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बलात्कार की धारा IPC 375 क्या है ?

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सरकार ने कहा है कि, हाथरस गैंगरेप मामले में उसके घर वालों वादी और अन्य का नार्को टेस्ट कराया जाएगा। नार्को टेस्ट किसी व्यक्ति के झूठ को पकड़ने के लिये कराया जाता है पर वह उस झूठ को पकड़ने के लिये जिसे जानबूझकर कर छुपाया जा रहा हो। यह टेस्ट उन मिथ्यावाचनो के लिये नहीं जो खुले आम बोले जाते हैं और जिनके बारे में यह आम धारणा बन जाती है कि यह तो झूठ ही बोला जा रहा है।

हाथरस गैंगरेप में पीड़िता की मेडिकल रिपोर्ट, उसे लगी चोटें, चोटों के काऱण ही हुयी मृत्यु से यह तो प्रमाणित है ही कि, उसके साथ एक हिंसक घटना घटी है। अब सवाल उठता है बलात्कार हुआ है या नहीं ? एडीजी लॉ एंड ऑर्डर का कहना है कि सैम्पल में वीर्य नहीं मिला है तो बलात्कार की पुष्टि नहीं की जा सकती है। एडीजी धारा 375 आइपीसी जिसमे बलात्कार की परिभाषा दी गयी है में 2013 के पहले की धारा का पाठ कर रहे हैं। 2013 मे इस धारा में संशोधन हो गया है और अब वीर्य मिले या न मिले, योनि में प्रवेशन ( पेनिट्रेशन )  किया गया हो या न किया गया हो, इसे बलात्कार का अपराध माना जायेगा और यह अपराध धारा 376 आइपीसी में दिए गए दंडो से दण्डित किया जाएगा।पीड़िता की इस मेडिकल जांच की रिपोर्ट से अपराध शिथिल नहीं हो जाता है। अब सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न है कि, पीड़िता ने पुलिस को क्या बताया है। पीड़िता ने अपने बयान में बलात्कार किये जाने की बात कही है, और इसका वीडियो भी सोशल मीडिया पर है। वीडियो से अधिक महत्वपूर्ण है वह दस्तावेज जिस पर पीड़िता का बयान दर्ज है। उसमें उसने क्या कहा है ? अब जो भी उस बयान में कहा गया होगा वह अब स्वतः पीड़िता की मृत्यु के बाद मृत्युपूर्व बयान में बदल जायेगा जो, साक्ष्य अधिनियम के अंतर्गत एक प्रबल साक्ष्य माना जाता है। मुकदमे का यही आधार बनेगा।अब रहा सवाल पीडिता के घर वालों के नार्को टेस्ट का । हो सकता है एसआइटी को कोई ऐसी जानकारी मिली हो कि उसके घर वाले कुछ छिपा रहे हों या झूठ बोल रहे हों तो उसका पता लगाने के लिये नार्को टेस्ट कराने की बात सोची गयी हो। लेकिन यह बात अदालत में एसआईटी को नार्को टेस्ट कराने से पहले  अनुमति के लिये बतानी भी होगी। नार्को टेस्ट भी जबर्दस्ती नहीं कराया जा सकता है इसकी सहमति ली जाती है। लेकिन एसआईटी को यह बताना पड़ेगा कि जिसका नार्को टेस्ट कराया जाना है वह छुपा क्या रहा है और कौन सा सच एसआईटी जानना चाहती है।

अमूमन वादी पक्ष का नार्को टेस्ट नहीं होता है क्योंकि वह पीड़ित भी होता है। इस केस में यह अपवादस्वरूप निर्णय क्यों लिया गया है, यह मैं बता नहीं पाऊंगा। वादी और उसका पक्ष तो निरन्तर पूछताछ और बयान के लिये उपलब्ध रहता है। फिर वह छुपा क्या रहा है ? यह  हो सकता है कि, वह अपने आरोप बढ़ा चढ़ा कर लगा रहा हो, और कभी कभी ऐसा होता भी है कि आरोप बढ़ा चढ़ा कर लगाए जाते हैं । इसीलिए तो विवेचना के तमाम कानूनी प्राविधान बने हैं कि उसके आरोपो की सत्यता की परख की युक्तियुक्त तरह से कर ली जाय।  सच, अगर पता भी हो कि वह सच है तो, इसे सक्षम न्यायालय में साबित करना पड़ता है। अक्सर सच, आरोपों और बचाव के युद्ध मे कही दबा रहता है उसे निकालना और सामने लाना पड़ता है। डिगिंग द ट्रुथ का मुहावरा इसीलिए बना है। विवेचना की सफलता और कुशलता, उसी दबे ढंके सत्य को ढूंढ कर लाने में है।

अब एक नज़र बलात्कार कानून के इतिहास और संशोधनों पर पढ़ लें। भारत में बलात्कार (Rape) को स्पष्ट तौर पर भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code-IPC) में परिभाषित अपराध की श्रेणी में वर्ष 1960 में शामिल किया गया। उससे पहले इससे संबंधित क़ानून पूरे देश में अलग-अलग तथा विवादास्पद थे।

  • वर्ष 1833 के चार्टर एक्ट (Charter Act, 1833) के लागू होने के बाद भारतीय कानूनों के संहिताबद्ध करने का कार्य प्रारंभ किया गया। इसके लिये ब्रिटिश संसद ने लॉर्ड मैकॉले की अध्यक्षता में पहले विधि आयोग का गठन किया। आयोग द्वारा आपराधिक कानूनों को दो भागों में संहिताबद्ध करने का निर्णय लिया गया। इसका पहला भाग भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code-IPC) तथा दूसरा भाग दंड प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure-CrPC) बना।

आइपीसी के अंतर्गत अपराध से संबंधित नियमों को परिभाषित तथा संकलित किया गया। इसे अक्तूबर 1860 में अधिनियमित किया गया लेकिन 1 जनवरी, 1862 में लागू किया गया। जबकि सीआरपीसी ( CrPC )आपराधिक न्यायालयों की स्थापना तथा किसी अपराध के परीक्षण एवं मुकदमे की प्रक्रिया के बारे में है।

आइपीसी की धारा 375 में बलात्कार को परिभाषित किया गया तथा इसे एक दंडनीय अपराध बनाया गया। इसी पेनल कोड की धारा 376 के अंतर्गत बलात्कार जैसे अपराध के लिये न्यूनतम सात वर्ष तथा अधिकतम आजीवन कारावास की सज़ा का प्रावधान किया गया।

कानून में,  बलात्कार की परिभाषा में निम्नलिखित बातें शामिल की गई हैं :

  • किसी पुरुष द्वारा किसी महिला की इच्छा (Will) या सहमति (Consent) के विरुद्ध किया गया शारीरिक संबंध।
  • जब हत्या या चोट पहुँचाने का भय दिखाकर दबाव में संभोग के लिये किसी महिला की सहमति हासिल की गई हो।
  • 18 वर्ष से कम उम्र की किसी महिला के साथ उसकी सहमति या बिना सहमति के किया गया संभोग।

इसमें अपवाद के तौर पर किसी पुरुष द्वारा उसकी पत्नी के साथ किये गये संभोग, जिसकी उम्र 15 वर्ष से कम न हो, को बलात्कार की श्रेणी में नहीं शामिल किया जाता है।

वर्ष 1972 का मामला:

वर्ष 1860 के लगभग 100 वर्षों बाद तक बलात्कार तथा यौन हिंसा के कानूनों में कोई बदलाव नहीं हुए लेकिन 26 मार्च, 1972 को महाराष्ट्र के देसाईगंज पुलिस स्टेशन में मथुरा नामक एक आदिवासी महिला के साथ पुलिस कस्टडी में हुए बलात्कार ने इन नियमों पर खासा असर डाला।

सेशन कोर्ट ने अपने फैसले में यह स्वीकार करते हुए आरोपी पुलिसकर्मियों को बरी कर दिया कि उस महिला के साथ पुलिस स्टेशन में संभोग हुआ था किंतु बलात्कार होने के कोई प्रमाण नहीं मिले थे और वह महिला यौन संबंधों की आदी थी।

हालाँकि सेशन कोर्ट के इस फैसले के विपरीत उच्च न्यायालय ने आरोपियों के बरी होने के निर्णय को वापस ले लिया। इसके बाद सर्वोच्च न्यायालय ने फिर उच्च न्यायालय के फैसले को बदलते हुए यह कहा कि इस मामले में बलात्कार के कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं उपलब्ध है।

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि महिला के शरीर पर कोई घाव या चोट के निशान मौजूद नहीं है जिसका अर्थ है कि तथाकथित संबंध उसकी मर्ज़ी से स्थापित किये गए थे।

आपराधिक क़ानून में संशोधन

मथुरा मामले के बाद देश में बलात्कार से संबंधित कानूनों में तत्काल बदलाव  की मांग होने लगी। परिणामस्वरूप आपराधिक कानून (दूसरा संशोधन) अधिनियम, 1983 [Criminal Law (Second Amendment) Act of 1983] पारित किया गया।

इसके अलावा IPC में धारा 228A जोड़ी गई जिसमें कहा गया कि बलात्कार जैसे कुछ अपराधों में पीड़ित की पहचान गुप्त रखी जाए तथा ऐसा न करने पर दंड का प्रावधान किया जाए।

दिसंबर 2012 में दिल्ली में हुए बलात्कार तथा हत्या के मामले के बाद देश में आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2013 पारित किया गया जिसने बलात्कार की परिभाषा को और अधिक व्यापक बनाया तथा इसके अधीन दंड के प्रावधानों को कठोर किया।

इस अधिनियम में जस्टिस जे. एस. वर्मा समिति के सुझावों को शामिल किया गया जिसे देश में आपराधिक कानूनों में सुधार तथा समीक्षा के लिये बनाया गया था। इस अधिनियम ने यौन हिंसा के मामलों में कारावास की अवधि को बढ़ाया तथा उन मामलों में मृत्युदंड का भी प्रावधान किया जिसमें पीड़ित की मौत हो या उसकी अवस्था मृतप्राय हो जाए।

इसके तहत कुछ नए प्रावधान भी शामिल किये गए जिसमें

  • आपराधिक इरादे से बलपूर्वक किसी महिला के कपड़े उतारना
  • यौन संकेत देना तथा पीछा करना आदि शामिल हैं।
  • सामूहिक बलात्कार के मामले में सज़ा को 10 वर्ष से बढ़ाकर 20 वर्ष या आजीवन कारावास कर दिया गया।
  • अवांछनीय शारीरिक स्पर्श, शब्द या संकेत तथा यौन अनुग्रह (Sexual Favour) करने की मांग करना आदि को भी यौन अपराध में शामिल किया गया।
  • लड़की का पीछा करना करने पर तीन वर्ष की सज़ा ।
  • एसिड अटैक के मामले में सज़ा को दस वर्ष से बढ़ाकर आजीवन कारावास में बदल दिया गया।

नाबालिगों के मामले में कानून

  • जनवरी 2018 में जम्मू-कश्मीर के कठुआ में एक आठ वर्षीय बच्ची के साथ हुए अपहरण, सामूहिक बलात्कार तथा हत्या के मामले के बाद पूरे देश में इसका विरोध हुआ तथा आरोपियों के खिलाफ सख्त कार्यवाही की मांग की गई।

इसके बाद आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2018 [Criminal Law (Amendment) Act, 2018] पारित किया गया जिसमें पहली बार यह प्रावधान किया गया कि 12 वर्ष से कम आयु की किसी बच्ची के साथ बलात्कार के मामले में न्यूनतम 20 वर्ष के कारावास या मृत्युदंड की सज़ा का प्रावधान होगा।

इसके अनुसार आइपीसी में एक नया प्रावधान भी जोड़ा गया जिसके द्वारा 16 वर्ष से कम आयु की किसी लड़की के साथ हुए बलात्कार के लिये न्यूनतम 20 वर्ष का कारावास तथा अधिकतम उम्र कैद की सज़ा हो सकती है।

IPC, 1860 के तहत बलात्कार के मामले में न्यूनतम सज़ा के प्रावधान को सात वर्ष से बढ़ाकर अब 10 वर्ष कर दिया गया है।

मैं 2013 में धारा 375 का जो संशोधन हुआ है उसे अंग्रेजी में नीचे दे दे रहा हूँ, आप उसे भी पढ़ सकते हैं।

SECTION 375

Section 375 of the Indian Penal Code defines rape as “sexual intercourse with a woman against her will, without her consent, by coercion, misrepresentation or fraud or at a time when she has been intoxicated or duped, or is of unsound mental health and in any case if she is under 18 years of age.”

It’s rape if it falls under following categories:

  1. Against her will.
  2. Without her consent.
  3. With her consent, when her consent has been obtained by putting her or any person in whom she is interested in fear of death or of hurt.
  4. With her consent, when the man knows that he is not her husband, and that her consent is given because she believes that he is another man to whom she is or believes herself to be lawfully married.
  5. With her consent, when, at the time of giving such a consent, by reason of unsoundness of mind or intoxication or the administration by him personally or through another of any stupefying or unwholesome substance, she is unable to understand the nature and consequences of that to which she gives consent.
  6. With or without her consent, when she is under sixteen years of age. Explanation: Penetration is sufficient to constitute the sexual intercourse necessary to the offence of rape.

Consent under Section 375

Consent is defined as clear, voluntary communication that the woman gives for a certain sexual act. Marital rape is an exception to giving consent as it is not a crime under the Indian Penal Code, as long as the woman is above 18 years of age.

Exceptions to Section 375

Sexual intercourse by a man with his own wife who is above the age of 18, is not sexual assault.

यह मूल धारा 375 आइपीसी थी। अब 2013 में जो संशोधन किया गया है उसे पढ़े,

Amendment to Sec 375 IPC

The Criminal Law (Amendment) Act, 2013 or the Nirbhaya Act, was passed in Parliament to amend Section 375. To remove ambiguity in the earlier law and provide for strict punishment in cases of rarest cases of sexual violence, the legislation was expanded to define acts like penetration of penis into vagina, urethra, anus or mouth, or any object or any part of body to any extent into the aforesaid woman body parts (or making another person do so), as constituting an offence of sexual assault. Applying mouth or touching private parts were also classified as offences of sexual assault.

Punishment

Except in certain aggravated situations, the punishment will be imprisonment of not less than seven years but it may extend to imprisonment for life, and shall also be liable to fine. In aggravated situations, punishment will be rigorous imprisonment for a term which shall not be less than 10 years but which may extend to imprisonment for life, and shall also be liable to fine.

( विजय शंकर सिंह )