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कविता- बेटी से माँ तक का सफर

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बेफिक्री से फ़िक्र का सफर
रोने से खामोश कराने का सफर
बेसब्री से तहम्मुल का सफर

पहले जो आँचल में छुप जाया करती थी
आज किसी को आँचल में छुपा लेती है

पहले जो ऊँगली जल जाने से घर सर पर उठा लेती थी
आज हाथ जल जाने पर भी खाना बनाया करती है

पहले जो छोटी छोटी बातों पर रो जाया करती थी
आज वो बड़ी बड़ी बातों को ज़हन में छुपाया करती है

माँ माँ कह कर पूरे घर में खेला करती थी
आज माँ सुन कर आहिस्ता से मुस्कुराया करती है

पहले 10 बजे उठ जाना भी जल्दी उठ जाना होता था
आज 7 बजे उठने पर भी लेट हो जाया करती है

अपने शौक़ पूरे करते करते ही पूरा साल गुज़र जाता था
आज खुद के लिए एक कपडा लेने को तरस जाया करती है

माँ के ज़ेवर, साड़ी, कपडे निकाल निकाल कर पहना करती थी
अब अपने ज़ेवर, बेटी के लिए सहेजा करती है

सारा दिन ‘फ्री’ होकर भी ‘बिज़ी’ बताया करती थी
आज पूरे दिन काम करके भी कामचोर कहलाया करती है

पहले‌ पैसे मिलते ही ख़र्च करने के तरीके सोचा करती थी
अब पैसे मिलते ही बचाने के तरीक़े सोचा करती है

पहले माँ आकर प्यार से बिस्तर से उठाया करती थी
अब खुद बिना किसी के जगाये चौंक कर सुबह सवेरे उठ जाया करती है

एक इम्तिहान के लिए पूरे साल पढ़ा करती थी
अब हर रोज़ बगैर तैयारी के रोज़ इम्तिहान दिया करती है

(उर्दू से अनुवादित)

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