शराबबंदी के बाद बिहार में नशेड़ी कुछ यूं कर रहे है नशे का इंतेज़ाम

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शराब एक ऐसी चीज़ जिसके सेवन करने से इंसान होश में नहीं रहता है अक्सर नशे में शैतानी हरकतों को अंजाम दे जाता है, और फिर वह नर पिशाच बन कर इंसानियत को हानि पहुंचाता रहता है। हमारे देश के कई राज्यों ने इसके ख़रीद व फरोख्त पर पाबंदी लगाई हुई है जिसके पालन का सख़्त क़ानून है।
चूंकि इस के सेवन ने समाजिक तानेबाने को कई तरह का नुक़सान पहुंचाया है, ख़ास तौर से महिलाओं को बहुत विक्षोब का सामना करना पड़ा है। क्योंकि मर्द शराब के नशे में अपनी पत्नी, बच्चों को प्रताड़ित करता है, मारता पीटता है जिससे के घरेलू जीवन उथल पुथल हो जाता है, और फिर यही उलझनें एक दिन तलाक़ की वजह बनती है।
हमारे राज्य बिहार ने भी इसके सेवन पर एक प्रस्ताव पास कर के इसपर पूरी तरह से पाबंदी लगा दी है, और सभी थानों को आदेश जारी किया है. कि इस पर सख़्ती से अमल किया जाए। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या इस पर अमल हुआ? क्या लोगों ने शराब का सेवन बंद कर दिया? क्या राज्य में शराब की खरीद ओ फरोख्त बंद हो गई? या फिर लोगों ने इसकी जगह कोई और जुगाड ढूंढ़ लिया? तो इसका जवाब है नहीं, ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। हां पहले कि तरह शराब की दुकानें नहीं खुली है लेकिन शराब की तस्करी आज भी धड़ल्ले से हो रही है, वरना क्या वजह है के आज दो साल से ज़्यादा का समय बीत गया और आज भी राज्य शराब मुक्त नहीं हो पाया है।
आज लोगों ने शराब की जगह कई और दूसरी चीजों का सहारा लेना शुरू कर दिया है जिस से नशा और बढ़ता है। आज लोग अपने इस नशे की लत को बरकरार रखने के लिए शराब की जगह गांजे का ख़ूब इस्तेमाल कर रहे हैं, ख़ास कर गांजा ने शराब की बहुत हद तक भरपाई की है। चूंकि गांजा कम पैसों में मिल जाता है तो इसे गरीब से गरीब आदमी भी आसानी से ख़रीद सकता है, आज इस गांजे की लत सबसे ज़्यादा युवाओं में देखने को मिल रही है, वह यही गुनगुनाते फिरते हैं कि “मुझे तो तेरी लत लग गई,लग गई।
” नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के जोनल डायरेक्टर टीएन सिंह के मुताबिक़, “गांजे की आवक और खपत दोनों बढ़ी है. गांजे के कारोबार से जुड़े लोग अब ज्यादा एक्टिव हो गए हैं, जिसकी पुष्टि हमारे जब्ती के आंकड़े करते है।” नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि साल 2016 में 496.3 किलो गांजा जब्त हुआ था जबकि साल 2017 (सिर्फ़ फ़रवरी तक) में 6884.47 किलो गांजा जब्त हो चुका था।
शराबबंदी के बाद बिहार के विभिन्न हिस्सों में 2015-16 में 2492 किलो गांजा, 17 किलो चरस, 19 किलो अफीम, 205 ग्राम हेरोइन के अलावे नशीली दवाइयों के 462 टैबलेट बरामद किये गये. वहीं, 2016-17 में 13884 किलो गांजा, 63 किलो चरस, 95 किलो अफीम और 71 किलो हेरोइन के साथ नशीली दवाओं के 20308 टैबलेट जब्त किये गये। हालांकि, यह आंकड़ा सरकारी है, लेकिन विभागीय सूत्रों की मानें, तो बरामदगी इससे कहीं ज्यादा है.
इंटर स्टेट सिंडिकेट ड्रग्स के कारोबार में सक्रिय हैं और बिहार में धड़ल्ले से ब्राउन सुगर, सांप का जहर और चरस आसाम, त्रिपुरा, ओड़िशा और अन्य राज्यों से लाया जा रहा है। इसके अलावा अगर बात की जाए तो लोग अब अपने नशे की लत को पूरा करने के लिए दवाओं का भी इस्तेमाल करने लगे हैं, जैसे के सबसे अधिक लोकप्रिय दवा है क्रोसीन को खांसी को ठीक करने के काम में आता है, नशेड़ी लोग इसका सेवन ऐसे ही करते हैं मानो वह दवा नहीं शराब पी रहे हों, तो अगर सरकार यह कहती है के हमने शराब बंदी कर के बहुत बड़ा कारनामा अंजाम दिया है तो यह ग़लत है। सरकार सिर्फ़ अपनी पीठ थपथपा रही है और पल्ला झाड़ रही है।
अगर सच में सरकार को अपने राज्य के आम जनमानस की इतनी ही फ़िक्र है तो वह हर ऐसी चीज़ों पर सख़्ती से रोक लगाए जिस से नशा होने का अनुमान हो। लोगों के बीच जा कर उनसे बातें करें, रिहैब सेंटर की स्थापना करें, लोगों में जागरुकता अभियान चलाए, जिसमें यह ऐलान हो के जो भी शराब का सेवन नहीं करेगा उसे सरकार सम्मानित करेगी, उसे पैसों से भी मदद दे, प्रोत्साहित करें, तभी इस विनाशकारी वस्तु से राज्य सुरक्षित होगा, अन्यथा इसे भी जुमला ही समझा जाएगा।

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