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भारतीय शास्त्रीय संगीत को विदेशों में, पंडित रविशंकर ने अलग पहचान दिलाई

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भारतीय शास्त्रीय संगीत को दुनिया के हर कोने में पहुंचाने और उसे एक अलग पहचान दिलाने वाले सितार वादक पंडित रविशंकर का  7 अप्रैल 2018 को  98 वां जन्मदिन था. 20वी सदी के महान कलाकारों में पंडित रविशंकर ने जो अपनी छाप छोडी है वह अनेक सदियों तक कायम रहेगी.संगीत प्रेमी जहां उनके सितारों के सुरों से आज भी आनंद की अनुभूति करते हैं, वहीं संगीत की शिक्षा देने वाले उन्हें अपना आदर्श मानते हैं.
पं रविशंकर का जन्म उत्तर प्रदेश के संस्कृति-संपन्न बनारस में 7 अप्रैल 1920 को हुआ था. उनके पिता प्रतिष्ठित बैरिस्टर थे और राजघराने में उच्च पद पर कार्यरत थे. रविशंकर जब केवल दस वर्ष के थे तभी संगीत के प्रति उनका लगाव शुरू हुआ. उनके बड़े भाई उदयशंकर एक नर्तक थे. इस नाते पं. रविशंकर ने भी शुरू में नृत्य साधना की. पंडित रविशंकर अपने बड़े भाई उदयशंकर की तरह नृत्यकला की ऊंचाइयां छूना चाहते थे. उन्होंने युवावस्था में अपने भाई के नृत्य समूह के साथ यूरोप और भारत में दौरा भी किया.अठारह साल की उम्र में पंडितजी ने नृत्य छोड़कर सितार सीखना शुरू कर दिया.
सितार के जादू से बँधे पंडित रविशंकर उस्ताद अलाउद्दीन खान से शिक्षा लेने मैहर पहुंचे और खुद को उनकी सेवा में समर्पित कर दिया. अलाउद्दीन ख़ां जैसे अनुभवी गुरु की आँखों ने पंडित रविशंकर के भीतर छिपे संगीत प्रेम को पहचान लिया था,लिहाजा उस्ताद अलाउद्दीन खान ने पंडित रविशंकर को अपना विधिवत शिष्य बना लिया. पंडित रविशंकर लंबे समय तक तबला वादक उस्ताद अल्ला रक्खा खां, किशन महाराज और सरोद वादक उस्ताद अली अकबर खां के साथ जुड़े रहे.
साल 1944 में पढ़ाई पूरी करने के बाद पंडित रविशंकर मुंबई आ गए. मुंबई में रहते हुए उन्होंने कई फिल्मों में संगीत दिया,जिनमें कुछ उल्लेखनीय नाम, रिचर्ड एटनबरो की ‘गांधी’, सत्यजीत रे की ‘अप्पू ट्रॉयोलॉजी’, चेतन आनंद की ‘नीचा नगर’, ख्वाजा अहमद अब्बास की ‘धरती के लाल’, हृषिकेश मुखर्जी की ‘अनुराधा’, गुलजार की ‘मीरा’, ‘गोदान’ आदि हैं.
पंकज राग लिखित किताब ‘धुनों की यात्रा’ के अनुसार पाकिस्तान के प्रसिद्ध शायर इकबाल की ऐतिहासिक रचना, ‘सारे जहां से अच्छा’ को संगीत देने वाले पंडित रविशंकर ही थे. सत्यजीत रे की चर्चित फिल्म ‘पाथेर पांचाली’ में भी रविशंकर के सितार की धुन है. फिल्मों में बनाए उनके गीत न सिर्फ संगीत की आत्मा से जुड़े हुए थे, बल्कि आम फिल्मी संगीत से हटकर होते थे.
उन्होंने साल 1949 से 1956 के बीच नई दिल्ली में ऑल इंडिया रेडियो के संगीत निदेशक के रूप में भी काम किया. इसके बाद 1960 के दशक में वायलिन वादक येहुदी मेनुहिन और जॉर्ज हैरीसन के साथ भारतीय शास्त्रीय संगीत की शिक्षा और प्रस्तुति देकर इसे पश्चिम में लोकप्रिय बनाया. संगीत के इन दोनों प्रतिभाओं का मिलन विश्व-संगीत में एक प्रमुख घटना मानी जाती है.
इसके अलावा पंडित रविशंकर ब्रिटिश प्रसिद्द पॉप ग्रुप बीटल्स के साथ भी जुड़े. बीटल्स के साथ उन्होंने भारतीय संगीत को पश्चिमी पॉप संगीत के साथ जोड़ा. बीटल्स के साथ उनकी यह जोड़ी संगीत के इतिहास में मील का पत्थर मानी जाती है. पंडित रविशंकर ने बांग्लादेश स्वतंत्रता संग्राम के समय प्रसिद्ध संगीतकार जॉर्ज हैरिसन के साथ मिलकर शरणार्थियों के लिए कंसर्ट किया.
इसके अलावा पंडित रविशंकर की उपलब्धियों में वर्ष 1982 के एशियाड खेल के स्वागत गीत की प्रस्तुति भी है. वहीं ज्यॉ रामपाल, यामामोतो और मिशासिता जैसे संगीतज्ञों के साथ जुड़कर पंडित रविशंकर ने भारतीय संगीत की आध्यात्मिकता को विश्व-फलक तक पहुंचाने में योगदान दिया.
सर्वश्रेष्ठ मौलिक स्वरलिपि के लिए वर्ष 1983 में उन्हें जॉर्ज फेंटन के साथ ऑस्कर से नवाजा गया.साल 1986 से 1992 तक वह राज्यसभा के मनोनीत सदस्य रहे. उन्हें वर्ष 1999 में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया. उन्हें तीन ग्रैमी अवार्ड मिल चुके हैं. उन्हें वर्ष 2013 के जर्मनी अवार्ड के लिए भी नामित किया गया था. पंडित रविशंकर साल 2000 तक लगातार प्रस्तुति देते रहे.
पंडित रविशंकर संगीत के शिखर पर पहुंचे, लेकिन पारिवारिक तौर पर टुकड़ों में बंटे रहे. पंडित रविशंकर ने दो शादियां कीं.उनकी पहली शादी गुरु अलाउद्दीन खां की बेटी अन्नपूर्णा से हुई. बाद में उनका तलाक हो गया.उनकी दूसरी शादी सुकन्या से हुई, जिनसे उनकी एक संतान है.
इसके अलावा उनका संबंध एक अमेरिकी महिला सू जोन्स से भी रहा, जिनसे उनकी एक बेटी नोरा जोन्स हैं.उन्होंने सू से शादी नहीं की. पंडितजी की दोनों बेटियां अनुष्का शंकर औऱ नोरा जोन्स, पंडितजी की संगीत विरासत को आगे बढ़ा रही हैं. पंडित रविशंकर को मैगसैसे, तीन ग्रैमी अवॉर्ड सहित देश-विदेश के न जाने कितने पुरस्कार मिले. 1992 में उन्हें भारत के सबसे बड़े सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया.
11 दिसंबर 2012 को पंडित रविशंकर का 92 वर्ष की उम्र में निधन हो गया.अमेरिका में सैन डिएगो के एक अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली. उनके निधन पर शोक जताते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उन्हे “राष्ट्रीय सम्पदा” कहा था.