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नज़रिया – JNU प्रशासन सत्ता में बैठी भाजपा और RSS के इशारे पर काम कर रहा है

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अभी हाल में मेरे ऊपर और मेरे कुछ साथियों के ऊपर जो सज़ा RSS/BJP के पिट्ठु JNU के अधिकारियों ने सुनाई है उसके बारे में।
एक बार फिर भाजपा और गोदी मीडिया बहुत उत्साहित है JNU के स्टूडेंट्स को अपराधी साबित करने में। इस बार बहाना है JNU प्रसाशन की ‘हाई लेवल’ जाँच समिति का आदेश। जिसमें उनका दावा है के उनकी कल्पना हक़ीक़त हो गयी है।
मैं बिलकुल साफ़ तौर पर यह कहना चाहता हूँ के हम लोगों को एक सोची समझी साज़िश के तहत जाँच समिति के बहाने से फँसाने की कोशिश की जा रही है। जाँच समिति पहले दिन से मन बना कर बैठी थी इस आदेश को देने के लिये । JNU प्रशासन सत्ता में बैठी भाजपा और RSS के इशारे पर काम कर रहा है। जाँच समिति ने कभी भी बिना पक्षपात के काम नहीं किया।
कोर्ट ने बार बार इस तरह की जाँच समितियों के काम करने के तरीक़े में ख़ामियाँ निकाली हैं और हमारे डर को दूर किया है और हमेशा हमें राहत मिली है। यह तीसरी बार हो रहा है पिछले दो सालों में जब प्रशासन ने मुझे JNU से निकालने के आदेश जारी किए हैं। जो आदेश दो बार कोर्ट ने ख़ारिज कर दिया। हम इस जाँच समिति के मज़ाक़ को और उसके फ़ैसले को सिरे से नकारते हैं। यह पूरा फ़ैसला इंसाफ़ के उसूलों के ख़िलाफ़ है इस में लिखी बहुत सी बातें अपने आप में मेल नहीं खाती और यह अपने आप में झूट का बहुत बड़ा पुलिंदा है। बहुत जल्द ही इस झूट का भंडा फूट जाएगा।
हम इस आदेश को कोर्ट में चुनोती देंगे। हमारा आंदोलन इस नाइंसाफ़ी और उन लोगों के ख़िलाफ़ जारी रहेगा जो सिस्टम के ख़िलाफ़ उठने वाली आवाज़ों को पूरे देश के विश्वविद्यालयों  में दबाना चाहते हैं। JNU के हाई लेवल इन्क्वायरी  कमिशन का यह आदेश साफ़ तौर पर उन लोगों को निशाना बना कर ख़ामोश करने की कोशिश है जो लोग सिस्टम के ख़िलाफ़ बोलने की जुर्रत करते है और अब तक किसी भी तरह के दवाब में आ कर प्रशासन के सामने घुटने नहीं टेके।
मैं इसके साथ साथ यह भी कहना चाहता हूँ। हाँ हम लोग JNU के छात्र नेता हैं और हमेशा ज़ुल्म और नाइंसाफ़ी के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई है। सत्ता के नशे में चूर मोदी सरकार की नीतियों का भी विरोध किया है। साथ ही साथ हम लोग छात्र भी हैं और बड़ी लगन से सालों पढ़ाई की है। हमारे लिये पढ़ाई और राजनीति अलग नहीं है। हमारी राजनीति का प्रभाव हमारी पढ़ाई पर होता है और हमारी पढ़ाई का प्रभाव हमारी राजनीति पर। दोनो का ताल्लुक़ समाज के पिछड़े और दबे हुए लोगों के अधिकार से है। हम जब जनता के पैसे से बनी यूनिवर्सिटी में पढ़ते हैं तो हमारी समाज के लिय भी कुछ ज़िम्मेदारी बनती है।
मेरी ख़ुद की PHD आदिवासियों के आज़ादी के बाद हुए समाजिक और राजनीतिक शोषण पर है। कमाल की बात है जो सरकार यह कहती है की हम लोग पढ़ाई को लेकर सीरीयस नहीं हैं वो ही हमें PHD जमा करने से रोकने लिये  पूरी ताक़त लगा रही है। वो PHD जिसमें सालों की मेहनत और गहन खोज बीन लगी है। उन लोगों ने इस जाँच समिति कोई आदेश तब दिया है जब हमारी PHD जमा करने की आख़री तारीख़ में सिर्फ़ दो हफ़्ते का समय बचा है जो अपने आप में एक घिनोनी साज़िश है। यह एक गन्दी सोच का नतीजा है और एक हमला है जनता के पैसे से चलने वाली शिक्षा व्यवस्था पर, समाजिक न्याय पर हुए शोध पर और सिस्टम के ख़िलाफ़ उठने वाली आवाज़ों पर। हम उन लोगों को बता देना चाहते हैं हम किसी भी क़ीमत पर नहीं झुकेंगे।
जब मोदी सरकार हर वादे में झूटी साबित हो रही है चाहे वो बेरोज़गारी हो,किसानों की दुर्दशा हो, मज़दूरों की ख़राब हालत हो, युवाओं की बेबसी हो। यहाँ तक की सांप्रदायिकता की भी अपनी एक सीमा है। इसलिये  एक बार फिर बड़ी बेचैनी के साथ अपने सारे प्रचार तंत्र के साथ इस तरह से अपने विरोधियों को शांत करने की कोशिश कर रही है।
2019 के चुनाव से पहले सारे हथकंडे अपनाय जाएँगे, बहुत सारे  नए जुमले होंगे, लोगों पर झूटे केस होंगे, साज़िश करके बहुतों को जेल भेजा जाएगा और विरोधियों पर हर तरह का हमला होगा। इस बेचैनी से सिर्फ़ सरकार की कमज़ोरी और घबराहट नज़र आती है ऐसी सरकार जिसने देश और देशवासियों को धोका दिया है।
उमर खालिद
छात्र एक्टिविस्ट , बासो एवं यूनाईटेड अगेंस्ट हेट
पीएचडी स्कॉलर, जेएनयू नई दिल्ली
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