विकास मारा गया है पर तंत्र में घुसे अपराधीकरण का वायरस नही

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कानून के हांथ बहुत लंबे होते हैं। कभी कभी इतने लंबे कि, कब किसकी गर्दन के इर्दगिर्द आ जांय पता ही नहीं चलता है। एक सड़क दुर्घटना, घायल मुल्जिम द्वारा भागने की कोशिश, और फिर उसे पकड़ने की कोशिश, पुलिस पर हमला, पुलिस का आत्मरक्षा में फायर करना, और फिर हमलावर का मारा जाना। विकास दुबे के कल सुबह से चल रही सनसनी का यही अंत रहा। महाकाल के मंदिर से गिरफ्तार हो कर बर्रा के पास हुयी मुठभेड़ तक यह सनसनी लगातार चलती रही और आज जब मैं सो कर उठा तो बारिश हो रही है, और सोशल मीडिया पर विकास दुबे के मारे जाने की खबरें भी बरस रही हैं। यह खबर हैरान नहीं करती है क्योंकि यह अप्रत्याशित तो नहीं ही थी। प्याले और होंठ के बीच की दूरी कितनी भी कम हो, एक अघटित की संभावना सदैव बनी ही रहती है।

विकास दुबे खादी, खाकी और अपराधी इन तीनों के अपावन गठबंधन का नतीजा है और कोई पहला या अकेला उदाहरण भी यह नहीं है । शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो जिसे विकास दुबे द्वारा 8 पुलिसकर्मियों की दुःखद हत्या के बाद, उससे सहानुभूति शेष रही हो, पर यह एक अपराधी का खात्मा है, सिस्टम में घुसे अपराध के वायरस का अंत नहीं है। विकास दुबे मारा गया है, उसके अपराध कर्मो ने उसे यहां तक पहुंचाया, पर जिस अपराधीकरण के वायरस के दम पर वह, पनपा और पला बढ़ा, वह वायरस अब भी ज़िंदा है, सुरक्षित है और अपना संक्रमण लगातार फैला रहा है। असल चुनौती यही संक्रमण है जो शेष जो हैं, वे तो उसी संक्रमण के नतीजे हैं।

इस प्रकरण को समाप्त नहीं माना जाना चाहिए, बल्कि इसे एक उदाहरण समझ कर उस संक्रमण से दूर रहने का उपाय विभाग को करना चाहिए। राजनीति में अपराधीकरण को रोका थामा जाय, यह तो फिलहाल पुलिस के लिये मुश्किल है लेकिन पुलिस तंत्र कैसे अपराधी और आपराधिक मानसिकता की राजनीति से बचा कर रखा जाय, यह तो विभाग के नेतृत्व को ही देखना होगा। 8 पुलिसकर्मियों की मुठभेड़ के दौरान हुयी शहादत, पुलिस की रणनीतिक विफलता, और पुलिस में बदमाशों की घुसपैठ और हमारे मुखबिर तंत्र जिसे हम, क्रिमिनल इंटेलिजेंस सिस्टम कहते हैं, की विफलता है। क्या अब हम फिर से, कोई फुंसी, कैंसर का थर्ड या फोर्थ स्टेज न बन जांय, को रोक सकने के लिये तैयार हैं ?

विकास दुबे के अंत के बाद अब आगे क्या ?

विकास दुबे के खात्मे से यह बात साबित हो रही है कि, सरकार अपराधियों के खिलाफ अब सक्रिय हो गयी है। अब यह अभियान यहीं नहीं थमना चाहिए। सरकार को अब चाहिए कि वह जितने भी माननीय, विधायिकाओं में हैं उनके आपराधिक इतिहास को सार्वजनिक करे। पहले चरण में यह शुरुआत विधान सभा और विधान परिषद के माननीय सदस्यों से हो। हालांकि एडीआर की रिपोर्ट में यह सब उपलब्ध है पर सरकार, जनता को यह संदेश देने के लिये कि, सरकार अब आपराधिक इतिहास वाले व्यक्तियों को सहन नहीं करने जा रही है, यह कदम उठाया जाना चाहिए।

जब एक मनोवैज्ञानिक और कानूनी दबाव इन माननीयों पर पड़ेगा तब इसका असर समाज के उन युवाओं और मनबढ़ तथा आपराधिक मानसिकता के छुटभैये नेताओं पर भी पड़ेगा जो कानून और पुलिस से बचने के लिये पेशेवर बदमाशों की शरण मे जाते हैं या खुद ही पेशेवर बदमाश होते हैं और फिर कानून और पुलिस से बचने के लिये राजनीति ओढ़ लेते हैं। यही वर्ग एक फुंसी से उपजता है और एक समय समय सरकार और समाज के लिये कैंसर के थर्ड स्टेज की तरह, जटिल समस्या बन जाता है।

जिन जिन माननीयों के खिलाफ संगीन यानी 7 साल से अधिक की सज़ा वाले अपराधों में मुक़दमे दर्ज हैं और न्यायालय में उनके खिलाफ आरोप पत्र दिए जा चुके हैं, उनमे फ़ास्ट कोर्ट गठन कर के उनका ट्रायल शुरू किया जाय। इसकी पैरवी के लिये अभियोजन निदेशालय और डीजीपी पुलिस को अलग से एक प्रकोष्ठ गठित किया जाय जो इन मुकदमो की मॉनिटरिंग करें। सात साल की सज़ा सीमा सुप्रीम कोर्ट ने तय कर रखी है।

यह सुझाव सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर आधारित है और प्रधानमंत्री जी का यह वादा भी है कि वे एक साल के अंदर फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट गठित कर के मुकदमो का त्वरित ट्रायल करायेंगे। वादा पुराना है और अब एक साल की अवाधि एक्सपायर भी हो चुकी है।

विकास की गिरफ़्तारी के बाद कोर्ट में उसकी सुरक्षा के लिए दायर हुई थी याचिका

बिकरू में 8 पुलिसजन की हत्या करने वाला अभियुक्त विकास दुबे मारा जा चुका है लेकिन उस रात इस जघन्य हत्याकांड में वह अकेले नहीं था। उसके साथ इस पूरी साज़िश में पुलिस मूवमेंट की मुखबिरी से लेकर पुलिस बल पर हमला करने और बर्बरता पूर्वक उनकी हत्या करने में बदमाशों का अच्छा खासा गिरोह शामिल रहा होगा। अभी उस गिरोह में और भी लोग कानून की पकड़ से बाहर हैं। उनके खिलाफ भी कार्यवाही की जानी चाहिए।

जिस दिन विकास दुबे का एनकाउंटर हुआ, उसी दिन सुप्रीम कोर्ट में उसकी सुरक्षा को लेकर याचिका दाखिल की गई थी। याचिका में आरोप लगाते हुए कहा गया है कि विकास के सभी सहयोगियों को फेक एनकाउंटर में मारा गया है। इसलिए विकास दुबे को सुरक्षा दी जाए।

यह याचिका मुंबई के वकील ने दायर की थी। कोर्ट से विकास दुबे के घर और महंगी गाड़ियों को तोड़ने के संबंध में एफआईआर दर्ज कराने के लिए आदेश दिए जाने की भी मांग की गई है। इसके साथ ही विकास दुबे मामले की सीबीआई से जांच कराने की मांग भी की गई थी ।

वकील ने कोर्ट से मांग की थी कि यूपी सरकार और पुलिस, गैंगस्टर विकास दुबे की जान की रक्षा करने की जिम्मेदारी ले और यह सुनिश्चित करे कि उसका एनकाउंटर या हत्या ना हो। कानून के मुताबिक ही सारी कार्रवाई की जाए। हालांकि कुख्यात अपराधी एवं कानपुर के बिकरू गांव में आठ पुलिसकर्मियों की हत्या के मामले का मुख्य आरोपी विकास दुबे शुक्रवार सुबह कानपुर के भौती इलाके में पुलिस मुठभेड़ मे मारा गया।

गाड़ी पलट मार्का मुठभेड़ों से जनता खुश होती है क्योंकि वह शांति से जीना चाहती है, गुंडों बदमाशों से मुक्ति चाहती है। यह मुक्ति चाहे उसे न्यायिक रास्ते से मिले या न्याय के इतर मार्ग से। यह ऐसे ही है जैसे कोई बीमार एलोपैथी से लेकर नेचुरोपैथी तक की तमाम दवाइयां अपने को स्वस्थ रखने के लिये आजमाता है। न जाने कौन सी दवा काम कर जाय । पर ऐसी मुठभेड़ों पर हर्ष प्रदर्शन, न्यायिक व्यवस्था पर जनता के बढ़ते अविश्वास का ही परिणाम है।