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नज़रिया – यूनिवर्सिटी छात्रों से मारपीट के क्या मायने हैं?

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आप सब जानते है कि NRC CAB के नाम से भारत को तोड़ने का काम किया जा रहा है। जब एक तरफ देश ‘भुखमरी,  बेरोजगारी, आर्थिक मंदी से गुज़र रहा है, जब देश मे हो रहे बलात्कारों से हैवान भी कांप रहे हैं। जब हर तरफ त्राहि त्राहि मची है, उस वक़्त सरकार ने आखिर NRC CAB का शुगुफ़ा क्यों छोड़ा है, छोड़ा तो छोड़ा साथ ही देश मे चल रहे विरोध प्रदर्शन पर कोई प्रतिक्रिया नही दे रही है। नही दे रही न दे लेकिन साथ ही देश के हर इंस्टीट्यूट को टारगेट किया जा रहा है।
कही NRC और CAB के चक्कर में एक तीर से दो शिकार तो नही हो रहे है, कही ये सारे यूनिवर्सिटी बन्द करके जिओ यूनिवर्सिटी खोलने का प्रोग्राम तो नही चल रहा है। या फिर इन सबको ही कौड़ी के भाव मे जिओ के हाथ बेच देना है, आज से पहले क्या आपने ऐसा सुना था। कि किसी यूनिवर्सिटी में बाथरूम के अंदर तक पुलिस घुस जाए और छात्र छात्राओं की पीट पीट कर लहू लहान कर दे।
हमने अपनी ज़िंदगी मे पहली बार इतनी क्रूरता देखी देख कर रूह कांप गयी, छात्राओं की चीखों ने मानो हमारे कान का पर्दा फाड़ दिया हो। मस्जिद में घुस कर इमाम को मारना हो या वहां पर लगे गार्ड को पीटना हो सब का सब हमारे लिए जैसे अचंभित कर देने वाला दृश्य था।
ये सिर्फ जामिया की बात नही है, कभी JNU कभी AMU कभी JAMIA कभी असम के यूनिवर्सिटी तो कभी हैदराबाद, कभी लखनऊ कभी केरल तो कभी बंगाल, मानो यूनिवर्सिटी के खिलाफ सरकार ने सर्जिकल स्ट्राइक करने की ठान ली हो। देखते ही देखते सच सामने आने लगा पुलिस की दरिंदगी सामने आनी शुरू हुवी तो नेट पर प्रतिबंध लगा दिया गया ताकि एक दूसरे तक खबर न पहुच पाए।
आपको जानकर हैरानी होगी कि छात्राओं पर अत्यचार के वीडियोज़ देखने पर पता चला कि उसमें सिर्फ पुलिस ही नहीं थी। कुछ जीन्स टीशर्ट और मुँह में रुमाल बांध कर बाइक का हेलमेट लगा कर छात्राओं पर टूट पड़े थे। जिनके साथ पुलिस बल उनके सहयोग में था। घायल की अभी गिनती नही हो पाई है, क्योंकि पुलिस ने ICU से भी कुछ छात्रों को निकाल कर बंधक बना लिया है।
सच तो ये है सवाल बहुत सारे है, लेकिन जवाब देने वाला कोई नही, मीडिया अपनी बिकी हुवी छवि को बरकरार रखे हुवे है  और उल्टा छात्रों पर ही सवाल खड़े कर रही है। समझने की बात ये भी है कि NRC और CAB पूरे देश का मसला है तो टारगेट सिर्फ यूनिवर्सिटीस ही क्यों हो रही है।

कही एक तीर से दो शिकार तो नही है ?

फिलहाल छात्रों से एक ही बात कहूंगा जो भी करना बहुत ही तरीके से करना बहुत समझदारी से करना क्योंकि सरकार सिर्फ और सिर्फ तुम्हे दबा ले उसके बाद देश तो खुद पहले से दबा पड़ा है, इस लिए होशियार रहना।
Amu की एक छात्रा से  वार्ता करने पर पता चला की रात के अंधेरे में लाइट काट कर नेट बन्द करके हमारे हास्टल की अंदर तक पुलिस घुस आयी और लाठियां बरसाने लगी, उसी तरह जैसे JAMIA में लाइब्रेरी से छात्रों को उस तरह बंदी बनाया गया। जिस तरह 22 मैं 1987 में हाशिमपुरा में मुस्लिमो को बंदी बनाकर नहर नहर किनारे उनकी हत्या कर दी गयी थी,  सारे छात्र जो पढ़ाई कर रहे थे। लाइब्रेरी में वो सब मानो चौक गए थे, कि हमने किया क्या है और हमारे साथ ये पुलिस करने क्या वाली है।
लेकिन मज़े की बात तो ये है, कि उसी राजधानी दिल्ली मे जहां छात्रों को दौड़ा दौड़ा का नरसंहार किया जा रहा था। वही पर देश के प्रधानमंत्री, गृहमंत्री मौजूद थे। लेकिन उफ्फ न किया क्योंकि ये सब उनके इशारे पर ही तो हो रहा था। वरना एक क्रिकेटर के अंगूठे में चोट पर दुख जताने वाले प्रधानमंत्री छात्रों के साथ हो रही क्रूरता पर टिप्पणी क्यों न किये..?
खैर हमने कहा न सवाल बहुत है जवाब देने वाला कोई नही है क्योंकि देश लोकतांत्रिक सिर्फ कहने के लिए बचा है लेकिन अब यहां तानाशाही चलती है, पूरे भारत मे भय का माहौल है।