देश के महान स्वतंत्रता सेनानी, प्रखर शिक्षाविद, लेखक और अग्रणी समाज सेवक मौलाना मज़हरुल हक़ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के ऐसे योद्धाओं में रहे हैं जिन्हें उनके स्मरणीय योगदान के बावज़ूद इतिहास ने वह यश नहीं दिया जिसके वे हकदार थे। 1866 में पटना जिले के बिहपुरा के एक जमींदार परिवार में जन्मे तथा सिवान जिले के ग्राम फरीदपुर में जा बसे मज़हरुल हक़ लंदन से क़ानून की उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद पटना और छपरा में वक़ालत के साथ सामाजिक कार्यों और देश के स्वाधीनता आंदोलन से जुड़ते चले।
1916 में बिहार में होम रूल मूवमेंट के वे अध्यक्ष बने। अंग्रेजों के खिलाफ डॉ राजेन्द्र प्रसाद के साथ चंपारण सत्याग्रह में शामिल होने के कारण उन्हें जेल की सजा भी हुई। जब महात्मा गांधी ने देश में असहयोग और ख़िलाफ़त आंदोलनों की शुरुआत की तो मज़हरुल हक़ अपनी वकालत का और मेंबर, इम्पीरियल लेजिस्लेटिव कौंसिल का सम्मानित पद छोड़ पूरी तरह स्वाधीनता आंदोलन का हिस्सा हो गए।
स्वाधीनता आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए 1920 में उन्होंने पटना में अपनी सोलह बीघा ज़मीन दान दी जिस पर स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान महत्वपूर्ण योगदान देने वाले सदाकत आश्रम की स्थापना हुई। यह आश्रम जंग-ए-आज़ादी के दौरान स्वतंत्रता सेनानियों का तीर्थ हुआ करता था। सदाकत आश्रम से उन्होंने ‘मदरलैंड’ नाम से एक साप्ताहिक पत्रिका भी निकाली जिसमें आज़ादी के पक्ष में अपने प्रखर लेखन के कारण उन्हें जेल भी जाना पड़ा।
सदाकत आश्रम आज़ादी के बाद बिहार कांग्रेस का मुख्यालय बना, लेकिन आज देश तो क्या बिहार के भी बहुत कम कांग्रेसियों को आज मौलाना साहब की याद होगी। फरीदपुर में उनका घर ‘आशियाना’ उस दौर में स्वतंत्रता सेनानियों का आश्रय-स्थल हुआ करता था। पंडित मोतीलाल नेहरू, सरोजिनी नायडू, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, मदन मोहन मालवीय सहित अंग्रेजों द्वारा गिरफ्तारी के डर से भागे आज़ादी के सेनानियों ने ‘आशियाना’ में पनाह पाई थी।
मौलाना मजहरुल हक़ बिहार में शिक्षा के अवसरों और सुविधाओं को बढ़ाने तथा निःशुल्क प्राइमरी शिक्षा लागू कराने के लिए अरसे तक संघर्ष करते रहे। गांघी के असहयोग आंदोलन के दौरान पढ़ाई छोड़ने वाले युवाओं की शिक्षा के लिए उन्होंने सदाकत आश्रम परिसर में विद्यापीठ कॉलेज की स्थापना की। यह विद्यापीठ उन युवाओं के लिए वरदान साबित हुआ जिनकी पढ़ाई आन्दोलनों और जेल जाने की वजह से बाधित हुई थी। बिहपुरा के अपने पैतृक घर को उन्होंने एक मदरसे और एक मिडिल स्कूल की स्थापना के लिए दान दे दिया ताकि एक ही परिसर में हिन्दू और मुस्लिम बच्चों की शिक्षा-दीक्षा हो सके। सामाजिक कार्यों में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए उन्होंने पर्दा प्रथा के खिलाफ जनचेतना जगाने का प्रयास किया था।
मौलाना साहब देश की गंगा-जमुनी संस्कृति और हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रबल हिमायती थे। उनका कथन है – ‘हम हिन्दू हों या मुसलमान, हम एक ही नाव पर सवार हैं। हम उबरेंगे तो साथ, डूबेंगे तो साथ !’ आज़ादी की सुबह देखने के पहले 1930 में उनका देहावसान हो गया। स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान की स्मृति में सरकार ने 1998 में मौलाना मज़हरुल हक़ अरबी एंड पर्शियन यूनिवर्सिटी की स्थापना की थी। पटना में उनके नाम से एक प्रमुख सड़क और छपरा में उनकी एक मूर्ति तथा उनके नाम से आडिटोरियम भी है ! मौलाना मज़हरुल हक़ के यौमे पैदाईश (22 दिसंबर} पर खिराज-ए-अक़ीदत !
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