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ज़िंदगी के आखिरी दिनों में मेजर ध्यानचंद के पास इलाज के लिए पैसे भी नहीं थे
घनी अंधेरी रात थी, चांद रोशनी देने के लिए मद्धम सी रोशनी से चमक रहा था । हरी- हरी घास के मैदान में 17-18 साल का...