अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा मानवीय और पवित्र है बिना लाइसेंस परमिट वालो की वजह से:
मैं जिससे आलू, प्याज़ टमाटर लेता हूँ उसके पास इन्हे बेचने का कोई लाइसेंस नही है, सुबह जो अखबार डालते है उनके पास भी अखाबार बेचने का कोई परमिट नही है, मेरे अपार्टमेंट के गेट पर सुबह डबलरोटी, दूध, अंडे वगेहरा जो बेचने आता है उसके पास भी कोई लाइसेंस नही होगा, गेट के बगल में एक टेलर मास्टर बैठते है बगैर किसी लाइसेंस के. कपड़े प्रेस करने वाले के पास भी कोई लाइसेंस नही है. सामने पान सिगरेट, जूता रिपेयर और साइकिल ठीक करने वालो के पास भी इन कामो का कोई परमिट नही है. इस कड़ी में मीट और मछली बेचने वाले फुटकर व्यापारी भी आते हैं. अपनी पूरी दिनचर्या में हमारे इर्द गिर्द जो भी काम धंधा होता है उसका बड़ा हिस्सा बिना किसी लाइसेंस-परमिट के चलता है. हमारा और आपका ज्यादा लेन देन भी इन्ही लोगो से चलता है.
National Sample Survey के डेटा के मुताबिक 2010 में देश में रोज़गार में लगे लोगो की संख्या 46.5 करोड़ थी. इसमे 43.7 करोड़ लोगो की रोज़ी रोटी इसी बिना लाइसेंस परमिट वाले लोगो से चलती थी और संगठित छेत्र ने केवल 2.8 करोड़ लोगो को ही रोज़गार दिया था. ये अनुपात कमोबेश अभी भी वैसा ही है.
राष्ट्रीय आय को देखे तो 30% रकम इन्ही लोगो से आती है जबकि संगठित क्षेत्र जिसे सारी सुविधाये, बैंकिंग, सब्सिडी, करो में छूट मिलती है उसकी की हिस्सेदारी असंठित क्षेत्र से आधी से भी कम 12-14% ही है. अमेरिका की राष्ट्रीय आय में कार्पोरेट सेक्टर की भागीदारी 70% है. 2008 के आर्थिक संकट में अमेरिकी अर्थव्यवस्था डूबी और भारत बच गया उसकी बड़ी वजह यही अंतर भी था. इन्ही बिना लाइसेंस परमिट वालो ने देश की अर्थव्यवस्था को डूबने से बचाया था.
सामाजिक न्याय में भी अव्वल:
सामाजिक अवस्था, भौगोलिक विषमता और शिक्षा में पिछड़ेपन जैसे तमाम मानको में भी ये बिना लाइसेंस परमिट वालो का रिकार्ड टाटा, अंबानी, अडानी और यहॉ तक सरकार से भी काफी बेहतर है. यानि रोज़गार देने में पिछड़ों, अल्पसंख्यकों, महिलाओं और विक्लांगो में भी ये कार्पोरेट सेक्टर और आरक्षण लागू होने बावजूद सरकार से भी कई गुना आगे हैं.
मीट के खुदरा व्यापार पर उत्तर प्रदेश की सरकार का ये हमला सोचा समंझा है और ये पूरा असंठित क्षेत्र असल निशाने पर है.
ये बिना लाइसेंस परमिट वाले बहुत पाक साफ है. देश की अर्थव्य्वस्था चलाते है. पुलिस और नगरपालिका की हफ्ता वसूली के शिकार होने के बावजूद आधे से ज्यादा GDP यही देते है. ये किसी राजनीतिक पार्टी को चंदा भी नही देते हैं और इनके पास कोई CII, FICCI, ASSOCHAM जैसे थिंक टैंक भी नही है नीतियों को अपने पक्ष में बनवाने के लिये. इसके न स्विस बैंक में खाते हैं और न ही ये कमाया हुआ पैसा विदेश में निवेश करता है.
सोचिये देश की अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा कितना मानवीय और पवित्र है इन बिना लाइसेंस परमिट वालो की वजह से.
जब नोटबंदी हुई तो इन्ही लोगो ने हमें और आपको सब्जी, दूध, राशन उधार दिया था – ये काम बिग बाज़ार कभी नही करता. इनके साथ खड़ा होना देश की अर्थव्यवस्था के साथ खड़ा होना है. किसी भी देशभक्त के एजेंडे में होना चाहिये.