पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट को आजादी के बाद पहली महिला मुख्य न्यायधीश मिलने जा रही है। आजादी के बाद पाकिस्तान में ऐसा पहली बार होने जा रहा है, जब पाकिस्तान सर्वोच्च न्यायधीश की कुर्सी पर कोई महिला काबिज़ होेने जा रही है। आयशा मलिक को पाकिस्तान के इतिहास में पहली बार जिस महिला जज को यह पद दिया जा रहा है। वर्तमान सीजेपी “मुशीर आलम” ने सर्वोच्च न्यायालय में पदोन्नति के लिए सिफारिश की है। न्यायमूर्ति आलम 17 अगस्त को सेवानिवृत होने जा रहे है। और जल्द ही नई न्यायधीश के तौर पर आयशा शपत लेने वाली हैं। एक न्यायिक समीति आयशा को पाकिस्तानी सर्वोच्च अदालत का न्यायधीश बनाना चाह रही है। अगर वर्तमान की बात की जाए. तो आयशा इस समय उच्च न्यायलय में कार्यरत है। और वरिष्ठता की सूची में चौथे स्थान पर है।
1997 से शुरू किया करियर
आयशा ने 1997 से 2001 तक कराची में अपनी कानूनी फर्म में फखुरुद्दीन इब्राहिम की साथ काम करके अपना कानूनी करियर की शुरुआत की थी। वह 27 मार्च 2012 से पाकिस्तान में लाहौर उच्च न्यायलय की न्यायाधीश है। आयशा मालिक ने अपनी बुनियादी शिक्षा पेरिस और न्यू यॉर्क के स्कूल से की है और लंदन के “फ्रांसिस हॉलैंड स्कूल फॉर गर्ल्स” से ए लेवल की पढ़ाई की है। आयशा ने लाहौर के “पाकिस्तान कॉलेज ऑफ लॉ” से अपनी कानूनी पढ़ाई पूरी की। इसके बाद उन्होंने लंदन के “हावर्ड लॉ ऑफ स्कूल” से मास्टर्स किया।
अब जल्द ही आयशा एक पूरे देश की न्यायिक व्यवस्था की बागडोर संभालने जा रही हैं। वो भी कोई आम मुल्क नहीं पाकिस्तान। जहां सैनिक तानाशाही का इतिहास रहा है। दुनिया जिस मुल्क को कमजोर लोकतांत्रिक देश की नजरों से देखती है, उसी मुल्क की न्यायिक व्यवस्था की सर्वेसर्वा होना अपने आप में एक चुनौतीपूर्ण काम है। उम्मीद है आयशा इन चुनौतियों से बखूबी डील कर पाएंगी।
महिला अधिकारों के लिए सुना चुकी हैं अहम फैसले
2019 में आयशा लाहौर में महिला न्यायधीशों की सुरक्षा के लिए समीति की अध्यक्ष बनी। समीति उसी वर्ष जिला अदालतों के वकीलों द्वारा बनाई गई थी, जिसका उद्देश्य महिला न्यायधीशों के प्रति गुंडागर्दी के खिलाफ कार्य करना था। आयशा हर लड़की और महिला के लिए समानता और न्याय का भाव रखती है और इसके लिए कार्य भी करती आई है। अपने इन्हीें कामों के चलते आयशा महिला सशक्तिकरण का एक बेहतरीन उदाहरण है। गौरतलब है कि आयशा “द इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ विमन जज”(IAWJ) का भी हिस्सा हैं।
“टू फिंगर टेस्ट” को बताया पाकिस्तानी संविधान के खिलाफ
जनवरी में ,आयशा ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। जिसमें उन्होंने यौन उत्पीड़न से बचे लोगों पर “टू फिंगर” और “हाइमन टेस्ट” को अवैध और ‘पाकिस्तान के संविधान के खिलाफ’ घोषित किया। आयशा मालिक एक समाजसेविका के रूप में भी कई कार्यों को अंजाम दे चुकी है। आयशा ने गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों, सूक्ष्म वित्त कार्यक्रमों और कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रमों में शामिल “गैर सरकारी संगठनों” के लिए भी कार्य किए हैं। उन्होंने अपनी इच्छा से कई वर्षों तक लाहौर के “हरमन माइनर” स्कूल में अंग्रेजी भाषा और संचार कौशल में भी कार्य कर अपना योगदान दे कर विकास किया।