सोशल मीडिया के बढ़ते चलन के साथ ही हिंदी लेखन के साथ प्रयोग भी दिन-प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं, आज सोशल/डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर हिंदी लिखने वालों की संख्या में लगातार बढ़ोत्तरी हुई है, लेकिन साथ ही व्याकरण संबंधी अशुद्धियों में भी बेशुमार वृध्दि हुई है।
डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर लेखन के नियमों में भी बदलाव हुए हैं, जैसे- चन्द्र बिंदु नहीं लगाना, खड़ी पाई की जगह फुल स्टॉप का प्रयोग आदि। इन नियमों से इतर सोशल मीडिया के लिए काम करने वाले प्रोफेशनल्स का हिंदी के प्रति गैर ज़िम्मेदाराना रवैया साफ देखने को मिलता है, इसकी वजह सोशल मीडिया पर आम बोल-चाल की भाषा लिखने की प्रेरणा और व्हाट्सएप्प यूनिवर्सिटी में हिंदी को तवज्जो न देना भी समझ आता है। अब फेक न्यूज़ वाले ग्राफ़िक्स में हिंदी की अशुद्धि भला कौन ही जाँचेगा? परिणामस्वरूप सही जगह पर भी गलत हिंदी ने अपनी जगह बना ली।
आज आत्मविश्वास से भरे हमारे हिंदी कंटेंट राइटर्स को छोटी कि और बड़ी की का अंतर भी सामान्य लगता है और इसे वे “होता है, चलता है” कहकर हँसते हुए टाल जाते हैं और ऐसी ही सामान्य/असामान्य गलतियां लगातार करते हैं।
यदि हमारी पहचान लिखने से है तो क्या भाषा की शुद्धता के प्रति हमारी कोई ज़िम्मेदारी नहीं? क्या अशुद्धियों को “छोटी सी गलती है, कोई फर्क नहीं पड़ता” जैसे मापदंडों पर तौलना हमें बंद नहीं कर देना चाहिए?
आज हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में किसी ने इंस्टाग्राम पर एक कोट लिखा था, हिंदी के प्रति बेचारगी दर्शाते उस 2 लाइन के उस कोट में 4 बड़े शब्द गलत लिखे हुए थे, यदि लिखने वाले हिंदी को लेकर इतने चिंतित हैं तो क्या उन्हें खुद से शुरुआत नहीं करनी चाहिए?
लेखन की अशुद्धि उस पर भी उस भाषा में अशुद्धि जिसे बोलकर, लिखकर, सुनकर हम बड़े हुए हैं, हमें स्वीकार नहीं करना चाहिए और बजाय इसके कि फलाँ अशुद्ध लिखता है, इतना तो चलता है जैसी दलीलों के हमें खुद के लेखन में सुधार करने का हर सम्भव प्रयास करते रहना चाहिए।
चुनाव और पीआर मैनेजमेंट कम्पनियों से लेकर न्यूज़ पोर्टल्स तक हर लिखने वाले को इसकी ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए कि चाहे वो 2 लाइन लिखे या 2000 शब्द, अशुद्ध न लिखे। बोलचाल की भाषा लिखे या विशिष्ट लेकिन लिखे कम से कम शुद्ध और इसकी शुरुआत हमें ककहरा (बारहखड़ी) को बारंबार पढ़कर, समझकर वहां से करनी चाहिए, इसीलिए “कंटेंट राइटर्स” को आज का दिन ककहरा (बारहखड़ी) को समर्पित करना चाहिए।