जब पूर्ण बहुमत से हुई थी इंदिरा गांधी की सत्ता में वापसी

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7 जनवरी के दिन भारतीय राजनीति के इतिहास में एक अलग महत्ता रखता है। 7 जनवरी 1980 के दिन 7वी लोकसभा चुनाव के परिणाम घोषित हुए थे और इंदिरा गांधी ने पूर्ण बहुमत से फिर एक बार सत्ता में वापसी की थी। इससे पहले 1977 के चुनावों में कोंग्रेस और इंदिरा गांधी ने करारी शिकस्त का सामना किया था। जिसका कारण 1975 का आपातकाल था। 18 महीनों के आपातकाल ने आम जनता में इंदिरा के लिए रोष और अविश्वास पैदा किया था यही कारण था कि, 1977 के चुनावों में कोंग्रेस को मुहँ की खानी पड़ी।


“इंदिरा लाओ, देश बचाओ” के नारे ने डुबोई थी कोंग्रेस की नाव :

1971 के चुनावों से पहले पाकिस्तान के साथ युद्ध में जीत और पूर्वी पाकिस्तान को बांग्लादेश बनाने के बाद इंदिरा को नारी शक्ति के रूप में पूरे देश ने सराहा था। भारी बहुमत से चुनावों में जीत दर्ज की गई थी। लेकिन 25 जून 1975 को अचानक आधी रात लगे आपातकाल ने देश को अस्त व्यस्त कर डाला था।

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ऊपर से ज़बरदस्ती नसबंदी से लोग अलग ही खफा था। इसलिए 1977 के चुनावों में जनता ने कोंग्रेस को सिरे से नकार गंठबंधन की सरकार चुनने का फैसला किया। इस बीच पूरे देश में विपक्ष की और से “इंदिरा हटाओ, देश बचाओ” का नारा लगाया गया था। जो कोंग्रेस की नैय्या डुबो गया।


जनता पार्टी की सरकार नाकाम साबित हुई :

1977 में गठबंधन की सरकार का मुख्य चेहरा जनता पार्टी थी। सरकार गठबंधन की थी और तीन बड़े नेता अलग अलग दल के। सरकार बने कुछ समय ही बीता था कि प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई, गृह मंत्री चौधरी चरण सिंह और रक्षा मंत्री बाबू जगजीवन राम के मतभेद खुल कर सामने आने लगे। इससे ज़ाहिर ये भी हुआ कि सभी दल 1977 में जय प्रकाश नारायण के “इंदिरा हटाओ, देश बचाओ” के नारे पर आगे बढ़ रहे थे।

उनके पास देश के लिए न कोई विज़न था और न ही कोई एक्शन प्लान। गठबंधन सरकार तो बनी लेकिन देश की अर्थव्यवस्था की हालत बत्तर हो गयी। मुद्रास्फीति दर बढ़ रही थी, हड़तालें शुरू हो गयी, वेतन न मिलने पर कारीगरों का चक्का जाम होने लगा था। जनता को समझ आ रहा था कि जनता पार्टी के नेता सिर्फ सत्ता संघर्ष में दिलचस्पी रखते हैं देश चलाने में नहीं।

“काम के आधार पर सरकार को चुनिए”

7वी लोकसभा चुनाव का वक्त आ गया था। देश में चल रही लड़ाई और राजनीतिक अस्थिरता को देखते हुए कोंग्रेस को समझ आ गया था की अब बाज़ी मारी जा सकती है। और ऐसा हुआ भी, कोंग्रेस ने देश भर में “काम करने वाली सरकार को चुनिए” का नारा दिया। जनता भी बीते 3 साल में आपातकाल को भूल इंदिरा के प्रति सकारात्मक हो चले थे।

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कोंग्रेस के दिये नारे ने भी जनता पर खूब असर डाला। जनता ने भी सत्ता के लिए संघर्ष करने वाली पार्टी को छोड़ काम करने वाली पार्टी को चुनना बेहतर समझा। जनवरी 1980 में चुनाव हुए और 7 जनवरी 1980 को परिणाम घोषित हुए। इन चुनावों में कोंग्रेस (आई) को 353 सीट मिली, ये पूर्ण बहुमत की सरकार थी। वहीं दूसरी और जनता पार्टी सेक्युलर को 41, माकपा को 37 और बचे हुए गठबंधन को 31 सीटें मिली थी।


जनता ने फिर एक बार इंदिरा पर विश्वास जताया था और पूर्ण बहुमत से इंदिरा ने सत्ता में वापसी की थी। चार साल के सफल कार्यकाल के बाद 1984 में “ऑपरेशन ब्लू स्टार” से ख़फ़ा इंदिरा के कुछ सुरक्षा कर्मियों ने गोली मार कर इंदिरा गांधी की हत्या कर दी थी।