गूगल ने आज भारतीय समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी तथा भारतीय हस्तकला के क्षेत्र में नवजागरण लाने वाली कमलादेवी चट्टोपाध्याय की 115वीं जयंती पर डूडल बनाकर याद किया है. कमलादेवी चट्टोपाध्याय का जन्म 3 अप्रैल, 1903 को कर्नाटक के मंगलौर में हुआ था.कमलादेवी ने आजादी के बाद भारतीय हथकरघा और रंगमंग में नई जान फूंकने में अहम भूमिका निभाई.आज देश में परफॉर्मिंग आर्ट से जुड़े कई संस्थान कमलादेवी के विजन का ही परिणाम हैं, जिसमें नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा, संगीत नाटक एकेडमी, सेंट्रल कॉटेज इंडस्ट्रीज इम्पोरियम और क्राफ्ट काउंसिल ऑफ इंडिया जैसे कई बड़े संस्थान शामिल हैं.उन्होंने भारतीय महिलाओं को सामाजिक-आर्थिक तौर पर ऊपर उठाने के लिए कई अच्छे काम किए थे.
विधवा विवाह जैसी कुरीति को तोड़कर कायम की मिसाल
कमलादेवी के पिता मैंगलोर के कलेक्टर थे और मां गिरिजाबाई एक गृहिणी थीं. कमलाबाई का विवाह 14 साल की कम उम्र में ही कर दिया गया था.विवाह के दो साल बाद ही कमलाबाई के पति का निधन हो गया. उसके बाद कमलाबाई ने दूसरी शादी कर विधवा विवाह जैसी कुरीति को तोड़कर एक मिसाल कायम की.आपको बता दें कि कमलाबाई ने दूसरा विवाह सरोजनी नायडू के भाई हरेन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय से किया था जो एक कलाकार थे. विधवा विवाह और जाति-बिरादरी से अलग विवाह करने की वजह से वे आलोचना की शिकार भी हुईं लेकिन उन्होंने इसकी जरा भी परवाह नहीं की.
फिल्मों में भी आजमाया हाथ
कमलादेवी ने अपनी कला को फिल्मों में भी आजमाया था और उन्होंने कुछ फिल्में भी की थीं. वे दो साइलेंट (मूक) फिल्मों में नजर आई थीं. इसमें से एक कन्नड़ फिल्म इंडस्ट्री की पहली साइलेंट फिल्म थी. इसका नाथ था ‘मृच्छकटिका (1931).’ लेकिन लंबे समय बाद वे एक बार फिल्मों में नजर आईं. वे ‘तानसेन’ फिल्म में के.एल. सहगल और खुर्शीद के साथ नजर आईं. उसके बाद कमलादेवी ने ‘शंकर पार्वती (1943)’ और ‘धन्ना भगत (1945)’ जैसी फिल्में भी की.
फरीदाबाद है कमलादेवी की देन
1923 में गांधीजी के असहयोग आंदोलन से उन्होंने आजादी पाने के लिए अपना कदम उठाया और नमक सत्याग्रह जैसे कई आंदोलनों में हिस्सा लिया. वहीं देश को आजादी मिलने और विभाजन के बाद भटक रहे शरणार्थियों को आश्रय देने के लिए कमलादेवी ने गांधीजी से अनुमति लेकर एक टाउनशिप बसाने का जिम्मा लिया. बापू ने कहा था कि तुम्हें सरकार की कोई मदद नहीं लेनी होगी. इस तरह फरीदाबाद सामने आया जहां 50,000 शरणार्थियों को रहने की जगह मिली. इसे सहकारिता की संकल्पना पर स्थापित किया गया था.
प्रतिष्ठित पुरुस्कारों से सम्मानित
कमलादेवी को उनके किए गए कार्यों के लिए 1955 में सरकार द्वारा पद्म भूषण से सम्मानित किया गया और वहीं 1987 में पद्म विभूषण का दूसरा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार से भी उन्हें सम्मानित किया गया.कमलादेवी 1966 में सामुदायिक नेतृत्व के लिए रमन मैगसेसे पुरस्कार का सम्मान भी प्राप्त कर चुकी हैं.
लेखन का भी था शौक
कमलादेवी चट्टोपाध्याय को लिखने का भी शौक था और उन्होंने कई पुस्तके लिखी जो लोगो में काफी चर्चित हुयी और लोगो ने उनके द्वारा लिखी पुस्तकों को काफी सराहा
- द अवेकिंग ऑफ इंडियन वोमेन
- जापान इट्स विकनेस एंड स्ट्रेन्थ
- अंकल सैम एम्पायर
- ‘इन वार-टॉर्न चाइना
- टुवर्ड्स ए नेशनल थिएटर’
इसी तरह उन्होंने कई पुस्तकें लिखीं और इसी के साथ लेखन कार्य में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया.