व्हाट्सएप पर एक फेक न्यूज़ बहुत जोर शोर से फैलाई जा रही है कि यह सारी लड़ाई सिर्फ हॉस्टल कमरे का किराया 10 रु से बढ़ाकर 300 रु किये जाने के खिलाफ है. पढ़ने वाले को भी लगता है, 300 रु महीना तो कोई ज्यादा नहीं है. व्हाट्सएप के झांसे में न आएं, वह अधूरी और भ्रामक जानकारी देता है.
कमरा किराया बहुत सारे मदों में से एक मद है, शेष ढेर सारे मदों में वृद्धि का प्रस्ताव है. सबसे जरूरी समझने वाली बात ये है कि हॉस्टल के मेस-सफाई-रखरखाव आदि का खर्च और इस के लिए रखे गए कर्मचारियों का खर्च अब विद्यार्थियों से लिया जाएगा.
अब थोड़ा गणित समझें. 18 हॉस्टल, प्रति होस्टल 40 कर्मचारी, प्रति कर्मचारी 20000 रु – यह हुआ 17.28करोड़ सालाना. यदि प्रति कर्मचारी 25000 माने तो हुआ 21.6 करोड़ सालाना. इसे विद्यार्थियों से लिया जाएगा. औसतन एक विद्यार्थी जो अभी 3-5 हज़ार महीना होस्टल फीस देता है, वह छलांग मारकर 12-15 हज़ार हो जाएगी. इसमें अभी पानी,बिजली, इंटरनेट, पुताई,मरम्मत, आदि नहीं जोड़ा गया है यानी रकम इससे ज्यादा भी हो सकती है. और हाँ न्यू पेंशन स्कीम की तरह यह भी बाजार की दरों के साथ स्वाभाविक रूप से जुड़ गई है तो आप अगले महीने या साल की रकम के बारे में अनुमान भी नहीं लगा सकते और विरोध तो नहीं ही कर सकते.
अब थोड़ा गणित और समझिए. ( यह सब जेएनयू छात्रसंघ द्वारा प्रस्तुत आंकड़े हैं ) जेएनयू के लगभग 2500 पीएचडी विद्यार्थी फेलोशिप पाते हैं. हॉस्टल में रहने के कारण उन्हें HRA नहीं मिलता. JRF का दिल्ली का HRA है 7500 रु. यह हुआ 22.5 करोड़ सालाना. यानी समझे आप ! जेएनयू के विद्यार्थी अपना खर्चा अप्रत्यक्ष रूप से खुद दे ही रहे हैं. विश्वविद्यालय बेशर्मी से पब्लिक फंड्स का दुरुपयोग कर इसे व्यवसाय में बदलना चाहता है.
अब एक और आंकड़ा जानिए. जेएनयू के 46 फीसदी विद्यार्थियों की पारिवारिक सालाना आय 144000 रु से कम है यानी 12000 रु महीना. ( यह सार्वजनिक उपलब्ध आँकड़ा है, प्रवेश के समय विद्यार्थी को भरना होता है ) अर्थात यह फीस वृद्धि जेएनयू के आधे के करीब विद्यार्थियों की पारिवारिक आय के बराबर सी है. अभी इन आंकड़ों में दिल्ली में होने वाले अन्य खर्चे – जिसमें किताबें और परिवहन जो शोधार्थी के लिए सबसे जरूरी है, वो जोड़े ही नहीं गए हैं.
सीधे सीधे गरीब विद्यार्थी के लिए फरमान है – जेएनयू तुम्हारे लिए नहीं है, बोरिया बिस्तर समेटो घर जाओ.
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