जानिए आज के दिन का क्या है तालिबानी इतिहास से नाता

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तालिबान (Taliban) का नाम सुनते ही अफ़ग़ानिस्तान (Afganistan) के उन रोते बिलकते और ख़ौफज़दा लोगों की तस्वीर सामने आती है, जो तालिबानी शासन का ऐलान होते ही अपना घर, परिवार और काम छोड़कर दूसरे देश में जाकर शरण लेने को मजबूर हो गये। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी थे, जिनकी देश छोड़कर जाने की कोशिश नाकाम हो गई। अब यही लोग अफ़ग़ानिस्तान में तालिबानी शासन में डर के साथ जी रहे हैं।

तालिबानी सरकार, जिसने बिना लड़े ही अफ़ग़ानिस्तान की सरकार राजधानी छोड़ने पर मजबूर कर दिया। जिसने पंजशीर जैसी अजय घाटी को भी विजय कर लिया। मगर एक समय ऐसा भी था, जब तालिबान अस्तित्व ख़त्म होने की कगार पर आ गया था। साथ ही हम आपको यह भी बताने वाले हैं कि आज के दिन का तालिबानी इतिहास (Today History) से क्या तालुल्क है?

कब,कैसे, और कहां पनपा तालिबान?

तालिबान (Taliban) के उदय को जानने के लिए और उसकी ताकत को समझने के लिए हमें 3 दशक पीछे जाना होगा। जब नब्बे के दशक में सोवियत संघ (USSR) ने अफ़ग़ानिस्तान (Afganistan) से अपने सैनिकों को वापस बुलाना शुरू कर दिया था। उसी समय उत्तरी पाकिस्तान में तालिबान खड़ा होने लगा, दरअसल ‘तालिबान’ ‘पश्तो’ भाषा का एक शब्द है। जिसका मतलब होता है छात्र।

तालिबानी संगठन की जब शुरूआत की गई, तो उस समय उसमें केवल 50 लोग ही शामिल हुए थे। लेकिन बहुत कम समय में यह संगठन कट्टरपंथियों का बड़ा गुट बन गया। बताया जाता है तालिबान को बनाने के पीछे न सिर्फ पाकिस्तान बल्कि सउदी अरब भी शामिल है, ऐसा इसलिए क्योंकि, तालिबान को बनाने के लिए सउदी अरब ने बड़े पैमाने पर फंडिंग की थी। समय के साथ तालिबान अफ़ग़ानिस्तान के दक्षिणी हिस्से और ईरान से सटे प्रांतो में तेज़ी से एक बड़ी ताकत बनकर उभरा।

तालिबान ने सबसे पहले कंधार (kandhar) को 1994 और साल 1995 में ईरान से लगे हेरात (Hairat) पर कब्ज़ा कर लिया। इसके बाद 1996 में राजधानी काबुल (Kabul) पर अपना झंडा फहरा कर तालिबान ने उसे भी कब्ज़े में कर लिया। राजधानी पर कब्ज़े के बाद 1998 तक अफ़गानिस्तान पर पूरी तरह तालिबानी सरकार का शासन स्थापित हो चुका था। और इसके बाद शुरू हुआ वो दौर जिसे याद करके आज भी अफगानी नागरिकों की रूह कांप जाती है।

इतना भयानक था पुराना तालिबान 

सोवियत आर्मी के जाने के बाद कबाइली लोगों को तालिबान में मसीहे की झलक दिखी। हालांकि कुछ ही समय बाद तालिबान के शरीयत क़ानूनों ने लोगों को परेशान कर दिया। न्याय के नाम पर सरेआम होने वाले कत्ल, पुरूषों और महिलाओं के पहनावे को लेकर सख़्त कानून और महिला अधिकारों के होने वाले हनन से लोग तंग आ गए।

यही नहीं, तालिबान ने शरिया कानून लागू करके टीवी, सिनेमा, संगीत जैसी चीज़ों को अपराध घोषित कर दिया था, साथ ही 10 साल से बड़ी लड़कियों का स्कूल जाना ग़ुनाह माना जाने लगा।

जब अमेरिका को मूकदर्शक बनना पड़ा था महंगा..

साल 2001 वो साल था, जब तालिबान ने दुनिया को अपने आतंक का अपना पहला नमूना दिखाया। दरअसल तालिबान ने बामियान में हज़ारों साल पुरानी बुद्ध की मूर्ति को उड़ाकर पहली बार दुनिया को अपना आतंक दिखाया। तालिबान ने सिर्फ़ ये मूर्ति ही नहीं उड़ाई, बल्कि तोप के इन गोलों से दुनिया को हिला दिया।

लेकिन तब भी अमेरिका सहित पूरा विश्व समुदाय मूकदर्शक बना रहा, जो बाद में अमेरिका को बहुत महंगा पड़ा। इसके बाद अमेरिका में 9/11 का हमला हुआ। खुद महाशक्ति मानने वाले अमेरिका को इस हमले ने पूरी तरह झकझोर कर रख दिया। हालांकि यह हमला ओसमा बिन लादेन के आतंकी संगठन अलक़ायदा ने किया था। लेकिन तालिबान ने लादेन को पनाह दी, जिसके चलते तालिबान भी अमेरिका के निशाने पर आ गया।

तालिबानी शासन के खात्मे का आज के दिन से है खास तालुल्क

9/11 की घटना का बदला लेने के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के ऐलान के साथ ही 7 अक्टूबर 2001 को नाटो (Nato) सेना के साथ अमेरिका ने अफ़ग़ानिस्तान सेना पर हमला बोल दिया। ‘अमेरिका ने सबसे पहले राजधानी काबुल को तालिबानी कब्ज़े से आजाद कराया।

फिर आज ही के दिन यानी 7 दिसंबर 2001 को कंधार से भी तालिबान को बेदखल कर दिया।’  इसके बाद अमेरिका ने सिर्फ दो महीनों में पूरे अफ़ग़ानिस्तान को  तालिबानियों के शासन से मुक्त करवा दिया। और करीब डेढ़ साल बाद अमेरिका का सैन्य अभियान भी ख़त्म हो गया।

प्रतीकात्मक तस्वीर

मगर 2009 में बराक ओबामा ने राष्ट्रपति बनते ही तालिबान के ख़ात्मे के लिए लड़ाई और तेज़ कर दी। इसी के चलते 2010 तक अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों की संख्या एक लाख हो गई। फिर क्या था, अमेरिका ने 2 मई 2011 को लादेन खत्म कर दिया। लादेन की मौत के साथ अमेरिका का यह मिशन भी पूरा हो गया।

तालिबान 2.0 की वापसी 

अमेरिका के राष्ट्रपति बनते ही डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) ने तालिबान के साथ शांतिपूर्ण बातचीत और समझौते की पहल शुरू कर दी। और इसी राह पर 2021 में नवनिर्वाचित जो बाइडन (Joe Biden) ने भी काम किया। जो बाइडन ने आर्थिक स्तिथि और सैनिकों के जवानों की शहादत का हवाला देकर सभी सैनिकों को अफ़ग़ानिस्तान छोड़ने का आदेश दे दिया।

जिसके बाद अमेरिका के वापस जाने से पहले ही तालिबान ने दोबारा कमज़ोर लोकतांत्रिक सरकार का फायदा उठा कर अफ़ग़ानिस्तान पर अपना शासन स्थापित कर लिया। और इसके साथ ही अफगानी नागरिकों की सांसे थम गईं।

तालिबानी क्रूरता की पुरानी तस्वीरें आंखों के सामने तैरने लगीं। हालांकि तालिबान कई बार अपने रवैये में बदलाव की बात कह चुका है। साथ ही तालिबान के कई अधिकारी महिला अधिकारों की पैरवीं करते हुए भी नजर आए, लेकिन विश्व समुदाय आज भी उसकी इन बातों पर विश्वास नहीं कर पा रहा है।

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