देश के सर्वोच्च न्यायालय ने सर्वसम्मति से निर्णय दिया है कि निजता का अधिकार(राईट टू प्राइवेसी) भी मूल अधिकार है. दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने मूल अधिकार की सख्यां को नहीं बढ़ाया है, बल्कि संविधान के अनुच्छेद 21 की व्याख्या करते हुए यह निर्णय दिया है.
क्या है अनुच्छेद 21?
संविधान का अनुच्छेद 21 गारंटी देता है कि किसी व्यक्ति की ‘विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा’ उसके जीवन की स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जायेगा. और यह अधिकार भारत के नागरिकों को भी प्राप्त है और गैर- नागरिकों को भी.
इस निर्णय के बाद क्या बदलेगा??
संविधान के भाग 3 में उल्लेखित मूल अधिकारों की सबसे अलग बात यह है कि इनके उल्लंघन होने पर सीधे सुप्रीम कोर्ट में याचिका(पेटिसन) दायर कर सकते है. सुप्रीम कोर्ट इस याचिका पर सुनवाई करेगा और विधि अनुसार
निर्णय देगा. इस निर्णय के बाद निजता से जुड़े मुद्दे पर हम सीधे सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते है.
ऐसा भी नहीं था कि, अभी तक निजता से संबधित कोई कोई कानून ही नहीं था. सूचना प्रोद्दयोगिकी एक्ट, 2000(इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट) के अंतर्गत किसी की निजता के उल्लंघन से संबधित कुछ प्रावधान है.
जैसे- किसी की प्राइवेट फोटो शेयर करने पर 3 साल तक की जेल और 2 लाख तक का फाईन.
- मौलिक अधिकार है तो आधार पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है.
- सरकार की कुछ दूसरी योजनाओं जिनमें निजता के अधिकारों का टकराव होता हैं उन पर भी असर पड़ सकता है.
- सोशल साईट (जैसे- फेसबुक, व्हाट्सएप्प) की नीतियों पर भी असर पड़ सकता है.
अब सवाल ये उठता है कि पहले से संसद ने निजता से संबधित विधियों का ईजाद कर रखा है तो, अब क्या समस्या आन पड़ी कि सुप्रीम कोर्ट को दखल देना पड़ा.
सुप्रीम कोर्ट में सरकार की आधार की अनिवार्यता की नीति (समाज की कल्याणकरी नीतियों में) को चैलेंज करते हुए याचिका दायर की थी.
अभी तक सुप्रीम कोर्ट ने केवल निजता के अधिकार पर निर्णय दिया है, आधार से संबधित सुनवाई दूसरी खंडपीठ करेगी.
ये राईट तो प्राइवेसी की सुनवाई की पूरी प्रक्रिया इस प्रकार चली :-
7 जुलाई
3 जज की बैंच ने कहा कि आधार के मसले की सुनवाई कोर्ट की बड़ी संवैधानिक बैंच करेगी. और 5 जजों की बैंच का गठन किया गया.
18 जुलाई
5 जजों की बैंच ने बड़ी बैंच का गठन किया था. जिसमें मुख्य जस्टिस खैर सहित 9 जज थे.
19 जुलाई
सुप्रीम कोर्ट ने कहा निजता का अधिकार ‘परम’(एब्सोल्यूट) नहीं है, इससे रेगुलेट किया जा सकता है. केंद्र सरकार ने दलील दी कि निजता का अधिकार मूल अधिकार नहीं है.
26 जुलाई
कर्नाटक, पश्चिमी बंगाल, पंजाब और पुडुचेरी ने निजता की अधिकार के पक्ष में मत जाहिर किया. केंद्र ने कहा कि ये अधिकार कुछ परन्तुक के साथ मूल अधिकार हो सकता है.
27 जुलाई
महाराष्ट्र सरकार ने कोर्ट में कहा कि निजता का अधिकार कोई स्टैंड-अलोन राईट नहीं है बल्कि ये तो एक कांसेप्ट हैं.
1 अगस्त
सुप्रीम कोर्ट ने कहा किसी के निजी अधिकारों की रक्षा के लिए पहले से ही ‘व्यापक’ दिशा-निर्देश है.
2 अगस्त
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तकनिकी के युग में निजता की संकल्पना एक ‘हारी हुई लड़ाई’ है.
और यह सुनवाई 6 दिनों तक हुई. इस प्रकार ये निजता का अधिकार कुछ युक्तियुक्त(रिज़नेबल) प्रतिबंधों के साथ मूल अधिकार में सम्मिलित हुआ.