नज़रिया – त्योहार या उन्माद? तय कीजिये!

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बीती 10 अप्रैल को रामनवमी पूरे देश में मनाई गई, धूमधाम और जोर-शोर से, लेकिन देश के कई हिस्सों में यह शोर कोलाहल में तब्दील हो गया जो बेहद परेशान करने वाला है। देश के अलग-अलग हिस्सों से आये वीडियो फुटेज इस बात की गवाही दे रहे हैं कि अब हमारे लिए नफरत से ऊपर कुछ भी नहीं।

कैसे बदला त्योहारों का स्वरूप?

रामनवमी, दुर्गानवमी, चैत्र नवदुर्गा, चैत्र प्रतिपदा तो हम कई सालों से मना रहे हैं, लेकिन अचानक ही हमारे त्योहार इतने उत्तेजक कैसे बन गए कि उसके जलसे के दौरान हमें किसी का खाना-पीना या होना तक बर्दाश्त नहीं? कुछ साल पीछे जाऊं तो मेरी याद में श्री राम का जन्मोत्सव बड़े उत्साह के साथ घर-परिवार के लोग मिलकर मनाते थे, इस दिन घर पर सब व्रत रखते थे और दोपहर के 12 बजते ही भये प्रकट कृपाला दीनदयाला कौशल्या हितकारी के साथ प्रभु के जन्म का उल्लास मनाते थे, फिर फलाहार/भंडारा इत्यादि से व्रत का पारण होता था। कहीं-कहीं अखंड मानस का भी आयोजन होता था, लेकिन राम जन्म में शोभा यात्रा, बाइक पर सवार युवकों की तलवार लहराती टोली मैंने कभी नहीं देखी, लेकिन बीते कुछ सालों में कावड़ियों के गंगाजल लाने से लेकर रामनवमी तक में फूहड़ता और बेहूदगी के दृश्य आम हो गए हैं। आज हर त्योहार पर दो समुदायों के बीच फासला बढ़ता जा रहा है और दुर्भाग्यवश यह खाली जगह नफरत से पाटी जा रही है, कभी किसी फिल्म के माध्यम से, कभी उन्मादी गीतों के माध्यम से तो कभी नसें फुला देने वाले नारों के माध्यम से।

राम के बारे में-

कबीर कहते हैं कि राम के चार स्वरूप हैं, एक राम जो दशरथ के पुत्र हैं, दूसरे जो घट-घट में बैठे हैं, तीसरे जिनसे ये समस्त संसार चल रहा है और चौथे वो जिनका वर्णन ही नहीं किया जा सकता। कबीर ये भी कहते हैं कि हम अपने पूरा जीवन प्रथम राम को ही समझने में निकाल देते हैं, लेकिन फिर भी समझ नहीं पाते। इन चारों स्वरूपों में कोई भी स्वरूप ऐसा नहीं जिसके लिए हमें तलवार उठाने की ज़रूरत पड़ जाए, तुलसीदासजी ने कहा है कि ‘रामहि केवल प्रेम पियारा’। राम को केवल प्रेम प्यारा लगता है और राम का प्रेम सब को वशीभूत कर लेता है

जब राम को प्रेम प्यारा लगता है तब घृणा को आराध्य राम कैसे स्वीकार करेंगे? जिस विशेष कौम के लिए राम के नाम पर घृणा का प्रदर्शन किया जा रहा है, उसी धर्म मे जन्मे फरीद, रसखान, आलम रसलीन, हमीदुद्‍दीन नागौरी, ख्वाजा मोइनुद्‍दीन चिश्ती आदि कई रचनाकारों ने राम की काव्य-पूजा की है। कवि खुसरो ने भी तुलसीदासजी से 250 वर्ष पूर्व अपनी मुकरियों में राम को नमन किया है।

गोस्वामी तुलसीदास के सखा अब्दुल रहीम खान-ए-खाना ने कहा है ‘रामचरित मानस हिन्दुओं के लिए ही नहीं मुसलमानों के लिए भी आदर्श है।’

रामचरित मानस विमल, संतन जीवन प्राण,
हिन्दुअन को वेदसम जमनहिं प्रगट कुरान’

राम वो हैं जिनके दरबार में सब बराबर हैं, राम वो हैं जो शबरी के जूठे बेर खाते हैं, राम वो हैं जो विभीषण को अपनाते हैं, राम वो हैं जो अपने अनुज लक्ष्मण को रावण से ज्ञान पाने के लिए उन्हें रावण के चरणों की ओर बिठाते हैं, राम वो हैं जो हर जीव को प्रेम और करुणा सिखाते हैं।

राम की भक्ति में दोहे, चौपाई, शायरी समेत असंख्य गीत-गज़लें लिखी गईं हैं, जिनको लिखने के लिए कभी किसी को बाध्य करना पड़ा हो ऐसी बात देखने-सुनने में नहीं आती, राम से प्रेम और केवल प्रेम किया जा सकता है जो स्वतः हो जाता है, राम और राम के प्रति प्रेम किसी के वशीभूत नहीं हो सकते।

उन्माद के बारे में

वर्तमान परिदृश्य में राम जितने राजनैतिक कोई दूसरे देवी-देवता नहीं हैं, राम के नाम का उपयोग केवल सत्ता-सुख भोगने, समुदाय विशेष को नीचा दिखाने और अपने फूहड़ शक्ति प्रदर्शन के लिए सर्वाधिक किया जा रहा है। हाल की घटनाओं को देखें तो राम के नाम के साथ टोपी वालों के लिए जो नारे लगाए जा रहे हैं या हिंदुस्तान में रहने की शर्त गीतों के माध्यम से बताई जा रही है वो जगजाहिर है।

“मैं हिन्दू जगाने आया हूँ, मैं हिन्दू जगाकर जाऊंगा या हिंदुस्तान में रहना है तो जय श्री राम कहना होगा जैसे गीत इसके उदाहरण हैं”

कुछ समय पहले तक एक ही दिन में दो समुदाय विशेष के त्योहार एक-साथ पड़ने पर जिसे एकता का प्रतीक माना जाता था आज नफरत भुनाने के काम में लिया जा रहा है। उन्मादी युवकों की टोली भगवा झंडा और नंगी तलवारें लिए गली-गली घूम रहे हैं और समुदाय विशेष को उकसाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। त्योहार मनाने के इस तरीके का पता आपको किसी धर्म-ग्रंथ में ढूंढे से भी नहीं मिलेगा। विचारणीय यहाँ यह है कि इस उन्माद की प्रतिक्रिया को हम कब तक रोक सकेंगे? यहाँ यह बात भी एक बार दोहराने योग्य है कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है।

सनातन के बारे में

आज जो लोग गर्व के साथ अपने नाम के आगे सनातनी लगाते हैं उन्हें सनातन के बारे में थोड़ा और जानना चाहिए, उन्हें यह भी जानना चाहिए कि हिन्दू होने के लिए किसी विशेष प्रक्रिया की ज़रूरत नहीं होती है। आपको किसी भी धर्म का होने के लिए कुछ विशेष धर्म चिन्हों को धारण करने की आवश्यकता होती है, यदि आप वे सारे धर्म चिन्ह उतार दें तो आप स्वतः हिन्दू हो जायेंगे, आपको किसी विशेष प्रक्रिया के द्वारा हिन्दू नहीं बनाया जा सकता ऐसी कोई प्रक्रिया इस धर्म में है ही नहीं, हाँ! राजनीति में ऐसी प्रक्रिया ज़रूर है जिसके द्वारा आजकल दूसरे धर्म के नेताओं का हिन्दू धर्म में परिवर्तन करवाया जा रहा है। सनातन बहुत विशाल है, बहुत भव्य है, जिसमें कट्टरता का कोई स्थान है ही नहीं केवल उदारता का है, अपनी कट्टरता दिखाकर इसे छोटा मत बनाइये, साथ ही किसी अन्य धर्म के सब्र का इम्तेहान मत लीजिए, ऐसा करके आप केवल राजनीति को फायदा और खुद को नुकसान दे रहे हैं।

राजनीति के बारे में

आज देश में महँगाई और बेरोजगारी चरम पर है, अर्थव्यवस्था चरमरा गई है, लेकिन देश के युवाओं के बीच से यह मुद्दा गायब है। देश के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों को राष्ट्रद्रोही घोषित किया जा चुका है, वहां खाने को लेकर लड़ाईयाँ करवाई जा रही हैं। युवाओं के बीच धर्म का मुद्दा सबसे लोकप्रिय है और ज़्यादातर बेरोजगार युवाओं को धर्म की रक्षा या दूसरे धर्म की अवहेलना में लगा दिया गया है। यह बात लगातार दोहराई जा रही है, लेकिन देश के लोगों खासकर के युवाओं ने अपने आँख-कान बंद कर लिए हैं, किताबें फेक दी हैं अब केवल व्हाट्सएप्प पढ़कर और पिक्चर देखकर ज्ञानार्जन कर रहे हैं। नौकरी न मिल पाने और महंगाई के साथ जीने की अपनी पीड़ा को वे धर्म-विशेष के लोगों को सताकर-उकसाकर, उन्हें नीचा दिखाकर कम कर रहे हैं।

परिणाम

धर्मान्धी उन्माद के परिणाम कितने भयावह हो सकते हैं यह हम सबकी कल्पना में है, जिसका एक टुकड़ा हमनें 2 साल पहले दिल्ली में देखा भी है। हम सभी का समय रहते चेतना और इन गुंडों की पहचान कर इन्हें इनकी असली जगह दिखाने में अब देर नहीं करनी चाहिए, हमें अपने पीर-बाबाओं और राम के नाम को दूषित होने से बचा लेना चाहिए, सत्ताधारी पार्टी के अगले चुनाव को जीतने के लिए खुद को, अपने बच्चों को मोहरा बनने से बचा लेना चाहिए और अपने देश को खंडित होने से बचा लेना चाहिए इससे पहले कि बहुत देर हो जाये और तिनका-तिनका जोड़ा ये भाईचारा, ये एकता, ये खूबसूरती धुंधला जाए और इस पर कभी न छूटने वाला धब्बा लग जाये।