2 जनवरी 2019 – अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर 2 बुरी खबरे हैं. वित्त मंत्रालय की ओर से जारी बयान के मुताबिक दिसंबर का जीएसटी कलेक्शन तीन महीनों में सबसे कम है ओर मुद्रा लोन योजना के तहत साल 2017-18 के दौरान पिछले साल की अपेक्षा सरकारी बैंकों का एनपीए दोगुना हो गया है.
जीएसटी कलेक्शन की बात की जाए तो यह दिसम्बर में 94,726 करोड़ रुपये रह गया है जबकि नवंबर के 97,637 करोड़ रुपये का कलेक्शन हुआ था ओर अक्टूबर में सरकार को 1.07 लाख करोड़ रुपये का रेवेन्यू हासिल हुआ था. इस हिसाब से पिछले साल की अपेक्षा जीएसटी कलेक्शन में सिर्फ 8 प्रतिशत की वृद्धि हुई है जबकि बजट में 14 प्रतिशत से अधिक वृद्धि का अनुमान लगाया गया था.
जीएसटी कलेक्शन के गिरने से राजकोषीय घाटा बढ़ता जा रहा है CGA की रिपोर्ट में वित्तीय घाटे का एकमात्र कारण रेवेन्यू कलेक्शन बताया है चालू वित्त वर्ष की अप्रैल से नवंबर की अवधि में देश का राजकोषीय घाटा पूरे साल के बजटीय लक्ष्य का 114.8 फीसदी हो गया है.
मुद्रा योजना की बात की जाए तो साल 2015-16 में सरकारी बैंकों द्वारा मुद्रा लोन योजना के तहत 59674.28 करोड़ रुपए के लोन बांटे गए, जिनमें एनपीए की संख्या 596.72 करोड़ रुपए रही। साल 2016-17 में एनपीए का आंकड़ा बढ़कर 3,790 करोड़ के करीब हो गया। अब 2017-18 में मुद्रा लोन में एनपीए का आंकड़ा बढ़कर 7,277 करोड़ रुपए हो गया है.
अब इतना NPA मुद्रा योजना में क्यों हो रहा हैं? उसका एक बड़ा कारण है ओर वो कारण आल इंडिया बैंक ऑफिसर्स कंफेडेरेशन के महासचिव डी टी फ्रैंको ने बताया था….. उन्होंने कहा था कि ‘मौजूदा सरकार के सत्ता में आने के बाद बैंकिंग सेक्टर पर भारी दबाव है. वो जहां भी जाते हैं लोन मेले लॉन्च करना चाहते हैं. एक ऐसा कार्यक्रम हुआ जहां बैंकर्स को बुलाया गया जिससे कि लोग ऋण के बारे में समझ सकें. लोन मेले के आयोजन में जब बैंकर्स गए तो देखा कि वो पूरी तरह बीजेपी के कार्यक्रम में तब्दील था. मंच पर मौजूद नेता और बाकी सारे नेता भी बीजेपी के ही थे.