क्वॉड से बदलेगी चीन की विस्तारवादी रणनीति

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किसी भी राष्ट्र की विदेश नीति मुख्य रूप से सिद्धांतों , हितों और उद्देश्य का समूह होता है, जिनके माध्यम से वह राष्ट्र दूसरे राष्ट्र के साथ संबंध स्थापित करके उन सिद्धांतों की पूर्ति करने हेतु कार्यरत रहता है। हर एक देश की अपनी विदेश नीति होती है, जिसके द्वारा ही वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने संबंधों का निरूपण करता है। इसी प्रकार विदेश नीति का अध्ययन भी अंतरराष्ट्रीय संबंधों का अस्तित्व व्यवहारिक रूप से होने के साथ-साथ विभिन्न बिंदुओं को जोड़ने वाली प्रक्रिया भी है। इससे दूसरे राष्ट्र के आंतरिक एवं बाह्य घटनाक्रम को समझने में भी आसानी होती है।

चीन की बढ़ती विस्तारवादी रणनीति के खिलाफ चार देश एकजुट हुए हैं जिससे इंडो पेसिफिक में शांति की स्थापना को सुनिश्चित किया जा सके। क्योंकि जिस प्रकार से चीन विस्तारवादी नीति के साथ आगे बढ़ रहा है उससे विश्व में अशांति का भाव साफ दिखाई देता है।

क्वाड समूह उच्च स्तरीय वार्ता 2020

चर्चा में क्यों रहा था-

  • जापान की राजधानी टोक्यो में ऑस्ट्रेलिया भारत जापान संयुक्त राज्य अमेरिका के क्वाड्रीलेटरल यानी क्वाड समूह की बैठक संपन्न हुई थी।
  • इस बैठक में क्वाड समूह के विदेश मंत्रियों ने हिस्सा लिया था।
  • परंतु चीन ने इस बैठक की पूर्ण आलोचना की थी।

क्वाड समूह की प्रमुख बातें-

  • 5G कनेक्टिविटी
  • साइबर सुरक्षा
  • विनिर्माण क्षेत्र में आपूर्ति श्रृंखला के लिए की जाने वाली पहल
  • समुद्री सहयोग और बुनियादी ढांचा
  • कनेक्टिविटी
  • कोविड-19 वैक्सीन के लिए वितरण योजनाओं पर विचार
  • “क्षेत्रीय मूल्यांकन” करना’ जिसमें दक्षिण और पूर्वी चीन सागर में विकास ,वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC), हांगकांग और ताइवान में 6 महीने का स्टैंड- ऑफ शामिल है।
  • चीन के आक्रामक मुद्दे की भी चर्चा की गई थी।
  • बैठक नवंबर माह में होने वाले मालाबार नौसैनिक अभ्यास में ऑस्ट्रेलिया को शामिल करने के मुद्दे पर भी विचार किया गया था।
  • इस बैठक में क्वाड समूह के देशों के बीच व्यापार संबंधों का निर्माण पर जॉब देने की भी बात कही गई थी।
  • जापान की भारत और ऑस्ट्रेलिया के साथ त्रिपक्षीय “Supply chain Resilience Initiative (SCRI)”पहल की योजना पर चर्चा की गई थी।
  • बैठक में विनिर्माण क्षेत्र में चीन पर निर्भरता को कम करने पर भी जोर दिया गया था।
  • क्वाड समूह की बैठक में भी जनवरी 2020 में घोषित अमेरिका की “ब्लू डॉट नेटवर्क”की योजना की फंडिंग पर भी विशेष रुप से बातचीत की गई थी

इसमें भारत का क्या पक्ष था

क्वाड समूह की टोक्यो बैठक में भारत की आसियान देशों से “पूर्व पश्चिम”कनेक्टिविटी पर चर्चा की गई

इस बैठक में इंडो प्रशांत क्षेत्र में बुनियादी ढांचे और कनेक्टिविटी परियोजनाओं के लिए संयुक्त रूप से चारों देशों द्वारा फंडिंग पर विशेष बातचीत की गई थी।

इस बैठक में भारत की जापान, ऑस्ट्रेलिया और संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ द्विपक्षीय रक्षा सहयोग पर विशेष चर्चा की गई।

तथ्य

क्वाड समूह के चारों देश हिंद महासागर में 2004 की सुनामी से भी नुकसान से निपटने के लिए एक साथ आए थे।

  • बाद में समूह की कार्य स्तरीय बैठक होती रही
  • 2007 में क्वाड देशों के बीच समुद्री अभ्यास हुआ
  • चीन की प्रतिक्रिया सहित कई कारणों से क्वाड 1.0 अस्तित्व में नहीं आ पाया।
  • नवंबर 2017 में क्वाड को पुनर्जीवित किया गया।
  • 2017 से क्वाड कि मंत्री स्तरीय बैठक नियमित रूप से होती रही है।
  • क्वाड समूह के देशों का दृष्टिकोण Free and indo-pacific के लक्ष्य को हासिल करना है।

क्वाड सम्मेलन 2021

24 सितंबर 2021 में यह बैठक विस्तार रूप से गठित की गई। जिसे प्रथम शिखर सम्मेलन का नाम दिया गया है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित जापान के प्रधानमंत्री योशीहिदे सुगा और  ऑस्ट्रेलियाई समकक्ष स्कॉट मॉरीसन अमेरिका पहुंचे। इस पहले  क्वाड शिखर सम्मेलन की मेजबानी अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने की थी।क्वाड समूह में 4 देश शामिल है जैसे भारत, जापान ,ऑस्ट्रेलिया और संयुक्त राज्य अमेरिका ।

इन सभी देशों ने अमेरिका में हुए इस प्रथम शिखर सम्मेलन में वैश्विक मुद्दों पर चर्चा की गई। इसमें जलवायु से निपटने के लिए, बुनियादी ढांचे, साइबर सुरक्षा, समुद्री सुरक्षा , मानवीय सहायता, शिक्षा और व्यापारिक मुद्दों पर विशेष चर्चा हुई। यह संबंध प्रमुख रूप से नई रणनीति को विकसित करने के लिए क्वाड के गठन को लंबित प्रस्ताव का कर दिया गया था।

यह सभी चार लोकतांत्रिक देश क्वाड समूह को एक नई दिशा प्रदान करेंगे। जिस तरह से कोरोना महामारी के दौरान भी मानवी हित को लेकर कार्य की गए थे पूरे विश्व स्तर पर उसी तरह लोकतांत्रिक देशों के संगठन का विकासशील देशों पर काफी प्रभाव देखने को मिलेगा। सबसे बड़ी चुनौती उन देशों से निपटना है। जो व्यापारिक और आर्थिक रूप से चीन पर निर्भर करते हैं।

इस समूह को ऐसे कार्य करने होंगे जिनसे उन देशों का भरोसा हो जिन देशों में इतनी शक्ति नहीं है जो कि चीन पर डिपेंड ना हो हमारे ऊपर भी डिपेंड हो। क्योंकि चीन की बढ़ती आक्रमक रणनीति को रोकना बेहद आवश्यक है। चीन इस समूह का विरोध इसीलिए करता आया है क्योंकि वह इसके पक्ष में कभी नहीं रहा। भारत भी एक उभरती हुई शक्ति के रूप में दिखाई देता है। इंडो-पेसिफिक में स्थाई रूप से शांति स्थापित हो इसके लिए जरूरी है चीन की बढ़ती आक्रामकता को रोकना।

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