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सर्वे – बड़े शहरों में सिमट रहे हैं रिश्ते-नाते

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बड़े खानदान,पारिवारिक मज़बूती प्रेम हमारे देश की संस्कृति का हिस्सा रहे है भारतीय समाज मे परिवार के सदस्यों में मेलजोल व साथ रहने के दावें किये जाते है। परंतु अब तस्वीर कुछ बदल रही है खासकर शहरों में जहां लोग कम के बोझ के चलते अपने परिवार, रिश्तेदारों से दूर हो रहे है।
हाल ही में ब्रिटेनिया कंपनी ने एक सर्वे कराया जिसमे दिल्ली,मुम्बई,चेन्नई,कलकत्ता, हैदराबाद और बैंगलुरु के 769 लोगो को शामिल किया गया, ये सभी 15 से 40 वर्ष की उम्र के बीच के थे। इसमें से 53 प्रतिशत लोगो ने कहा कि कम के दबाव के चलते वह अपने दूर रह रहे परिवार के सदस्यों व रिश्तेदारों से नहीं मिल पा रहे। ब्रिटेनिया द्वारा कराए गए इस सर्वे का कारण काम के बोझ के कारण या अधिक व्यस्तता के कारण सामाजिक जीवन से दूर होने की वास्तविकता को दर्शाना था।
इस सर्वे में जॉइंट व न्यूक्लियर फैमिली में रह रहे लोगो की जीवन शैली की भी शामिल किया गया। इसके साथ साथ कुछ अन्य तथ्य भी सामने निकलकर आये। सर्वे के अनुसार मेट्रो शहरों में सिर्फ 4 प्रतिशत लोग ही अपने विस्तृत परिवार के साथ रहते है। 2 में से 1 व्यक्ति 3 सालों में 1 बार से ज़्यादा अपने परिवार से नहीं मिला, 2 में से 1 व्यक्ति पूरे साल में 30 दिन भी अपने माता पिता के साथ नहीं बिता पाया।
89 प्रतिशत लोगो ने स्वीकार किया कि उनका पारिवारिक जीवन व्हाट्सएप पर ही सिमट कर रह चुका है  40 प्रतिशत लोग साल में 10 दिन भी दादा -दादी के लिए नहीं निकल पाए, 76प्रतिशत ने माना कि उन्होंने पिछला त्यौहार अकेले मनाया था।
10 में से 3 लोग अपने कजिन व दूसरे रिश्तेदारों के नाम तक भूल चुके है। 90 प्रतिशत लोगो के लिए उनके दोस्त ही नया परिवार बन गए है। 15 से 22 वर्ष के बीच के 3 में से 1 युवा 10 दिन भी भी या बहन के पास नही रह पाते। 4 में से 1 युवा 3 वर्षो से दादा-दादी, चाचा -चाची,कजिन से नहीं मिले। 60 प्रतिशत युवाओं ने 3 वर्षो में परिवार के साथ  सिर्फ एक त्यौहार मनाया।
इस सर्वे में प्राइवेट कंपनियों के कर्मचारियों पर भी ध्यान दिया गया जिसमें उनका हाल अन्यों से बुरा पाया। यहां 10 में 2 लोग 3 साल में 1 बार छुट्टियों पर गए,76 प्रतिशत  लोगो को वर्क प्रेशर के कारण हॉलिडे को कैंसल करना पड़ा, 53 प्रतिशत ने स्वीकारा कि काम के दबाव के चलते वह रिश्तेदारों से नहीं मिल पाते।
ब्रिटेनिया कंपनी द्वारा कराए गए इस सर्वे ने भीड़भाड़ भरे शहरों के शोर के पीछे छिपी खामोश सच्चाई को सामने ला दिया है। अपने परिवार के प्रति उत्तरदायित्व को हम किस प्रकार निभा रहे है या धन,नाम की इच्छा हमे हमरे कर्तव्यों से कितना दूर ले आई है रोज़ की मारा मारी से ठहर कर इन सवालों के जवाब हम सबको टटोलने की ज़रूरत हम सबको है।
दोस्त और आफिस की कुर्सी में सिमटी ज़िन्दगी को माँ के आंचल और पिता के स्नेह तक ले जाने कि कोशिश एक बार फिर होनी चाहिए। जीवन की भाग दौड़ में परिवार ही वह कोना हैं जो शांति का एहसास दिलाता है यह सर्वे ये बताने के लिए काफी है कि उस कोने की ज़रूरत हम सबको है उसे खोजने का प्रयास एक बार फिर से करना चाहिये।