प्रधानमंत्री पद को ठुकराने वाला राष्ट्रपति जब भरी संसद में रो पड़ा।

Share

भारत की आज़ादी के बाद देश को कई ऐसे कद्दावर नेता मिले जो राजनीतिक पद संभालने के साथ साथ समाज मे एक प्रबल व्यक्तित्व बनकर उभरे हैं। हम बात कर रहे है देश के ऐसे नेता की जिसने अपनी बढ़ती उम्र का हवाला देते हुए प्रधानमंत्री पद को ठुकरा दिया था।वहीं भारत की राजनीति में राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति और राज्यपाल के पदों को संभाला था। ये व्यक्ति डॉ शंकर दयाल शर्मा है,जो भारत के 9वें राष्ट्रपति रहे हैं।उनकी 103वीं पुण्यतिथि पर पेश हैं शंकरदयाल शर्मा से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें-

भोपाल में हुआ था जन्म

16 अगस्त 1918 को भोपाल में जन्मे शंकर दयाल शर्मा  एक सुलझे हुए व्यक्ति थे। बचपन से ही पढ़ाई में रुचि थी। जिसके चलते मेधावी छात्र रहे।उन्होंने देश और विदेश की यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की थी।लॉ की पढ़ाई के दौरान ही राजनीति में प्रवेश किया और एक सफल राजनीतिक जीवन जिया। उनका जीवन एक मध्यमवर्गीय ब्राह्मण परिवार में हुआ था जिसके चलते जीवन और विचार दोनों ही सादगी भरे थे।

लिंकन्स और हार्वर्ड से की थी पढ़ाई

शंकर दयाल शर्मा ने पंजाब यूनिवर्सिटी, लखनऊ यूनिवर्सिटी और आगरा कॉलेज से अपनी पढ़ाई पूरी की थी। हिंदी ,अंग्रेज़ी और  संस्कृत में एम.ए किया था।वहीं लखनऊ यूनिवर्सिटी से एलएलएम में पहला स्थान प्राप्त किया था। जहाँ उन्हें समाज सेवा का चक्रवर्ती गोल्ड मेडल दिया गया। उनके नाम पर स्नातकोत्तर में अकेडमी और समाज सेवा करने वाले छात्र को पुरुस्कृत किया जाता है।

विदेश में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी और फिट्जविलियम कॉलेज से पीएचडी की उपाधि हासिल की।फिट्ज़विलियम कॉलेज में वो मानद फेलो रहे वहीं कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में उन्हें मानद डॉक्टर ऑफ लॉ की डिग्री देकर सम्मानित किया गया। इसके अतिरिक्त लंदन की लिंकन्स इन और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से भी पढ़ाई की थी।

भोपाल के पहले मुख्यमंत्री बनने का सफर

1940 में कानून की प्रेक्टिस करने के साथ ही उन्होंने भारत की आज़ादी की लड़ाई में भी भाग लेना शुरू किया। जिसके बाद उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सदस्यता ली और राजनीति में प्रवेश किया। 1952 में भोपाल के पहले मुख्यमंत्री बने,लेकिन इस उपाधी तक पहुंचना उनके लिए बड़ा कठिन था।

दरअसल, भोपाल के नवाब आज़ादी के लिए भोपाल को एक अलग राजवाड़े के तौर पर ही रखना चाहते थे।शंकरदयाल शर्मा ने इसका विरोध किया जिसके बाद नवाब के कहने पर 1948 में उन्हें जेल में डाल दिया गया।जनता का समर्थन प्राप्त होने के कारण नवाब को (1949) उन्हें छोड़ना पड़ा और इस तरह आज़ाद भारत के भोपाल के 1952 में वो पहले मुख्यमंत्री बने।

इन राज्यों के रहे थे राज्यपाल

न्यूज़ 18 लिखता है कि 1956 तक भोपाल के मुख्यमंत्री रहने के बाद 1956 से 71 तक मध्यप्रदेश विधानसभा के सदस्य रहे और कई पदों पर मुख्यमंत्री भी रहे। 1984 में उन्हें आंध्र प्रदेश का राज्यपाल बना दिया गया।  इस दौरान उन्हें दिल्ली में हुए सिख दंगो में बेटी और दामाद की मृत्यु की खबर मिली। इसके बाद 1985 में पंजाब के राज्यपाल रहे। वहीं 1986 में महाराष्ट्र के राज्यपाल बने। ये इनका अंतिम राज्यपाल पद था। 1971 में भोपाल से लोकसभा सदस्य रहे। वहीं 1972 में उन्हें कोंग्रेस का अध्यक्ष चुना गया। 1974 कि सरकार में वो तीन साल तक संचार मंत्री रहे।

जब भरी संसद में रो पड़े थे शंकर दयाल शर्मा

1987 में उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति बने शंकर दयाल शर्मा 1992 में भारत का 9वे राष्ट्रपति बने थे।राष्ट्रपति चुनाव उन्होंने जार्ज स्वेल को हरा के जीता था इसमें उन्हें 66% मत प्राप्त हुए. अपने अन्तिम कार्य वर्ष में उन्होंने तीन प्रधानमंत्रियों को शपथ दिलाई थी। जागरण के मुताबिक शंकर दयाल शर्मा बेहद गंभीर व्यक्तित्व थे।वहीं अपने काम के प्रति संजीदा थे। कानूनों का सख्ती से पालन करते थे।

कहा जाता है कि एक बार राज्यसभा में वो इसलिए रो पड़े थे क्योंकि किसी राजनीतिक मुद्दे पर सदस्यों ने संसद को जाम कर दिया था।

प्रधानमंत्री के पद को जब ठुकरा दिया 

1991 में राजीव गांधी की मौत के बाद भारी बहुमत से जीती कोंग्रेस में इस बाबत मंथन चल रहा था कि आखिर अब प्रधानमंत्री कौन बनेगा ? सोनिया गांधी ने इंदिरा के वफादार शंकर दयाल शर्मा का नाम प्रस्तावित किया और सभी ने इस पर सहमति बनाई।

अरुणा आसिफ़ ये प्रस्ताव लेकर शर्मा के पास गई और कहा कि ‘पार्टी चाहती है आप की 10वें प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लें।’ लेकिन अपनी उम्र का हवाला देते हुए डॉ शर्मा ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। बाद में पी वी नरसिम्हन राव प्रधानमंत्री बने,  और 1992 में डॉ शर्मा  9वें राष्ट्रपति बने।