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भारत के पहले परमवीर चक्र प्राप्तकर्ता का पराक्रम

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भारतीय सेना वीरता के ऊंचे कीर्तिमान कायम करने वाले अनेक शूरवीरों की जननी है.भारतीय सेना के शूरवीर अपने प्राणों की परवाह ना करते हुए देश की रक्षा में हमेशा तत्पर रहते हैं.आज हम भारतीय सेना के उस बलिदानी की बात कर रहे हैं जो सिर्फ 24 साल की उम्र में ही भारत के लिए शहीद हो गया था. यही नहीं उसे भारत का पहला परम वीर चक्र विजेता होने का गौरव प्राप्त है.
उस महान बलिदानी का नाम मेजर सोमनाथ शर्मा है.देश के प्रथम परमवीर चक्र पाने वाले योद्धा मेजर सोमनाथ शर्मा के जन्मदिन पर आज पूरा देश उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है. उनका जन्म 31 जनवरी 1923 को हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में हुआ था. 1942 में सोमनाथ शर्मा सेना में भर्ती हुए. उन्होंने दूसरे महायुद्ध में भाग लिया. सेना ने उन्हें विभिन्न मोर्चों पर युद्ध के लिए भेजा जहां उन्होंने वीरता का प्रदर्शन किया.
मेजर शर्मा ने महज 24 साल की उम्र में तीन नवंबर 1947 को ‘बड़गाम की लड़ाई’ में जिस बहादुरी से पाकिस्तानी सैनिकों और कबायली घुसपैठियों का मुकाबला किया उसे देखते हुए 26 जनवरी 1950 को उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया.आजादी के बाद से अब तक केवल 22 सैनिकों को परमवीर चक्र मिला है.

जब पाकिस्तान की जम्मू कश्मीर पर कब्जा करने की कोशिश हुई नाकाम

15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ.देश की सैकड़ों रियासतों ने भारत में विलय स्वीकार कर लिया.जम्मू-कश्मीर के राजा ने भारत और पाकिस्तान दोनों में से किसी में विलय का प्रस्ताव नहीं स्वीकार किया.पाकिस्तान चाहता था कि वह स्थानीय लोगों के विद्रोह की आड़ में जम्मू-कश्मीर पर कब्जा कर ले. 22 अक्टूबर 1947 से पाकिस्तानी सेना ने अपने सैनिकों और पाकिस्तानी कबायली लड़ाकों को कश्मीर में भेजना शुरू कर दिया. इस घुसपैठ से निपटने में जब जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन राजा हरि सिंह विफल रहे तो भारत से मदद मांगी.भारतीय सेना की पहली टुकड़ी जम्मू-कश्मीर में 27 अक्टूबर 1947 को पहुंची. फिर कबायली हमले के समय 4 कुमाऊं बटालियन के मेजर सोमनाथ शर्मा का दाहिना हाथ एक हॉकी मैच में फ्रैक्चर था. प्लास्टर चढा था लेकिन वह जिद करके मोर्चे पर गए.

मेजर शर्मा और उनकी टीम को हवाई मार्ग से 31 अक्टूबर को श्रीनगर एयरफील्ड पर उतारा गया. मेजर शर्मा के नेतृत्व में 4 कुमाऊं की ए और डी कंपनी को इलाके की पेट्रोलिंग का काम सौंपा गया ताकि वह घुसपैठियों की टोह लेकर उन्हें श्रीनगर एयरफील्ड की तरफ बढ़ने से रोक सकें. घुसपैठिए श्रीनगर एयरफील्ड पर कब्जा करके भारतीय सेना की रसद और सैन्य साजों-सामान की आपूर्ति बंद कर देना चाहते थे.

700 लड़ाके इकट्ठा हो चुके थे

तीन नवंबर को सेना की एक अन्य टुकडी इलाके का मुआयना करके श्रीनगर एयरफील्ड पर लौट चुकी थी. मेजर शर्मा की टुकड़ी को भी वापस आने का आदेश मिला लेकिन उन्होंने शाम तक वहीं रुकने का विचार किया.दूसरी तरफ सीमा पर एक पाकिस्तानी मेजर के नेतृत्व में कबायली समूह छोटे-छोटे गुटों में इकट्ठा हो रहे थे ताकि भारतीय गश्ती दलों को उनका सुराग न मिल सके. भारतीय टुकड़ी को वापस जाते देख कबायली हमलावरों ने हमला करने की ठानी. दोपहर 2 बजे तक सीमा पर पाकिस्तानी मेजर के नेतृत्व में करीब 700 लड़ाके इकट्ठा हो चुके थे. दोपहर में ढाई बजे बड़गाम गांव से मेजर सोमनाथ के पोस्ट पर गोलियां चलायी गई. मेजर शर्मा इस झांसे में नहीं आए। वह समझ गए कि गांव से चली गोलियां केवल उनका ध्यान भटकाने के लिए थीं, असल हमला दूसरी तरफ से होगा और फिर वैसा ही हुआ.

मेजर शर्मा और उनके साथियों ने 5-6 घंटे तक हमलावरों को आगे नहीं बढ़ने दिया. जब तक भारतीय सेना की मदद वहां पहुंचती तब तक मेजर शर्मा, सूबेदार प्रेम सिंह मेहता के अलावा 20 अन्य जवान शहीद हो चुके थे. मेजर शर्मा के शहीद होने के बाद भी उनकी टुकड़ी के जवान हमलावरों को रोके रहे.भारतीय जवानों ने 200 से ज्यादा हमलावरों को मार गिराया था.

जेब में गीता रखते थे सोमनाथ शर्मा

मेजर शर्मा जब एक खंदक में एक जवान की बंदूक में गोली भरने में मदद कर रहे थे तभी उन पर एक मोर्टार का गोला आकर गिरा.विस्फोट में उनका शरीर बुरी तरह क्षत-विक्षत हो चुका था. मेजर शर्मा हमेशा अपनी जेब में गीता रखते थे.जेब में पड़ी गीता और उनकी पिस्टल के खोल से उनके शव की पहचान की गयी.

क्या था मेजर शर्मा  का आखरी संदेश

उन्होंने अपने आखिरी संदेश में हेडक्वार्टर को वायरलेस पर कहा था, “दुश्मन हमसे सिर्फ 50 गज की दूरी पर है.हम भारी संख्या में आए दुश्मनों से घिरे हुए हैं. हमारे ऊपर तेजी से हमले हो रहे हैं और हम विनाशकारी आग के नीचे हैं. मैं एक इंच भी पीछे नहीं हटूंगा जब तक हमारे पास लोग हैं. मैं अंतिम दौर तक उनसे लड़ूंगा जब तक मेरे पास गोली है.”
मेजर सोमनाथ शर्मा के बाद उनके भाइयों ने भी सेना में जाकर देश की सेवा की.उनके भाई लेफ्टीनेंट जनरल सुरींद्रनाथ शर्मा और जनरल विश्वनाथ शर्मा सेना में जाने का गौरव प्राप्त कर चुके हैं. उनकी बहन मेजर कमला तिवारी सेवाओं के लिए सम्मानित हो चुकी हैं. दूरदर्शन पर मेजर सोमनाथ शर्मा पर एक धारावाहिक प्रसारित हो चुका है.मेजर सोमनाथ शर्मा के पिता अमरनाथ शर्मा भारतीय सेना के मेडिकल कॉर्प में थे. उन्होंने मेजर सोमनाथ शर्मा की जगह परमवीर चक्र ग्रहण किया था.

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