक सम्मान पुरुस्कार “पद्म विभूषण से नवाजा गया था। यही नहीं, 2006 में बाफ्टा (British academy of film and television Art’s) की आजीवन सदयस्ता प्राप्त हुई थी, वहीं बाफ्टा में शामिल होने वाले पहले भारतीय बन गए थे।

2011 में पत्नी पामेला के साथ एक अवॉर्ड फंक्शन में यशरख (तस्वीर :गूगल)

इसके अलावा उन्हें पंजाब का सर्वोच्च नागरिक सम्मान “पंजाब रत्न” दादा भाई नोरोजी, फ्रांस के लीजन ऑफ ऑनर, मध्य प्रदेश का राष्ट्रीय किशोर कुमार पुरुस्कार जैसे अनगिनत पुरुस्कार प्राप्त थे। साल 2013 में उनकी मृत्यु के बाद भारतीय डाक विभाग ने उनके सम्मान में एक डाक टिकट भी जारी किया था।

डेंगू से हुई थी मृत्यु

2012 में अपनी फिल्म “जब तक है जान” के प्रीमियर में उन्होंने कहा था कि फ़िल्म खत्म होने के बाद वो एक लंबे अवकाश पर जाना चाहेंगे। लेकिन फ़िल्म के एक गाने की शूटिंग के दौरन उन्हें डेंगू हो गया। जिसके कारण उनके शरीर के कुछ अंगों ने काम करना बंद कर दिया, उन्हें बांद्रा के लीलावती अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां 80 साल की उम्र में 21 अक्टूबर 2012 को उनकी मृत्यु हो गई। अपने फिल्मी करियर में धूल का फूल, परंपरा, फासले, सिलसिला और जब तक है जान के साथ यश राज ने 51 फिल्मों का निर्देशन किया था।

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