‘वोटर और रिजल्ट के बीच टेक्नोलॉजी पर निर्भर करना असंवैधानिक है’. यह सिध्दांत जर्मनी की कोर्ट ने ईवीएम के इस्तेमाल के सुनवाई करते समय निर्धारित किया था लेकिन यहाँ भारत मे जिसे दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहा जाता है हम भयानक रूप से हठधर्मिता के शिकार हैं. लेख लम्बा है पर इस खेल को समझने के लिए पूरा जरूर पढिए.
चुनाव आयोग ‘मेरा टेसू यही अड़ा’ की तर्ज पर ‘ईवीएम पवित्र है’ की रट लगाए हुए बैठा है, हम यह समझना ही नही चाहते कि क्यो विश्व के अधिकांश देश ईवीएम जैसी मशीन को कबाड़ में फेक रहे हैं.
कल लंदन की प्रेस कॉन्फ्रेंस में भारतीय मूल के अमेरिकी टेक एक्सपर्ट सैय्यद शुजा ने ईवीएम हैक करने के जो दावे किए है वह बताता है कि हम कितनी खोखली बुनियाद पर लोकतंत्र की इमारत को बुलंद करने की बात करते है.
कल इस हैकर ने यह दावा भी किया कि वह सार्वजनिक क्षेत्र की इलेक्ट्रॉनिक कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ईसीआईएल) की टीम का हिस्सा था जिसने ईवीएम मशीन का डिजाइन तैयार किया था यह बहुत महत्वपूर्ण बात है जिसकी तरफ ध्यान दिये जाना आवश्यक है.
ईवीएम हैकिंग को लेकर लोग यह सोचते है कि यह इसलिए सम्भव नही है क्योकि एक चुनाव क्षेत्र में हजारों ईवीएम इस्तेमाल की जाती है, उन्हें हैक नही किया जा सकता लेकिन ऐसे लोग कुछ बेसिक बाते भूल जाते हैं, कि चुनाव परिणाम में मनचाहे बदलाव के लिए एक साथ सारी evm हैक करना जरूरी नही है. सिर्फ 5 प्रतिशत ईवीएम हैक करके भी मनचाहे परिणाम हासिल किए जा सकते है.
यदि उन बूथों पर जहाँ हैकिंग करवाने वाला दल कमजोर है सिर्फ़ उसी बूथों के मत बिल्कुल उलट हो जाए तो आसानी से मनचाहे परिणाम हासिल किए जा सकते हैं. सारी ईवीएम हैक करने की बात तो वाकई बहुत बड़ी बेवकूफी होगी.
आपको यकीन नही होगा ऐसा ही एक मामला 2013 में सामने आया था सैयद शुजा ने भी ट्रांसमीटर के जरिए ईवीएम हैकिंग की बात की है, यह मामला वर्ष-2013 के मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में सुरखी विधानसभा क्षेत्र में सामने आया था. हारने वाले प्रत्याशी के इलेक्शन एजेंट बघेल ने बताया कि एक व्यक्ति ने चुनाव प्रचार के दौरान मुझसे संपर्क किया, उसने दावा किया था कि वह रिमोर्ट सेंसर टैक्नोलॉजी के जरिए ईवीएम में किसी भी प्रत्याशी के पक्ष में मतदान को प्रभावित कर सकता है। वह अपने साथ एक रेडियोनुमा कोई उपकरण लिए था। इसमें उसने ईवीएम की फ्रीक्वेंसी सेट करते हुए वोट यहां-वहां करने का दावा किया था हमने उसे भगा दिया था, लेकिन बाद में राहतगढ़ के पोलिंग बूथ पर उस व्यक्ति द्वारा दिखाई गई डिवाइस जब एक ईवीएम के नीचे लगी मिली तो मुझे संदेह हुआ कि उसने किसी प्रत्याशी विशेष के कहने पर उसे यहां इंस्टॉल किया होगा.
बघेल के अनुसार इस डिवाइस ने हमारे प्रत्याशी के चुनाव को बहुत हद तक प्रभावित किया. इसका सबसे बड़ा उदाहरण ये है कि वर्ष 2003 के चुनाव में इस बूथ पर 903 में से 864 कांग्रेस को तथा 24 भाजपा को मिले थे. वर्ष 2008 के चुनाव में 736 वोट में से 566 कांग्रेस को व भाजपा को 103 वोट मिले थे. लेकिन डिवाइस वाली घटना सामने आने के बाद इस बूथ से वर्ष 2013 के चुनाव में 653 वोट में से भाजपा को 341 व कांग्रेस को 278 वोट मिले थे। वोट में आए इस अंतर के आधार पर ही देश के तत्कालीन चीफ इलक्टोरल कमिश्नर ने शिकायत की गई थी.
लेकिन इस मामले में सारे सुबूत सामने होते भी कुछ नही किया गया. यह बताया गया कि डिवाइस की जांच से भी कुछ नहीं निकला.
एक बात जो ईवीएम के मामले में संदेह उत्पन्न करती है, वह यह है कि शक होने पर VVPAT की पर्चियों को गिनने की मांग को स्वीकार करने से चुनाव आयोग हर बार इनकार क्यो करता है, आखिर VVPAT लगाई किसलिए गयी है? दूसरी बात यह है कि चुनाव आयोग यह क्यो नही बता रहा कि जब हजारों ईवीएम खराब होती हैं, तो इसे सुधारने का ठेका किसको दिया गया है?
वैसे ईवीएम में गड़बड़ी मतदान के वक्त नही होती बल्कि तब होती है. जब यह मशीनें जिला मुख्यालय में रखी जाती है अब यह तथ्य सभी की जानकारी में है. इसीलिए राजनीतिक दल अपने कार्यकर्ताओं को स्ट्रॉन्ग रूम के सामने ही जमे रहने का आदेश देते है और बहुत सी ऐसी घटनाएं सामने आई हैं, जिसमे ऐसे एरिया में अनाधिकृत प्रवेश करने वाले लोग बकायदा लेपटॉप के साथ पकड़े गए हैं.
एक ओर दिलचस्प बात पर गौर कीजिएगा हमारे चुनाव आयोग को आम चुनाव के संचालन करने में महीनों लग जाते हैं, लेकिन सिर्फ कुछ ही घण्टो में मतगणना का खेल खत्म हो जाता है. क्या यह माना नही जा सकता कि परिणाम और विजेताओं की घोषणा करने के लिए भीड़ में, कई गंभीर खामियों की मतगणना की प्रक्रिया में अनदेखी की जाती है?
और भी बहुत सी बातें है जो चुनाव आयोग की ईवीएम को लेकर बरती जा रही हठधर्मिता को लेकर संदेह उत्पन्न करती है जैसे अभी तक इस बात का जवाब नही मिला है कि ईवीएम सप्लाई करने वाली दो कंपनियों और चुनाव आयोग के आंकड़ों में बड़ी असमानता क्यो है. आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक कंपनियों ने जितनी मशीनों की आपूर्ति की है और चुनाव आयोग को जितनी मशीनें मिली हैं उनमें करीब 19 लाख का अंतर है. यह मशीनें कहा गयी इसका जवाब अब तक नहीं मिला है.
जवाब तो इसका भी नहीं मिला है कि क्यों चुनाव आयोग चाहता है कि चुनाव आयोग की ईवीएम के डिजाइन का ईवीएम किसी अन्य को बेचे जाने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाए. यहाँ तक कि राज्य चुनाव आयोगों को भी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन बेचने के लिए अलग डिजाइन तैयार किया जाए.
आखिरकार राज्य चुनाव आयोग भी इसी देश की संवेधानिक व्यवस्था के आधार पर चुनाव करवाते है तो स्थानीय चुनावों के कंडक्ट कराने के लिए ईवीएम की दूसरी डिजाइन क्यो बनाई जाए?
ऐसे बहुत सारी बाते है जो सरकार और चुनाव आयोग की हठधर्मिता पर गंभीर प्रश्नचिन्ह खड़े करती है, लेकिन इसका जवाब ढूंढने की जहमत कोई नही करना चाहता. सिर्फ हवा में एक जुमला उछाल दिया जाता है, कि ईवीएम पवित्र है इसमे कोई छेड़छाड़ नही की जा सकती. और जैसे सियारों का दल हुआ हुआ करने लग जाता है. सभी दानिशमंद, सारा मीडिया, सत्ताधारी दल ओर चुनाव आयोग सब एक स्वर मे ‘पवित्र है’ ‘पवित्र है’ के स्वर में स्वर मिलाने लगते है.