अफगानिस्तान में जहां महिलाएं अपने अधिकारों के लिए तालिबानियों से लड़ रही है। वहीं दूसरी तरफ भारत के असम से भी बुधवार को हैरान और परेशान करने वाला मामला सामने आया है। एक 19 साल की छात्रा को शॉर्ट्स पहनकर परीक्षा देने पर उसे परीक्षा हॉल से बाहर कर दिया।
शॉर्ट्स पहनकर परीक्षा में बैठने की इजाजत नहीं
दरअसल पूरा मामला यह है कि जुबली तुमली नाम की 19 साल की छात्रा शॉट्स पहनकर परीक्षा देने पहुंची थी। जुबली अपने पिता के साथ विश्वनाथ चरियाली से 70 किलोमीटर दूर तेजपुर में प्रवेश परीक्षा में बैठने के लिए गई थी। परीक्षा स्थल का नाम गिरजानंद चौधरी इंस्टीट्यूट फार्मास्युटिकल साइंसेज (GIPS) बताया।
लड़की ने आज तक और स्थानीय मीडिया को एक इंटरव्यू देते हुए बताया कि उसे परीक्षा केंद्र में किसी भी सिक्योरिटी गार्ड ने नहीं रोका था। लेकिन जब परीक्षा हॉल में उसके आधार कार्ड, पैन कार्ड और एडमिट कार्ड देखने की बजाए परीक्षा नियंत्रक ने बताया कि छोटे कपड़े पहनने की अनुमति नहीं है । शॉर्ट्स में परीक्षा में बैठने की अनुमति नहीं है ।
यह सुनकर लड़की रोते हुए अपने पिता के पास गई जो परीक्षा केंद्र के बाहर इंतजार कर रहे थे। लड़की ने पिता को पूरी घटना बताई। इसके बाद परिक्षक नियंत्रक ने पिता को बाजार से एक पैंट लाने के लिए कहा। पिता जी आनन-फानन में 8 किलोमीटर दूर बाजार में गए। लेकिन उन्हें बाजार से पैंट या ट्राउजर भी नहीं मिला।
अपमानजनक घटना से प्रभावित हुई तुमली
दो लड़कियों ने मुझे एक पर्दा ला कर दिया और कहा कि इसे अपने पैरों पर लपेट लो। जिसके बाद मुझे परीक्षा में बैठने की इजाजत मिली। मेरे लिए वह क्षण बहुत ही अपमानजनक था। इस घटना ने मुझे मानसिक रूप से भी आहत किया है। परीक्षा खत्म होने के बाद कुछ लड़कियों ने मुझसे सवाल पूछा कि शॉर्ट्स क्यों पहनती हो, एडमिट कार्ड में किसी भी प्रकार का ड्रेस कोड नहीं लिखा हुआ था।
पर्दा लपेट कर बैठने पर असहज महसूस हो रहा था । क्योंकि वो बार -बार नीचे खिसक रहा था और मैं उसे ऊपर खींच रही थी। लड़की ने आगे बताया कि, कुछ दिनों पहले मैं उसी शहर में नीट की परीक्षा में बैठी थी, उसी पोशाक में, लेकिन कुछ नहीं हुआ। शॉर्ट्स को लेकर AAU के पास न तो कोई नियम है और ना ही एडमिट कार्ड में ऐसा कुछ बताया गया है। तो मुझे कैसे पता चलता?
कोविड-19 प्रोटोकॉल को नजरअंदाज किया-
सबसे हैरान करने वाली बात तो यह है कि कोरोना महामारी के दौरान न हीं मेरा तापमान जांचाऔर मास्क भी नहीं लगाया हुआ था। कोविड-19 प्रोटोकॉल को नजरअंदाज करते हुए। ना ही मेरे दस्तावेजों की जांच की, सीधा मेरे कपड़ों को देखकर मुझे परीक्षा में बैठने से रोका और मुझे बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। परीक्षा में बैठना मेरे लिए बेहद जरूरी था। लेकिन परीक्षा नियंत्रक को मेरे भविष्य की बजाए मेरे कपड़ों से ज्यादा आपत्ती हुई।
लड़की का कहना है कि जब लड़के बनियान में बाहर घूम सकते हैं और कभी-कभी तो बिना बनियान के भी बाहर घूम लेते हैं। तो हमारी शॉर्ट्स पहनने पर क्या दिक्कत है? आज भी समाज में स्त्री और पुरुष को समान दृष्टि से नहीं देखा जाता है। जिसके कारण आज भी कई लड़कियां असुरक्षित महसूस करती है। समाज की घटिया मानसिकता को दर्शाता है। इस घटना के बाद जुबली को रिश्तेदारों की निंदा को भी सहना पड़ा है और कुछ लोग उनके पक्ष में उतरे हैं।
विश्वविद्यालय ने घटना की जांच के लिए 3 सदस्य समिति का गठन किया है
हालांकि इस घटना की जांच के लिए 3 सदस्य समिति गठित कर दी गई है। विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार तपन कुमार गोहैन ने कहां की एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट के डीन के नेतृत्व में समिति जांच करेगी और 10 दिन के अंदर रिपोर्ट देगी। उनका कहना है कि एएयू परीक्षार्थियों के लिए कोई ड्रेस कोड लागू नहीं किया था।
कांग्रेस प्रवक्ता बबीता शर्मा ने घटना की निंदा करते हुए कहा कि इस तरह की मानसिकता लड़कियों की सुरक्षा के लिए ख़तरनाक है।
लैंगिक अधिकार कार्यकर्ता अनुरिता हजारिका ने घटना की निंदा करते हुए कहा कि यदि पुरुष निरीक्षक ने लड़की को पैरों को परदे से ढकने के लिए विवश किया तो यह उत्पीड़न के बराबर हो सकता है। उन्होंने कहा कि इस तरह का व्यवहार पूरी तरह से अस्वीकार्य है।
प्राचार्य डॉक्टर अब्दुल बाकी अहमद-
GIPS के प्राचार्य डॉ अब्दुल बाकी अहमद ने बताया कि इस पूरी घटना की जानकारी नहीं थी। क्योंकि जिस दिन कालेज में ये घटना हुई मैं मौजूद नहीं था। उन्होंने कहा कि मुझे परीक्षा से कोई लेना देना नहीं है, हमारे कॉलेज को सिर्फ परीक्षा के लिए एक स्थान के रूप में किराए पर लिया गया था। यहां तक कि पर्यवेक्षक भी बाहर से थे। शॉर्ट्स को लेकर हमारे यहां कोई भी नियम नहीं है। लेकिन परीक्षा के दौरान यह जरूरी है कि शिष्टाचार बना रहे। माता-पिता को भी इसे बेहतर तरीके से समझना चाहिए।