महिला अधिकारों के लिए काम करने वाली मशहूर कार्यकर्ता और कवियत्री कमला भसीन का बीते शनिवार को 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया। सामाजिक कार्यकर्ता कविता श्रीवास्ताव ने ट्वीट कर इस बात की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि तड़के तीन बजे कमला भसीन ने अंतिम सांस ली।
कविता श्रीवास्तव ने ट्वीट करके बताया, ‘हमारी प्रिय मित्र कमला भसीन का 25 सितंबर को तड़के लगभग तीन बजे निधन हो गया। यह भारत और दक्षिण एशियाई क्षेत्र में महिला आंदोलन के लिए एक बड़ा झटका है। विपरीत परिस्थितियों में भी उन्होंने जिंदादिली से जीवन का लुत्फ उठाया। कमला आप हमेशा हमारे दिलों में जिंदा रहेंगी।’
Kamla Bhasin, our dear friend, passed away around 3am today 25th Sept. This is a big setback for the women's movement in India and the South Asian region. She celebrated life whatever the adversity. Kamla you will always live in our hearts. In Sisterhood, which is in deep grief pic.twitter.com/aQA6QidVEl
— Kavita Srivastava (@kavisriv) September 25, 2021
गौरतलब है कि भसीन बरसों से लैंगिग समानता, शिक्षा, गरीबी उन्मूलन व मानवाधिकार के लिए काम कर रहीं थीं। वह 1970 से दक्षिण एशिया में शांति जैसे मुद्दों को लेकर भी लगातार सक्रिय थी।
खुद को आधी रात की संतान बताती थीं भसीन
कमला भसीन का जन्म 24 अप्रैल 1946 को वर्तमान पाकिस्तान के मंडी बहउद्दीन ज़िले में हुआ था। वह हमेशा अपने आप को “आधी रात की संतान” कहा करती थीं। दरअसल इसका संदर्भ विभाजन के आस-पास उपमहाद्वीप पर जन्मी पीढ़ी से था। कमला भसीन ने सदा नारीवादी सिद्धांतों को ज़मीनी रूप देने के लिए प्रयास किये। इसके लिए उन्होंने दक्षिण एशियाई नेटवर्क ‘संगत’ की स्थापना भी की थी। इस नेटवर्क को उन्होंने 2002 में शुरू किया था। इस नेटवर्क में ग्रामीण और आदिवासी समुदायों के लिए काम किया जाता है।
30 भाषाओं में हुआ रचनाओं का अनुवाद
कमला ने राजस्थान विश्वविद्यालय से मास्टर्स की डिग्री हासिल की, इसके बाद उन्होंने जर्मनी की मंस्टर यूनिवर्सिटी से सोशियोलॉजी एंड डेवलपमेंट की पढ़ाई की थी। साथ ही भसीन ने 1976 से 2001 तक संयुक्त राष्ट्र के खाद्द एंव कृषि संगठन के साथ भी काम किया। इन सब के बाद भसीन ने खुद को पूरी तरह संगत के कामों के लिए व्यस्त कर लिया।
भसीन ने पितृसत्ता और जेंडर के मुद्दों पर अपनी लेखिनी चलाई, उनकी प्रकाशित रचनाओं को करीब 30 भाषाओं में अनुवादित किया गया। उनकी मुख्य रचनाओं में लाफिंग मैटर्स (2005) एक्सप्लोरिंग मैस्कुलैनिटी (2004), बॉर्डर्स एंड बाउंड्रीज: वुमेन इन इंडियाज़ पार्टिशन (1998) ह्वॉट इज़ पैट्रियार्की? (1993) और फेमिनिज़्म एंड इट्स रिलेवेंस इन साउथ एशिया (1986) शामिल हैं।
उन्होंने इनमें से कई किताबों का अन्य लोगों के साथ मिलकर सहलेखन किया था। भसीन अपने लेखन के जरिये एक ऐसे नारीवादी आंदोलन का सपना बुनती थीं, जो वर्गों, सरहदों और सामाजिक-राजनीतिक विभाजनों की सीमाओं को लांघ जाए।
2017 में कमला भसीन ने ‘द वायर’ एक इंटरव्यू दिया था, इस इंटरव्यू में भसीन ने समाज को आइना दिखाने का काम किया, उन्होंने कहा कि पुरुषों को मैं यह कहना चाहूंगी कि उन्हें यह समझना होगा कि पितृसत्ता किस तरह उन अमानवीकरण (डिह्यूमनाइज) कर रही है। भसीन ने इस बात के कई उदाहरण दिए जैसे, पितृसत्ता मर्दों को रोने की इजाज़त नहीं देती। उन्होंने अपना इमोशनल इंटेलीजेंस खो दिया है। वे ख़ुद अपनी भावनाओं को नहीं समझ पाते।
अमेरिका में टेड टॉक हमें बताते हैं कि वहां लड़कियों की तुलना में किशोर लड़कों की ख़ुदकुशी की दर चार गुनी है, क्योंकि वे ख़ुद को ही नहीं समझ पाते हैं।
रिजेक्शन नहीं सह सकते पुरूष
इसी इंटरव्यू में कमला ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि अगर कोई औरत किसी पुरुष से कहती है कि वह उससे प्यार नहीं करती, तो उसके चेहरे पर तेजाब फेंक दिया जाता है। जब उसे लगता है कि उसकी बीवी ने उसे प्यार से नहीं चूमा, तो वह शिकायत करने के बजाय चांटा मारना ज्यादा आसान समझता है। क्योंकि पितृसत्ता ने उसे यही सिखाया है। एक पुरुष जो बस में किसी स्त्री के स्तनों को दबाने में खुशी महसूस करता है, उसे एक मनोरोग चिकित्सक के पास जाना चाहिए। वह सेहतमंद नहीं है।
इज्जत पुरूष की लुटती है औरत की नहीं
कई मंचो से आपने नारिवादियों की एक बात सुनी होगी कि एक महिला की इज्जत उसकी योनि में नहीं होती, दरअसल सबसे पहले महिलाओं को लेकर प्रयुक्त होने वाली शब्दावली पर भसीन ने ही सवाल उठाए थे। उनका कहना था कि जब बलात्कार होता है तो इज्जत मर्द की लुटती है औरत की नहीं।
उन्होंने आगे कहा कि आपको क्या लगता है, स्त्री का रेप करने वाला व्यक्ति इंसान होता है? उसे कहा गया, उसे दूसरे समुदाय की औरत का रेप करना है, क्योंकि वह एक लड़ाका है, और उसे यह रेप एक बड़े मकसद के लिए करना है। वह अपने शरीर को औरतों के खिलाफ एक हथियार में बदल देता है। लेकिन क्या वह हथियार तब प्रेम का औजार बन सकता है?
रेप से जन्में बच्चे नफरत की निशानी
कमला भसीन ने आगे कहा कि बांग्लादेश में पाकिस्तानी सैनिक, वियतनाम में अमेरिकी सैनिक या भारत में हिंदू दक्षिणपंथी या अन्य समुदाय का व्यक्ति जब किसी ऐसे समुदाय की औरत से रेप करता है जिससे वह नफरत करता है, तब वे अपना बच्चा उसी औरत के गर्भ में छोड़ देता है। यह बच्चे उनकी नफरत की निशानी बन जाते हैं। उनकी संतति के साथ उनका क्या रिश्ता है?
रेप से समुदाय की इज्जत मिट्टी में कैसे मिल सकती है? कमला भसीन
कमला भसीन ने समाज पर ताना कसते हुए कहा, ‘किसी समुदाय की औरत का रेप होने से समुदाय की इज्जत मिट्टी में कैसे मिल गई, तो मैं यह पूछती हूं कि आखिर वह लोग अपना सम्मान किसी औरत के शरीर में क्यों रखते हैं? इस दुनिया में जो कुछ खराब है, उसके पीछे मैं वर्चस्ववादी मर्दानगी, जहरीली मर्दानगी का हाथ देखती हूं।
आज कमला भसीन हमारे बीच नहीं हैं। उनका हमारे बीच से जाना समान समाज की कल्पना करने वालों के लिए एक बड़ी क्षति है। लेकिन कमला भसीन के अंदर जो नारीवादी चिंगारी थी, वह आज लाखों महिलाओं के भीतर सुलग रही है। भले ही वह इस दुनिया से रुख्सत हो गईं, मगर उनकी सोच उन्हें सदा समानता चाहने वालों के बीच जिंदा रखेगी।
आखिर में मैं कमला भसीन द्वारा कही गई दो लाइनों का जिक्र यहां जरूर होना चाहिए, वह कहती हैं कि
कुदरत ने मर्द-औरत में फर्क कम दिए हैं और समानताएं ज्यादा। मर्द और औरत में फर्क केवल प्रजनन के लिए दिए हैं, यह कुदरत ने नहीं बताया था कि कौन नौकरी करेगा? और कौन खाना बनाएगा?