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कश्मीरी पंडितो के नाम पर क्या सिर्फ़ राजनीति होती है

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1990 के दशक में जब कश्मीर में मिलिटेंसी का उभार हुआ तो कश्मीरी पंडितों को मारा गया। उन्हें जबरदस्ती कश्मीर छोड़ने को मजबूर किया गया। सरकार के आंकड़ों के मुताबिक करीब 66 हजार कश्मीरी पंडितों का परिवार विस्थापित हुआ।
कश्मीर में जब बीजेपी और पीडीपी की सरकार बनी तो कॉमन अजेंडा में कश्मीरी पंडित और पाकिस्तानी शरणार्थियों के पुनर्वास की बात हुई। लेकिन मोदी सरकार इतनी निक्कमी है कि नया कुछ तो नहीं ही कर सकी यूपीए द्वारा बनाई गई योजना को भी आगे नहीं बढ़ा पाई।
कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास के लिए ट्रांजिट हाउस बनने हैं और जमीन देनी है। जरा पूछिये इस नकारी सरकार से की आज तक क्या किया। 6000 सरकारी रोजगार देने की तैयारी यूपीए ने की थी। 1700 लोगों को दिए गए थे बाकी नियुक्तियां लीगल मामले में फंस गईं। जरा महबूबा और मोदी सरकार से पूछिए कि क्या हुआ उसका। क्या एक भी नई नियुक्तियां हुईं? क्या 6000 को बढ़ाकर 10 हजार या 20 हजार किया गया?
आखिर ये सरकार कर क्या रही है कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास के लिए? मिलिटेंसी फिर बढ़ गयी है। जवानों की शहादत का आंकड़ा सर्वाधिक है। इंडिया स्पेंड की रिपोर्ट बताती है कि यूपीए के अंतिम 3 साल की तुलना में मोदी राज के 3 साल में जवानों की शहादत 72 फीसदी बढ़ी है।
भक्त बनने से सरकारें काम नहीं करेंगी जाहिल मूर्खों। सवाल पूछने से काम करेंगी। पर भक्त इतने जाहिल हैं कि बीजेपी के पेड ट्रोल्स की तरफ से जारी किए गए व्हात्सप्प और फेसबुक पोस्ट को शेयर करने में जुटे हैं। कश्मीरी पंडितों पर सरकार को घेरो भक्तों तभी कुछ होगा।