जब वायसराय ने भी एक राजा के फ़ैसले को पलटने से इंकार कर दिया था

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पीछे जो बिल्डिंग है, वह हाईकोर्ट है। वो हाईकोर्ट, कोर्ट जिसका फैसला पलटने की ताकत भारत के वायसराय की नही थी। तो आप इसे सुप्रीम कोर्ट भी कह सकते हैं। बात 1932 की है। जब धनेश्वर गाँडा ने एक व्यक्ति की हत्या कर दी, और पकड़ा गया। राज्य की सेशन कोर्ट ने उसे मौत की सजा मुकर्रर की। अपील हुई हाईकोर्ट में, और पेश हुआ राजा जवाहिर सिंह की अदालत में।

यह सारंगढ रियासत थी, जो वैसे तो सीपी और बरार स्टेट का हिस्सा थी। मगर एक स्वतंत्र प्रिंसली स्टेट थी। आप सवाल उठा सकते हैं, कि उस दौर की राजधानी और हाईकोर्ट तो नागपुर में हुआ करती थी। मगर पापुलर बिलीफ और असलियत के बीच एक सनद है जो सारंगढ महल की दीवारों पर लटकी हुई है।

नक्शा देखिये। जो नीले रंग की अलग अलग शेड्स में हिस्से हैं, वो ब्रिटिश शासित भारत हैं। यहाँ पुलिस, कानून व्यवस्था, रेवेन्यू आदि प्रशासन के सारे कारोबार, अंग्रेज अफसर याने एसपी, कलेक्टर जैसे अधिकारी देखते थे। ठीक उसी तरह जैसे आज भारतवर्ष में होता है। यह ऐसे इलाके थे, जिसे ईस्ट इंडिया कम्पनी ने जीतकर अपना राज्य कायम किया था।

मगर नक्शे में दीगर रंगों से सजे इलाके, देशी राजे रजवाडों के प्रशासन में थे। यहां राजा का राज था। उसकी पुलिस, तंत्र और अपना सिस्टम था। यह इलाके स्वंतत्र देश तो नही, मगर अंग्रेजी छतरी तले स्वतंत्र राज्य थे।

ये इलाके ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ एक एग्रीमेन्ट में थे। याने वे फ़ौज नही रखेंगे, विदेशी सम्बन्ध अंग्रेजो के मुताबिक रखेंगे, प्रशासनिक सलाह के लिए अंग्रेज रेजिडेंट रखेंगे और उसके मुताबिक चलेंगे। यह सहायक सन्धि थी, जो समर्पण की सन्धि थी। इस सहायक सन्धि के बावजूद अपने शरण के रजवाड़ों को हड़पने का काम जब डलहौजी ने बन्द न किया, तो अंसतोष फैला। अवध को हड़पना ( जो उत्तर के यूनाइटेड प्रोविंस में मिला लिया गया) वो चरम बिंदु था जो 1857 के ग़दर का कारण बना।

हिंदुस्तान में ग़दर के नतीजे में 1858 में कम्पनी के राज को हटाकर ब्रिटिश रानी ने सत्ता सूत्र सीधे हाथ मे ले लिए। कम्पनी के गवर्नर जनरल की जगह, रानी के प्रतिनिधि, याने वाइसरॉय सत्ता चलाने लगे। पहला काम रजवाड़ों को आश्वस्त करना था, ताकि वे भविष्य में किसी गदर का साथ न दें।

सभी रजवाड़ों को रानी ने सनद, याने “अधिकार पत्र” दिए। याने उनके राज्य करने के अधिकार को स्वीकार कर लिया। अधिकार पत्र मे रजवाड़ों के परंपरागत अनुवांशिक अधिकार, याने प्रशासनिक, न्यायिक, राजस्व सम्बन्धी अधिकारों को मान्य किया। ये अधिकार रानी के द्वारा सेंक्शन थे। वाइसरॉय इसमे दखल नही दे सकते थे। उसमे कोई परिवर्तन ब्रिटेन में हर मेजेस्टि की गवरनेंट ही कर सकती थी। राजे रजवाड़े अब आश्वस्त हुए। तो रजवाड़ों के इलाके के लिए हुई ट्रीटी में दो पक्ष – लोकल किंग और ब्रिटिश क्वीन थे। इसमें हर राजा के अधिकार डिफाइंड थे, क्लियर थे। सारंगढ राजा के पास न्यायिक अधिकार भी थे। सेशन कोर्ट का फैसला, सारंगढ राजा जवाहिर सिंह की हाईकोर्ट में आया, तो उन्होंने धनेश्वर गांडा की मौत की सजा बरकरार रखी।

इस पर आगे की अपील वाइसरॉय के पास हुई। भारत सरकार की वाइसरॉय इन काउंसिल ने कहा- राजा सारंगढ के न्यायिक अधिकार ब्रिटिश क्वीन के द्वारा सेंक्शन किये गए हैं। वाइसरॉय केवल प्रतिनिधि मात्र है, हमें उस सनद के दायरे में घुसकर, फैसले को पलटने का कोई अधिकार नही है। इस तरह भारत के प्रशासक ने अपने अपने पदीय अधिकार को राजा के अधिकार से छोटा माना। हत्यारे को फांसी दी गयी।

1947 में ब्रिटिश क्वीन ने अपने प्रशासन के इलाकों को दो गवर्नमेंट्स को हस्तांतरित किया। रजवाड़ों को अपनी ट्रीटी से आजाद कर दिया। कह दिया कि अब आप जिससे मिलना चाहें, मिल जाएं। आगे का किस्सा आपको पता है। सरदार पटेल ने घूम घूमकर साम (प्रेम) दाम (प्रिवीपर्स) दंड ( सैनिक एक्शन) से इन रियासतों से एक्सेशन साइन कराया।

कश्मीर का आधा हिस्सा पाकिस्तान में स्वेच्छा से मिल चुका था ( गिलगित बाल्टिस्तान) और बाकी के लिए हमला किया जा चुका था। जब कश्मीर के राजा ने हमसे एक्सेशन किया, तो भारत सरकार ने उसे बचाया, पाकिस्तानियों के जीते 16 में से 10 जिले वापस जीते और हिंदुस्तान का हिस्सा बनाया। इस एक्सेशन के पहले कोई आक्रमण एक स्वतंत्र देश पर आक्रमण होता।

आप समझ यह बनाइये कि भारत के 4000 साल के ज्ञात इतिहास में जितने इलाके थे, उसे अखण्ड भारत और अपना नैचुरल राइट समझना, सिवाय खामख्याली के कुछ नही। आज का भारत 15 अगस्त 1947 की पोलिटीकल रियलिटीज पर बना है। इससे हटकर कुछ बनाने का विकल्प न तब था.. और न आज है !!! फिलहाल तो अखण्ड भारत बनाने का तसव्वुर तो बहुत बाद का है।।पहले ये तय हो कि आज के भारत को कैसे बचाएं कैसे

सारंगढ का हाइकोर्ट और गिरिविलास पैलेस की दीवारों दीवार पर टँगा वो दस्तावेज, भारत के निर्माण की प्रक्रिया के ऐसे दौर को झाड़ पोंछकर सामने ले आता है, जिसकी समझ बना ली जाए तो व्हॉट्सप के आधे झूठ कट जाएंगे। (मैं इस जानकारी, दस्तावेजों और फोटोग्राफ्स के लिए Parivesh Mishra जी का आभारी हूँ )