जब सीमांत गांधी की इस बात पर इंदिरा ने सिर झुका लिया और जेपी रो पड़े

Share

“दो बार नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित हुए बादशाह खान की जिंदगी और कहानी के बारे में लोग कितना कम जानते हैं। 98 साल की जिंदगी में 35 साल उन्होंने जेल में सिर्फ इसलिए बिताए ताकि इस दुनिया को इंसान के रहने की एक बेहतर जगह बना सकें।”
अपनी पूरी जिंदगी मानवता की कल्याण के लिए संघर्ष करते रहे ताकि एक बेहतर कल का निर्माण हो सके। सामाजिक न्याय, आजादी और शांति के लिए जिस तरह वह जीवनभर जूझते रहे, वह उन्हें नेल्सन मंडेला, मार्टिन लूथर किंग जूनियर और महात्मा गांधी जैसे लोगों के बराबर खड़ा करती हैं। बादशाह खान की विरासत आज के मुश्किल वक्त में उम्मीद की लौ जलाती है।
Image result for khan abdul ghaffar khan
खान गफ्फार खान (सीमान्त गांधी) 1969 में भारत की प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के विशेष आग्रह पर इलाज के लिए भारत आये। हवाई अड्डे पर उन्हें लेने श्रीमती गांधी और जयप्रकाश नारायण गए । खान जब हवाई जहाज से बाहर आये तो उनके हाथ में एक गठरी थी जिसमे उनका कुर्ता पजामा था । मिलते ही श्रीमती गांधी ने हाथ बढ़ाया उनकी गठरी की तरफ – “इसे हमे दीजिये ,हम ले चलते हैं” खान साहब ठहरे, बड़े ठंढे मन से बोले – “यही तो बचा है ,इसे भी ले लोगी” ?
जे पी नारायण और श्रीमती गांधी दोनों ने सिर झुका लिया । जयप्रकाश नारायण अपने को संभाल नहीं पाये उनकी आँख से आंसू गिर रहे थे । बटवारे का पूरा दर्द खान साब की इस बात से बाहर आ गया था । क्योंकि वो बटवारे से बेहद दुखी थे । वे भारत के साथ रहना चाहते थे ,लेकिन भूगोल ने उन्हें मारा ।
लेकिन भारत रत्न खान अब्दुल गफ्फार खां की भारत में कोई विरासत है क्या? दिल्ली की जिस गफ्फार मार्किट का नाम खां साहब के नाम पर रखा गया है, कहते हैं वहां दो नंबर का सामान मिलता है।

Exit mobile version